निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी विचार
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Vichar
साध संगत जी प्यार से कहना, धन निरंकार जी। Nirankari Satsang Live
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Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vichar |
साध संगत, यहाँ मान्तोवा, इटली के इस प्रांगण में आज हम सब यूरोपियन सन्त समागम के लिए इकट्ठे हुए हैं। यहाँ न सिर्फ इटली के बल्कि यूरोप के बहुत से देशों और हिन्दुस्तान से भी महापुरुष आए हैं ताकि जहाँ इस निरंकार परमात्मा का गुणगान कर सकें,वहीँ वो एक जो महत्ता है कि
Nirankari Satsang Live जीते जी इस निरंकार को जानने के बाद हमें अपना असली रूप पता लग सकता है और जब निरंकार का बोध हो जाए तो जीवन भर ब्रह्मज्ञान को याद रखते हुए सेवा, सुमिरन व सत्संग को अपनाना है।
अपने जीवन में मानवीय मूल्यों वाले गुण डालने हैं कि हम प्यार से हर एक के साथ रहें, चाहे वो हमसे कैसा भी व्यवहार करे, हमें उसके साथ कभी उल्टा व्यवहार नहीं करना, हमेशां अच्छी तरह ही पेश आना है, उनके साथ भी जो हमारे लिए अच्छी सोच नहीं रखते।
Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharचाहे किसी ने हमें कुछ गलत बोल दिया, उसके साथ भी हमने उसी प्यार से व्यवहार करना है। उनके लिए अपने दिलो-दिमाग को जलना नहीं है बल्कि स्वंय में सहनशीलता लानी है और दूसरों को भी ठंडक देनी है।
आज आप सत्संग में समय निकाल कर इतनी दूर-दूर से आए हैं, अन्य संगठनों के भी प्रतिनिधि आए हैं और यहाँ के भारतीय दूतावास का भी प्रतिनिधित्व हुआ है, दासी सभी का धन्यवाद करती है। यह जो निरंकारी मिशन का सत्य-सन्देश है इसको सभी ने न केवल सुना बल्कि जो भी मिल रहे थे उन्होंने प्रशंसा भी की कि किस तरह दुनिया की जो आज के समय की आवश्यकता है कि हम अपने आप को एक छोटे से दायरे में न कर लें, अपने आगे-पीछे दीवारें न खड़ी कर लें। Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharउन दीवारों को न सिर्फ गिरना है बल्कि कोशिश करके जोड़ने वाले पुल के रूप में अपने जीवन को आगे लाना है।
जहाँ हम हर एक के दिल और ज़िन्दगी तक उस तरह से पहुंचें, जिस तरह ब्रह्मज्ञान ने हमारे अंदर रोशनी की, हम वो जीवन जीयें जैसा युगों-युगों से संतों-महापुरुषों ने कहा कि-मनुष्य तन है तो मनुष्य जीवन भी वैसा हो जो मानवीय मूल्यों को अपने अंदर रखते हुए सारी खूबियाँ दर्शाए। Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharजीवन वाही मुबारक होता है जो उन गुणों से युक्त होता है और वो जीवन भर के लिए एक उत्सव के रूप में माना जा सकता है।
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हम संसार में देखते हैं कि हर साल अलग-अलग मौसम आते हैं; कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी बरसात तो कभी बर्फ़बारी होती है, इसी तरह हमारे जीवन में भी समय हमेशां एक सा नहीं होता। खुशियों के समय खुशियाँ आएंगी, जब दुःख आना है तो वह भी अपने समय पर आना है, Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharजब शरीर में कोई तकलीफ़, कोई बीमारी आनी है तो उसने भी अपने समय से आना है।
इतना कुछ जब हमारे साथ हो रहा है इस जीवन काल में तो, हमने शांति और स्थिरता रखते हुए जीवन की किसी भी स्तिथि में अपने मन और व्यवहार को स्थिर रखना है। यह तभी संभव है जब हम इस स्थिर परमात्मा-निरंकार, जो शुरू में था, आज भी है और जिसका कोई अंत नहीं, से जुड़ जाते हैं।
यह भोतिक्वादी दुनिया, यह माया, यह सब चीजें क्षण-भंगुर हैं, सब नाशवान हैं तो हम कैसे उसे याद रखते हुए कि हमारी स्तिथि जो भी चल रही है, पर हम हमेशां इस एकरस निरंकार के साथ जुड़े हैं। चाहे हम इसे अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु, राम
Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vichar किसी भी नाम से बुलाएं यह अपने-आप में निर्गुण है, यह पत्ते-पत्ते, ज़र्रे-ज़र्रे में समाया हुआ है, जब हम इसका सहारा लेकर इसके जैसा बनने की कोशिश करेंगे तो हमारे जीवन में चाहे कैसी भी स्तिथि चल रही हो हमें वो एक जैसी सहज-आनन्द की अवस्था और स्थिरता ही मिलेगी।
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दासी, अन्त में यही शुभकामना व्यक्त करेगी कि जिस जज़्बे से सब यहाँ आज संगत में आए हैं, दातार सभी पर इस तह अपना आशीर्वाद बनाए रखे कि जो सन्देश ग्रहण करने आए हैं वो एक-एक सन्देश चाहे छोटा हो या बड़ा
Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vichar अपनी ज़िन्दगी में हम उतारेंगे तो निश्चित रूप से उसका हमारे जीवन पर एक अच्छा प्रभाव पड़ेगा और हम एक बेहतर इन्सान बन सकेंगे।