ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन | Inspirational Saint : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.1975 to 29.06.2023

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Khushvinder Naul Mintu Ji Life :

समर्पित सन्त

खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji

(25.11.1975 29.06.2023)

Khushvinder Naul Mintu Ji

जो वी डुब्बा नाम सरोवर ओह बन्दा तर जावेगा।

कहे अवतार सुनो रे सन्तों मुंह उजला कर जायेगा।

Khushvinder Naul Mintu Ji

सर्वप्रिय सन्त खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’

उजियारे के स्रोत तुझे जो पा के तुझ में खो जाता ।

कहे ‘हरदेव’ जगत में वह जन आत्म प्रकाशित हो जाता।

Khushvinder Naul Mintu Ji

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जिन्हें हम प्यार करते हैं वास्तव में वो हमें कभी नहीं छोड़ते, वो अपनी उसी उदारता और करुणा के साथ हमारे साथ होते हैं। खुशविन्दर नौल जी, जिन्हें सभी प्यार से मिंटू जी कहते थे, Khushvinder Naul Mintu Ji ने अपनी अद्वितीय दयालुता और सत्गुरु के प्रति अगाध निष्ठा से सभी के दिलों में स्थान बनाया। हर दिल अजीज, हरमन प्यारे मिंटू जी के चेहरे पर हमेशा गुरमत की चमक और सभी के लिए प्यार का भाव रहता था। अपने सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति के दिल में, अपनी पहली मुलाकात में ही वे जगह बना लेते थे।

खुशविन्दर नौल जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) का जन्म नीलोखेड़ी जिला करनाल (हरियाणा) में पिता श्री टहल सिंह जी एवं माता श्रीमती वरिन्दर कौर जी के गृह में हुआ। तीन भाई-बहन वाले परिवार का वातावरण आरंभ से ही पूरी तरह से भक्तिभाव वाला था। मिन्टू जी की आरंभिक शिक्षा नीलोखड़ी और बाद की शिक्षा भिवानी और दिल्ली में हुई। वे बचपन से ही अध्यात्म के रंग में रंगे हुए थे। खेलकूद में भी उनकी रुचि थी। बचपन से ही वे बाल संगत में नियमित रूप से जाते और सत्गुरु की शिक्षाओं को सुनते-समझते रहे।

मिंटू जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) पर उनकी नानी श्रीमती प्रसन्न कौर जी एवं नाना सौदागर सिंह जी का बहुत प्रभाव पड़ा, जिन्होंने करनाल में निरंकारी संगत आरंभ की थी। शहंशाह जी का वहां आगमन होता रहता था। उस दौर में यद्यपि महिलाएं कम सक्रिय होती थीं परन्तु शहंशाह जी का आशीर्वाद पाकर वो कविताएं लिखतीं और प्रचार-प्रसार में भरपूर योगदान देती थीं। जब वो गुरबाणी का सुंदर गायन करतीं तो मिंटू जी बड़े ध्यान से उसका आनंद लेते थे। उस समय मिन्टू जी तबला और उनकी बहन हारमोनियम बजाती थीं। भक्ति गीत-संगीत की गहरी रुचि ने उनके अन्दर आध्यात्मिकता का भाव दृढ़ किया। नीलोखेड़ी में ही उन्हें बाउ महादेव सिंह जी से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई । निरंकार प्रभु को अंग-संग पाकर उनकी रूह खिल उठी।

मिंटू जी के जीवन में परमात्मा का भय मानकर रहने तथा सच्चाई और अच्छाई को अपनाने का भाव बचपन से ही था। एक बार बाल सुलभ स्वभाव के कारण, साथ खेलने वाले बच्चों के साथ पडोस के अहाते में जाकर पेड़ से अमरूद तोड़ लाए। उन्होंने ऐसा कर तो दिया पर मन में निरंकार का भय वाला भाव इतना गहरा था कि अपनी गलती का तुरन्त एहसास हुआ तो घर से कपड़ा लिया और तोड़े गए अमरूदों को पेड़ की डाल से जोड़ने की कोशिश की। प्रभु से प्रेम और भय दोनों ही भाव जीवन पर्यन्त उनके अन्दर गहराई तक प्रभावी रहे।

नीलोखेड़ी में उनके पिता टहल सिंह जी की वर्कशाप मुख्य मार्ग पर थी। दिल्ली या आस-पास से आते-जाते हुए पुरातन महात्मा कुछ समय इनकी दुकान पर अवश्य रुकते और भरपूर आशीर्वाद देकर जाते। बाद में मिंटू जी माता-पिता के साथ दिल्ली आ गए। बाउ महादेव सिंह जी का निरंकारी कालोनी स्थित मकान उनका नया निवास स्थान बना, जहां भगत कोटूमल जी. राजकवि जी, सत्यार्थी जी, निर्माण जी आदि सन्तों के साथ गहरा लगाव रहा।

मिंटू जी ने घर-परिवार की जिम्मेदारियां बाखूबी निभाई और अनेक संघर्षों का सामना करते हुए जीवन को लय पर लाने में सफल हुए। वो मिशन की सेवाओं में पूरी श्रद्धा से लगे रहे। बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविंदर हरदेव जी और वर्तमान सतगुरु माता सुदीक्षा जी का उन्हें भरपूर स्नेह आशीर्वाद मिलता रहा। इन रहमतों के मूल में उनके द्वारा विनम्र भाव से की गई सेवाएं ही थीं। कोठी की सेवाएं हो, प्रदर्शनी विभाग एकोमोडेशन कमेटी में रहकर सन्त समागम के अवसर पर की जाने वाली सेवाएं उन्होंने सभी को सच्ची निष्ठा से निभाया।

सतगुरु माता जी ने उन्हें पत्रिका प्रकाशन, इस्टेट मैनेजमेन्ट, डिजाइन स्टूडियो और मानव संसाधन विभाग के को-आर्डिनेटर के रूप में सेवा का अवसर प्रदान किया, जिसे वे पूरी लगन से निभाते रहे। मिन्टू जी देश-दूरदेश की कल्याण यात्राओं में सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज एवं सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के साथ शामिल होते रहे। उन्होंने सतगुरु को हमेशा सेवादारों का हित करते देखा और स्वयं भी यही प्रयास करते रहे कि हर सेवादार की हर समस्या का समाधान संभव हो सके।

जब कोविड महामारी का भयावह समय आया तब उन्होंने सत्गुरु माता जी के आशय अनुसार मानवता को राहत पहुंचाने वाले कार्यों में पूरी लगन व निर्भीकता से स्वयं को समर्पित किया। जरूरतमंदों को आक्सीजन, सिलेण्डर, मास्क, पी.पी.ई. किट, दवाईयां, लंगर आदि पहुंचाने में वे दिन रात लगे रहे।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने जब निरंकारी यूथ सिम्पोजियम (NYS) के आयोजन आरंभ किए तो मिन्टू जी इससे सम्बन्धित सारी व्यवस्थाओं में लगातार लगे रहते। सत्गुरु की सेवा करने हुए उन्हें अपने आराम की लेशमात्र भी चिंता नहीं होती थी।

29 जून, 2023 को श्री खुशविन्दर नौल जी 47 वर्ष की आयु में नश्वर शरीर त्यागकर निरंकार में लीन हो गए। अपने छोटे परन्तु यादगार जीवन काल में उन्होंने अपनी कर्मठता और प्रभु पर विश्वास के बल पर जीवन के हर पल का स्वागत किया। उन्होंने अपनी अद्वितीय विनम्रता से जीवन के पल-पल को जीवन्त किया और साहसपूर्वक हर परिस्थिति का सामना किया। सतगुरु की सेवा में सदैव समर्पित उनका जीवन प्रेरणा और स्फूर्ति से भरा हुआ था।

पूरा नौल परिवार सत्गुरु एवं समस्त साध संगत के प्रति शुकराने और कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हुए यही अरदास करता है कि जो प्रेरणा खुशविंदर जी ने अपनी अटूट सेवाभक्ति भाव से दी, उसका हम भी अपने जीवन में अनुसरण कर पाऐं।

समस्त नौल परिवार !

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