Nirankari Vichar : परमात्मा पत्ते-पत्ते, डाली-डाली ब्रह्मांड के कण-कण में समाया है। परमात्मा अंदर-बाहर सब जगह मौजूद है और हर धर्म ग्रंथ ने यही समझाया है। परमात्मा को जानने के बाद मन से भय, स्वार्थ और अहंकार दूर हो जाता है। हानिकारक सोच और नकारात्मक विचार खत्म हो जाते हैं। सभी एक ही परमपिता-परमात्मा की ही रचना हैं। मनुष्य जीवन अनमोल है और जीते जी ही परमात्मा की पहचान करनी है। यह शरीर ही हमारी वास्तविक पहचान नहीं है बल्कि आत्मिक रूप ही वास्तविक पहचान है।
निरंकारी मिशन का परिचय | Introduction of Nirankari Mission
निरंकारी मिशन एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक संगठन है जिसका उद्देश्य मानवता के बीच प्रेम, शांति, और एकता को बढ़ावा देना है। इस मिशन की स्थापना 1929 में बाबा बूटा सिंह जी द्वारा की गई थी। यह मिशन विभिन्न सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों के माध्यम से लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता और मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करता है। निरंकारी मिशन के अनुयायी अपने जीवन में सत्य, प्रेम, और सेवा के सिद्धांतों का पालन करते हैं।
व्यव्हार | Nirankari Vichar
शरीर की अवस्था (Nirankari Vichar) और आकार तो एक जैसा है परंतु व्यवहार से पता चलता है कि वह मानव है या दानव है। फरिश्ता और शैतान दोनों इंसानी रूप में ही होते हैं परंतु मानवीय गुणों से पता चलता है।
अवस्था | Nirankari Vichar
जैसे फूल में खुशबू होगी और कोमलता भी होगी, फूल जिस भी अवस्था में होगा खुशबू ही देगा। कोई भी फलदार पेड़ हो तो फल देगा साथ ही वह ऑक्सीजन भी देगा और छाया भी देगा।
धर्म | Nirankari Vichar
Nirankari Vichar : मानवता से ऊँचा कोई धर्म नहीं है और ऐसा ही इंसान का जीवन हो। जब मन में परमात्मा बसा रहता है तो प्यार का भाव, अपनत्व, एकता, विशालता, सहनशीलता, करुणा, दया इत्यादि मानवीय गुण मन में खुद-ब-खुद आ जाते हैं।
प्यार | Nirankari Vichar
जीवन में यदि भक्ति के बीज बीजेंगे तो उसका परिणाम अच्छा होगा, जीवन में प्यार ही प्यार होगा। इससे नफ़रत के कारण भी खत्म हो जाते हैं और किसी के प्रति भी नफ़रत का भाव नहीं होता, फिर मन में प्यार ही टिकेगा।
आदर-सत्कार और प्यार से भरा जीवन होगा तो जीवन व्यर्थ नहीं होगा बल्कि गुणवत्ता वाला जीवन हो जाएगा।
निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक संगठन है जो मानवता की सेवा, प्रेम, और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है। इसका उद्देश्य मानवता के बीच एकता और शांति स्थापित करना है।
निरंकारी मिशन की स्थापना कब और किसने की थी?
निरंकारी मिशन की स्थापना 1929 में बाबा बूटा सिंह जी ने की थी।
निरंकारी मिशन का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
निरंकारी मिशन का मुख्यालय दिल्ली, भारत में स्थित है।
निरंकारी मिशन के प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?
निरंकारी मिशन के प्रमुख सिद्धांतों में ईश्वर की अनुभूति, मानवता की सेवा, प्रेम, शांति, और भाईचारे को बढ़ावा देना शामिल है।
निरंकारी मिशन की प्रमुख गतिविधियाँ क्या हैं?
निरंकारी मिशन के अंतर्गत सत्संग, सामाजिक सेवा, चिकित्सा शिविर, रक्तदान शिविर, और पर्यावरण संरक्षण जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
निरंकारी मिशन के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु कौन हैं?
निरंकारी मिशन के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज हैं।
निरंकारी मिशन में शामिल होने की प्रक्रिया क्या है?
निरंकारी मिशन में शामिल होने के लिए किसी भी निरंकारी सत्संग में भाग लेकर, ईश्वर की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं और मिशन के सिद्धांतों का पालन कर सकते हैं।
निरंकारी मिशन का संदेश क्या है?
निरंकारी मिशन का संदेश है कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं और हमें प्रेम, शांति, और एकता के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।
निरंकारी मिशन के सेवा कार्य क्या हैं?
निरंकारी मिशन द्वारा किए जाने वाले सेवा कार्यों में गरीबों की सहायता, अनाथालयों में सेवा, वृद्धाश्रमों में सेवा, और प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य शामिल हैं।
निरंकारी मिशन के सत्संग में क्या होता है?
निरंकारी मिशन के सत्संग में भजन, प्रवचन, और आध्यात्मिक चर्चा होती है, जहाँ भक्त जन अपने अनुभव साझा करते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।
मानवता (Humanity) से बड़ा कोई धर्म नहीं है, मगर इंसान मानवता (Humanity) मानव धर्म को छोड़कर मानव के बनाये हुए धर्मों पर चल पड़ता है। ऐसा उसकी अज्ञानता के कारण होता है इंसान, इंसानियत को छोड़कर धर्म की आड़ में अपने मन के अन्दर छिपी, निंदा, नफरत और जाति-पाँति के भेद भाव के कारण अभिमान को प्राथमिकता देता है। इसके कारण ही मानव जीवन के मूल मकसद को भूल जाता है मानव प्यार करना भूल जाता है, अपने जन्मदाता को भूल जाता है इससे मानव मन में दानवता वाले गुणों का प्रभाव बढ़ता चला जाता है। आज धर्म के नाम पर लोग लहू लुहान हो रहे हैं।
मानवता (Humanity)को एक तरफ रखकर इंसान अपनी मनमर्जी अनुसार धर्म को कुछ और ही रूप दे रहा है, जिसके कारण इंसान से इंसान की दूरियाँ बढ़ रही है. कहीं जाति पाँति तो कहीं परमात्मा के नामों के झगड़ों के कारण दिलों में नफरत बढ़ती जाती है। इंसानियत खत्म होती जाती है, जहाँ इंसानियत खत्म होती है। वहा धर्म भी खत्म हो जाता है। सन्तों महापुरुषों ने यही संदेश दिया कि कुछ भी बनो मुबारक है, पर पहले इंसान बनो। आज मानवता के विपरीत दानवता का ही उदाहरण जगह-जगह नज़र आता है परिणामस्वरूप परिवार के परिवार उजड़ जाते हैं। आज इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन बना हुआ है। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए इंसान धर्म की ओट लेकर इंसान का खून बहाने से भी पीछे नहीं हटता ।
मानवता अपनाकर इंसान दूसरों को सुख देने का कारण बनता है दुख देने का नहीं। वह दूसरों को रोता देखकर खुश नहीं होता है वह जख्म देकर नहीं जख्म भरकर खुश होता है, दूसरों को गिराकर कर नही उठाकर खुश होता है। वह हमेशा भला करके खुश होता है भला-सोचना, भला ही करना, मानवता की असल निशानी है। मानवता की मजबूती के लिए मन में सद्भाव वाले भाव धारण करने होंगे, यह तभी संभव होता है, जब मन का नाता निर्मल पावन परम सत्ता से जुड़ा होगा, मानव परमपावन से जुड़कर कभी अपावन कार्य नहीं करेगा।
सन्त निरंकारी मिशनमें महापुरुषों के रहन-सहन, आचार-विचार, वेश-भूषा, खान-पान, बोली-भाषा अलग होते हुए भी विचारधारा और मानवीय सोच एक है। निरंकारी सन्त समागम भी मानवता के सुन्दर गुलदस्ते के रूप नजर आते हैं। यहाँ मानवता का जीवन्त स्वरूप नजर आता है। निरंकारी मिशन इंसानों का दृष्टिकोण विशाल कर रहा है। मिशन परमात्मा की जानकारी द्वारा लोगों के अंतर्मन के भावों को बदल रहा है। मन बदलता है तो स्वाभाविक रूप से स्वभाव भी बदलता है, विचार बदलते हैं और व्यक्ति के जीवन जीने का ढंग बदल जाता है, फिर जीवन की दिशा अपने-आप सही हो जाती है, फिर हर स्वाँस कह उठती है-
एक नूर ते सब जग,
उपजिया कउन भले कौन मन्दे ।
सद्गुरु माता जी कहते हैं कि विश्व में मानवता तभी कायम होगी जब हम मिलकर मानवता को अपने दिलो में, मनों और दिमागों में बसायेंगे। हम प्यार से रहें, मिलवर्तन को बढावा दें, दूसरों को खुशियाँ बाटें, ऊँच-नीच, जाति-पाँति, वैर, निंदा-नफरत की भावना को त्यागकर सारे संसार की सेवा करें।
सद्गुरु ने हमें सत्य से जोड़कर प्रेम से रहने की शिक्षा दी है, विश्वबन्धुत्व का पाठ पढ़ाते हुए मानव को मानव से प्रेम, नम्रता व सत्कार करना सिखाया हैं। सद्गुरु संसार में शान्ति व अमन-चैन का वातावरण बना रहे हैं। मानवता की वास्तविक स्थापना प्रेम, दया, करुणा, सहनशीलता और विशालता की स्थापना में निहित है। महापुरुषों ने मानवता को ही सच्चा धर्म माना है। मानवता को खत्म करके कभी भी धर्म को बचाया नहीं जा सकता है, धर्म को मजबूती नही प्रदान की जा सकती।
आज इंसान धर्म के नाम पर बँटा हुआ है। अपनी उपासना पद्धति अपने आराध्य, अपनी परम्पराओं को वह श्रेष्ठ मानता है और दूसरों से अकारण नफरत करता है। जिन पीर पैगम्बरों को वह अपना मार्गदर्शक स्वीकार करता है वास्तविकता में उनकी बातों को तो न ध्यान से समझने का प्रयास करता है और न ही उन्हें सच्चे मन से मानने का।
ध्यान से देखा-समझा जाये तो सभी सन्तों-महापुरुषों-पैगम्बरों ने मानवता की ही शिक्षा दी है। प्यार, नम्रता, सहनशीलता और सद्भाव का ही पाठ पढ़ाया है फिर भी इन्सान अपनी मनमति अपनाकर मानवता का अहित करता जाता है। आवश्यकता है मानवता के मर्म को समझ कर मानवता के धर्म को हृदय से अंगीकार किया जाए।
सर्वप्रिय सन्त, प्रसिद्ध कविविद्वान संपादक, प्रभावशाली विचारक, बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री Sulekh Sathi जी का जन्म 16 जून, 1953 को पिता श्री ज्ञान सिंह जी और माता वीरांवली जी के गृह अम्बाला शहर (हरियाणा) में हुआ। आरम्भिक शिक्षा अम्बाला शहर में हुई। तीन भाई और पाँच बहनों वाले परिवार की पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने में पिता का हाथ बंटाने का कार्य साथी जी ने शुरू से ही प्रयास जारी रखा। आपके परिवार का वातावरण भक्तिमय था जिसका व्यापक प्रभाव सुलेख साथी जी के ऊपर पड़ा। आपका समय शिक्षा ग्रहण करने, सेवा, भक्ति तथा परिवार के कार्यों को पूर्ण करने में व्यतीत होता। रोजगार की आवश्यकता को देखते हुए आपने हिन्दी स्टेनो की परीक्षा उत्तीर्ण की और पहले हिसार (हरियाणा) तथा बाद में दिल्ली सरकार में चयनियत हुए। श्री वासुदेव राय जी की प्रेरणा पाकर आप 1972 में दिल्ली आए और एक नजर अखबार से जुड़कर सन्त निरंकारी मिशन की सेवा करने लगे।
अम्बाला शहर में Sulekh Sathi जी के घर में संगत होती थी जहाँ माता-पिता की प्रेरणा से सभी भाई-बहनों को सेवा का अवसर मिला। आपके मन में आरम्भ से ही सेवा का जज्बा था। 1979 में श्री कुन्दन सिंह अरोड़ा जी की बेटीपूज्य चरणजीत कौर जी के साथ आप विवाह के बंधन में बंधे। आपने धर्मपत्नी से यही आग्रह किया कि आपने घर संभालना है और दास को सत्गुरु की सेवा के लिए समय उपलब्ध कराना है। आपने सत्गुरु की सेवा में सहयोग देना है। पति-पत्नी के बीच यह समझ जीवनपर्यन्त कायम रही। बेटियां नवनीत जी, नवीन जी और बेटे सुप्रीत जी ने भी माता-पिता के आदर्श गुरसिखी जीवन का अनुकरण किया और सतगुरु की सेवा में सदा समर्पित रहे। स्वयं को पीछे रखकर सतगुरु की शिक्षाओं को सदैव उजागर करते रहे। बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सुलेख साथी जी में अनेकों गुण थे। आपने अपनी योग्यता को पूरी दक्षता के साथ गुरु कार्य में लगाया। आप सत्संग में गहरी रुचि रखते थे और हर संभव सत्संग में पहुँचने का प्रयास करते थे। आपने बाल संगत और युवा संगत को बढ़ावा देने में पूरा योगदान दिया। निरंकारी सन्त समागम के समय एकोमोडेशन कमेटी का अंग बनकर हर महात्मा की सुविधाओं का ख्याल रखते। प्रचार-प्रसार की हर गतिविधि से आप तन्मयतापूर्वक जुड़े रहे।
बाबा गुरबचन सिंह जी, ममतामयी निरंकारी राजमाता जी, बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविन्दर हरदेव जी और सतगुरु माता सुदीक्षा जी तथा निरंकारी राजपिता रमित जी का आपको भरपूर स्नेह- आशीर्वाद प्राप्त हुआ। होली सिस्टर्स की भी आपके ऊपर विशेष रहमतें रहीं।
Sulekh Sathi जी की गुरुवंदना कार्यक्रमों में शुरुआत से ही सहभागिता रही। आप कवि सभा की विभिन्न गतिविधियां के केन्द्र में रहे। पुराने कवियों का साथ लेकर आप नए उभरते कवियों को आगे बढ़ाते रहे। सन्त निरंकारी सीनियर सेकेंड्री स्कूल (बॉयज) के दस वर्ष तक चेयरमैन रहे। उत्तरी दिल्ली के जोनल इंचार्ज की सेवाएं भी बाखूबी निभाई। आपने सन्त निरंकारी पत्रिका – प्रकाशन के साथ-साथ मिशन के साहित्य की भरपूर सेवा की। आप अंतिम स्वांसों तक सन्त निरंकारी, एक नजर और हँसती दुनिया (पंजाबी) के संपादक की सेवा बहुत कुशलतापूर्वक निभाते रहे। ज्ञान प्रचारक के रूप में भी आपका सराहनीय योगदान रहा और समय-समय पर अनेक राज्यों की प्रचार यात्रा पर जाते रहे।
दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों पर्यटन, सेल्स टैक्स और तीस हजारी कोर्ट में आपने शालीनता और पूरी प्रवीणता के साथ सेवा करके विभागीय अधिकारियों की प्रशंसा प्राप्त की । शुक्रवार 7 जुलाई को आप सन्त निराकारी कार्यालय आए और बड़ी लगन व सहजता से पत्रिका विभाग की अपनी सेवाओं को निभाया तथा अनेकों महात्माओं से गुरुचर्चा करते रहे। 8 जुलाई, 2023 को हरमन प्यारे, हरदिल अजीज सुलेख साथी जीजीवन यात्रा पूरी करके इस अविनाशी परमसत्ता निरंकार में लीन हो गए-
जिउ जल महि जलु आइ खटाना ।
तिउ जोती संग जोति समाना।
Sulekh Sathi Ji Life 16.06.1953 – 08.07.2023
10 जुलाई को मैरिज ग्राउंड निरंकारी कालोनी से अंतिम यात्रा निगमबोध घाट दिल्ली पहुँची। सी.एन.जी. शवदाह गृह में अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल हुए। भीगी आँखों से आपको भावपूर्ण श्रद्धाजंलि देते भक्तों के मन आपकी अविस्मरणीय यादों से भरे हुए थे। आपकी यादें हमेशा सभी के दिलों में रहेंगी।
जीवन क्या है प्रभु दया है, मरण है क्या बस प्रभु रज़ा है।
हमको जितना मिला है जीवन, उसको जीना एक कला है।
सब की आंख का तारा जीवन, सब को लगता प्यारा जीवन ।
दुःख-सुख में जो बनता ‘साथी’ होता है वो न्यारा जीवन ।
शहंशाह जी से रहमतें प्राप्त निरंकारी कॉलोनी निवासी हंसमुख, मिलनसार, हरमन प्यारे, निरंकारी कवि, लेखक और सन्त निरंकारी (पंजाबी पत्रिका) के सम्पादक, श्री सुलेख साथी जी, ( Rev. Sulekh Sathi Ji ) 08 जुलाई, शनिवार को अकस्मात हृदय घात होने से निरंकार प्रभुसत्ता द्वारा प्रदत्त स्वांसों को पूर्ण कर गुरु चरणों में तोड़ निभाते हुए (16.06.1953 – 08.07.2023) नश्वर शरीर त्यागकर निरंकारमय हो गए हैं।
उनके पार्थिव शरीर को अन्तिम दर्शनों के लिए,10 जुलाई सोमवार को सुबह 9.30 बजे, मैरिज ग्राउंड, निरंकारी कॉलोनी में लाया गया और तदुपरांत, वहीं से 12 बजे, अन्तिम यात्रा आरम्भ होकर,12.30 बजे, निगम बोध घाट (CNG), कश्मीरी गेट, दिल्ली में सम्पन्न हुई।
👇ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन | Inspirational Saint : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.1975 to 29.06.2023👇
जिन्हें हम प्यार करते हैं वास्तव में वो हमें कभी नहीं छोड़ते, वो अपनी उसी उदारता और करुणा के साथ हमारे साथ होते हैं। खुशविन्दर नौल जी, जिन्हें सभी प्यार से मिंटू जी कहते थे, Khushvinder Naul Mintu Ji ने अपनी अद्वितीय दयालुता और सत्गुरु के प्रति अगाध निष्ठा से सभी के दिलों में स्थान बनाया। हर दिल अजीज, हरमन प्यारे मिंटू जी के चेहरे पर हमेशा गुरमत की चमक और सभी के लिए प्यार का भाव रहता था। अपने सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति के दिल में, अपनी पहली मुलाकात में ही वे जगह बना लेते थे।
खुशविन्दर नौल जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) का जन्म नीलोखेड़ी जिला करनाल (हरियाणा) में पिता श्री टहल सिंह जी एवं माता श्रीमती वरिन्दर कौर जी के गृह में हुआ। तीन भाई-बहन वाले परिवार का वातावरण आरंभ से ही पूरी तरह से भक्तिभाव वाला था। मिन्टू जी की आरंभिक शिक्षा नीलोखड़ी और बाद की शिक्षा भिवानी और दिल्ली में हुई। वे बचपन से ही अध्यात्म के रंग में रंगे हुए थे। खेलकूद में भी उनकी रुचि थी। बचपन से ही वे बाल संगत में नियमित रूप से जाते और सत्गुरु की शिक्षाओं को सुनते-समझते रहे।
मिंटू जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) पर उनकी नानी श्रीमती प्रसन्न कौर जी एवं नाना सौदागर सिंह जी का बहुत प्रभाव पड़ा, जिन्होंने करनाल में निरंकारी संगत आरंभ की थी। शहंशाह जी का वहां आगमन होता रहता था। उस दौर में यद्यपि महिलाएं कम सक्रिय होती थीं परन्तु शहंशाह जी का आशीर्वाद पाकर वो कविताएं लिखतीं और प्रचार-प्रसार में भरपूर योगदान देती थीं। जब वो गुरबाणी का सुंदर गायन करतीं तो मिंटू जी बड़े ध्यान से उसका आनंद लेते थे। उस समय मिन्टू जी तबला और उनकी बहन हारमोनियम बजाती थीं। भक्ति गीत-संगीत की गहरी रुचि ने उनके अन्दर आध्यात्मिकता का भाव दृढ़ किया। नीलोखेड़ी में ही उन्हें बाउ महादेव सिंह जी से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई । निरंकार प्रभु को अंग-संग पाकर उनकी रूह खिल उठी।
मिंटू जी के जीवन में परमात्मा का भय मानकर रहने तथा सच्चाई और अच्छाई को अपनाने का भाव बचपन से ही था। एक बार बाल सुलभ स्वभाव के कारण, साथ खेलने वाले बच्चों के साथ पडोस के अहाते में जाकर पेड़ से अमरूद तोड़ लाए। उन्होंने ऐसा कर तो दिया पर मन में निरंकार का भय वाला भाव इतना गहरा था कि अपनी गलती का तुरन्त एहसास हुआ तो घर से कपड़ा लिया और तोड़े गए अमरूदों को पेड़ की डाल से जोड़ने की कोशिश की। प्रभु से प्रेम और भय दोनों ही भाव जीवन पर्यन्त उनके अन्दर गहराई तक प्रभावी रहे।
नीलोखेड़ी में उनके पिता टहल सिंह जी की वर्कशाप मुख्य मार्ग पर थी। दिल्ली या आस-पास से आते-जाते हुए पुरातन महात्मा कुछ समय इनकी दुकान पर अवश्य रुकते और भरपूर आशीर्वाद देकर जाते। बाद में मिंटू जी माता-पिता के साथ दिल्ली आ गए। बाउ महादेव सिंह जी का निरंकारी कालोनी स्थित मकान उनका नया निवास स्थान बना, जहां भगत कोटूमल जी. राजकवि जी, सत्यार्थी जी, निर्माण जी आदि सन्तों के साथ गहरा लगाव रहा।
मिंटू जी ने घर-परिवार की जिम्मेदारियां बाखूबी निभाई और अनेक संघर्षों का सामना करते हुए जीवन को लय पर लाने में सफल हुए। वो मिशन की सेवाओं में पूरी श्रद्धा से लगे रहे। बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविंदर हरदेव जी और वर्तमान सतगुरु माता सुदीक्षा जी का उन्हें भरपूर स्नेह आशीर्वाद मिलता रहा। इन रहमतों के मूल में उनके द्वारा विनम्र भाव से की गई सेवाएं ही थीं। कोठी की सेवाएं हो, प्रदर्शनी विभागएकोमोडेशन कमेटी में रहकर सन्त समागम के अवसर पर की जाने वाली सेवाएं उन्होंने सभी को सच्ची निष्ठा से निभाया।
सतगुरु माता जी ने उन्हें पत्रिका प्रकाशन, इस्टेट मैनेजमेन्ट, डिजाइन स्टूडियो और मानव संसाधन विभाग के को-आर्डिनेटर के रूप में सेवा का अवसर प्रदान किया, जिसे वे पूरी लगन से निभाते रहे। मिन्टू जीदेश-दूरदेश की कल्याण यात्राओं में सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज एवं सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के साथ शामिल होते रहे। उन्होंने सतगुरु को हमेशा सेवादारों का हित करते देखा और स्वयं भी यही प्रयास करते रहे कि हर सेवादार की हर समस्या का समाधान संभव हो सके।
जब कोविड महामारी का भयावह समय आया तब उन्होंने सत्गुरु माता जी के आशय अनुसार मानवता को राहत पहुंचाने वाले कार्यों में पूरी लगन व निर्भीकता से स्वयं को समर्पित किया। जरूरतमंदों को आक्सीजन, सिलेण्डर, मास्क, पी.पी.ई. किट, दवाईयां, लंगर आदि पहुंचाने में वे दिन रात लगे रहे।
सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने जब निरंकारी यूथ सिम्पोजियम (NYS) के आयोजन आरंभ किए तो मिन्टू जी इससे सम्बन्धित सारी व्यवस्थाओं में लगातार लगे रहते। सत्गुरु की सेवा करने हुए उन्हें अपने आराम की लेशमात्र भी चिंता नहीं होती थी।
29 जून, 2023 को श्री खुशविन्दर नौल जी 47 वर्ष की आयु में नश्वर शरीर त्यागकर निरंकार में लीन हो गए। अपने छोटे परन्तु यादगार जीवन काल में उन्होंने अपनी कर्मठता और प्रभु पर विश्वास के बल पर जीवन के हर पल का स्वागत किया। उन्होंने अपनी अद्वितीय विनम्रता से जीवन के पल-पल को जीवन्त किया और साहसपूर्वक हर परिस्थिति का सामना किया। सतगुरु की सेवा में सदैव समर्पित उनका जीवन प्रेरणा और स्फूर्ति से भरा हुआ था।
पूरा नौल परिवार सत्गुरु एवं समस्त साध संगत के प्रति शुकराने और कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हुए यही अरदास करता है कि जो प्रेरणा खुशविंदर जी ने अपनी अटूट सेवा व भक्ति भाव से दी, उसका हम भी अपने जीवन में अनुसरण कर पाऐं।
Dhan Nirankar Ji Santo ! सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के पावन सानिध्य में एक विशाल सत्संग कार्यक्रम रानी पोखरी, ब्रांच भोगपुर, देहरादून, उत्तराखंड में आयोजित होना निश्चित हुआ है। Nirankari Satsang Bhogpur
DATE
11 Jun 2023 (दिनांक : रविवार, 11 जून 2023)
TIME
11:00 am – 2:00 pm (समय : प्रात 11:00 से दोपहर 2:00 बजे तक)
LOCATION
Rani Pokhri, Bhogpur, Dehradun, Uttarakhand (स्थान : राजकीय रेशम फार्म के पास, रानी पोखरी, ब्रांच भोगपुर, देहरादून, उत्तराखंड)
कृपया सही समय पर पहुँच कर सत्गुरु के आशीर्वादों के पात्र बनें।
🙏🏻इस कार्यक्रम की सूचना शीघ्र सर्व साध संगत तक पहुंचा दें ताकि सभी महात्मा सत्संग का लाभ प्राप्त कर पाएं।🙏🏻
Nirankari Samarpan Diwas 2023 Programme at Samalkha Haryana
साध संगत जी प्यार से कहना – धन निरंकार जी
साध संगत जी, अपना जीवन मानवता को समर्पित करने वाले – सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज की याद में, 13 मई 2023, शनिवार ( 13 May 2023, Saturday ) – शाम 05:00 बजे से रात्रि 09:00 बजे तक – सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज हम सभी को संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा, हरियाणा में आयोजित होने वाले ‘समर्पण दिवस 2023’ ( Nirankari Samarpan Diwas 2023) कार्यक्रम पर आशीर्वाद देंगे |
Nirankari Samarpan Diwas 2023 Programme at Other Branches Of Sant Nirankari Mission
और साथ ही, साध संगत जी, आपको बता दें की 13 मई 2023, शनिवार को पूरे भारत में यानी की संत निरंकारी मिशन के सभी शाखाओं में समर्पण दिवस 2023 कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।
परन्तु, साध संगत जी समालखा के आसपास के 150 किलोमीटर के दायरे में दिल्ली, एनसीआर और पास के क्षेत्रों के सभी संत – संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा पहुंचें और सतगुरु माता जी व राजपिता रमित जी का आशीर्वाद प्राप्त करें |
Important Information Regarding Other Satsang Programmes
आखिर में सभी संतों को सुचित किया जाता है कि 14 मई, 2023 को पूरे भारत में किसी भी सन्त निरंकारी मिशन शाखा में कोई भी सत्संग नहीं होगा।
Nirankari NYS Haryana Samalkha 2023 in the presence of Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj and Rajpita Ramit Ji. Get Full Information about its Registration | Date | Timings below. If you want to know more about NYS ( Nirankari Youth Symposium ) then Click 👉 here 👈
Nirankari NYS Haryana 2023
Saints say with love Dhan Nirankar ji. Saints Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj Gave us a bundle of blessings in the form of Nirankari Youth Symposium ( NYS ) Samalkha | Haryana 2023. Those who cannot attend NYS Haryana 2023 Programme Physically, can attend Nirankari Live Onlinehere.
साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी | सत्संग जी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने सभी नौजवानों पर रहमत बरसाते हुए एनवाईएस यानी कि निरंकारी यूथ सिंपोजियम आयोजित किया है. जो सन्त हरियाणा जाकर NYS कार्यक्रम नहीं देख सकता वह NYS हरियाणा 2023 Nirankari Live कार्यक्रम को ऑनलाइन भी यहाँ देख सकता है |
Note :-
Only Saints with 15 to 40 years of Age and Saints belong to State Haryana only can take part in NYS Haryana 2023 but Everyone can be present at the programme and can seek blessings of Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj and Rajpita Ramit Ji.
सभी संतो को सूचित किया जाता है कि एन.वाई.एस ( NYS ) हरियाणा 2023 मैं रजिस्ट्रेशन और हिस्सा केवल 15 से 40 वर्ष की आयु के महापुरुष ही ले सकते हैं परंतु पूरा कार्यक्रम को देख व सतगुरु माता सुदीक्षा जी और राज पिता रमित जी की रहमते सारे संत प्राप्त कर सकते हैं |
NYS Samalkha Haryana Complete Details :-
Location : Sant Nirankari Adhyatmik Sthal, Samalkha, Haryana
Date :31st March ( NYF Games Programme ), 1st to 2nd April( NYS Programme )
Nearest Railway Station : Samalkha Railway Station (SMK)
एनवाईएस हरियाणा 2023 की संपूर्ण जानकारी :-
जगह या स्थान : संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा, हरियाणा
तारीख या तिथि :31 मार्च ( एनवाईएफ गेम्स ) 1 से 2 अप्रैल ( एनवाईएस कार्यक्रम )
By visiting this👉 Link 👈 you can visit the Registration Page of NYS Haryana 2023 and enroll in the Registration Process by Filling the required Details.
Who can Participate in NYF Games and in NYS Harayana 2023 ?
Saints within the age of 15 – 40 and Saints Belong to Haryana State can participate in NYF Games and in NYS Programme but everyone can join and take blessings of Mata Ji at the Ground.
एन.वाई.एस ( NYS )हरियाणा 2023 में कैसे भाग लें ?
अगर आप भी एन.वाई.एस समालखा हरियाणा 2023 का रजिस्ट्रेशन करना चाहते हैं तो इस 👉 वेबसाइट 👈 पर जाके कर सकते हैं |
एन.वाई.एस ( NYS ) हरियाणा 2023 का रजिस्ट्रेशन कौन-कौन कर सकता है ?
सभी महापुरुषों को बता दें कि केवल 15 से 40 वर्ष की आयु के नौजवान ही एन.वाई.एस हरियाणा 2023 के लिए रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं | यह नौजवान केवल हरियाणा से ही होने चाहिए |
NYS Today Nirankari Live Online :-
NYS Haryana 2023 will also be broadcasted LIVE today here. ( Today Nirankari Live Sant Samagam )
Nirankari Samarpan Diwas 2023 समर्पण दिवस – 13 May
Nirankari Live Satsang Paschim Vihar Delhi
NYS Samalkha Haryana 2023
Nirankari Live Sangam Vihar South Delhi
Nirankari Live Matiala New Delhi
FAQs :-
What is the Full Form of NYS ?
Nirankari Youth Symposium
What is the date of NYS Haryana 2023 ?
31st March ( NYF Games Programme ), 1st – 2nd April ( NYS Programme )
What is the Full Form of NYF ?
Nirankari Youth Forum
On What NYS is based on ?
NYS is based on “The Six Elements”
What is the Aim of NYS ?
NYS is a part of NYF held by Sant Nirankari Mission. NYS specially aim for Youth to get connect with Social and Spiritual Aspect of World. If you want to Know more about NYS then click 👉 here 👈
What is NYF Games ?
NYF Games includes many Ancient Sports and Modern Sports Activites like Malkham, Cricket, Basketball, Badminton, Chess etc. performed by Youth in front of Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj and Whole Satsang. Sometimes Satguru Mata Ji also takes Part in Various Activites.
What is the location of NYS Haryana 2023 ?
Sant Nirankari Adhyatmik Sthal, Samalkha, Haryana
Which Railway Station is nearest to Nirankari Samagam Ground, Samalkha, Haryana ?
Samalkha Railway Station (SMK)
Who Can take Part in NYS and NYF Games ?
Saints who are in age group of 15 – 40 years and those who belongs to Haryana State only – can take part in these Activities. But everyone can come to ground and can enjoy the whole NYS Programme as well as can seek Blessings of Satguru Mata Sudiksha ji Maharaj and Rajpita Ramit Ji
How to do Registration of NYS Haryana 2023?
You can simply visit this 👉 link 👈 and can participate in NYS Haryana 2023.
Will the NYS Haryana 2023 Programme be Nirankari Live Today ?
Nirankari NYS : निरंकारी युवा संगोष्ठी (एनवाईएस) युवाओं के लिए संत निरंकारी मिशन द्वारा आयोजित एक वार्षिक कार्यक्रम है। NYS का उद्देश्य युवाओं को एक साथ आने और समाज को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने और इन समस्याओं का समाधान खोजने के लिए एक मंच प्रदान करना है। संगोष्ठी को युवाओं को अपने समुदायों में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सक्रिय भागीदार बनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
Nirankari Youth Symposium ( NYS 2023 )
Nirankari NYS संगोष्ठी में भाषणों, समूह चर्चाओं, कार्यशालाओं और सांस्कृतिक प्रदर्शनों सहित कार्यक्रमों और गतिविधियों की एक श्रृंखला शामिल है। संगोष्ठी का विषय साल-दर-साल बदलता रहता है, लेकिन यह हमेशा सभी धर्मों और पृष्ठभूमि के लोगों के बीच शांति, एकता और सद्भाव को बढ़ावा देने पर केंद्रित होता है।
Nirankari NYS का आयोजन 1992 से प्रतिवर्ष किया जाता रहा है और भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया भर के विभिन्न स्थानों में आयोजित किया गया है। इसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों से हजारों युवाओं ने भाग लिया है और यह कई युवाओं को सामुदायिक सेवा और सामाजिक कार्यों में सक्रिय होने के लिए प्रेरित करने में सफल रहा है।
Nirankari Samarpan Diwas 2023 समर्पण दिवस – 13 May
Nirankari Samarpan Diwas 2023 समर्पण दिवस – 13 May
By Nirankari Satsang Live
Nirankari Live Satsang Paschim Vihar Delhi
By Nirankari Satsang Live
NYS Samalkha Haryana 2023
By Nirankari Satsang Live
Nirankari Live Sangam Vihar South Delhi
By Nirankari Satsang Live
Nirankari Live Matiala New Delhi
By Nirankari Satsang Live
Aligarh Nirankari Satsang Live Today
By Nirankari Satsang Live
Nirankari Live Najafgarh Delhi
By Nirankari Satsang Live
Nirankari Live Jhilmil Colony Delhi
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Nirankari Satsang Delhi
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Nirankari Live Delhi
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Nirankari Live Delhi
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NYS Samalkha 2023
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Nirankari Live 44th Nirankari Sant Samgam Prayagraj 2023
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44 Nirankari
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Nirankari Live 44th Uttar Pradesh Nirankari Sant Samagam
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Nirankari Live European Samagam Barcelona Spain 2023
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Nirankari Live
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Nirankari Live
By Nirankari Satsang Live
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम रत्नागिरी महाराष्ट्र 2023 में किस दिन है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम रत्नागिरी महाराष्ट्र 2023 में 16 मार्च को है
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम रत्नागिरी महाराष्ट्र 2023 का समय क्या है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम रत्नागिरी महाराष्ट्र 2023 का समय 5:00 pm – 8:00 pm है
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम रत्नागिरी महाराष्ट्र 2023 का स्थान कौन सा है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रमरत्नागिरी महाराष्ट्र 2023 का स्थान Champak Maidan, Udyamnagar, Shirgaon M.I.D.C., Ratnagiri, Dist. Raigad, Maharashtra है
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम महाड़ जिला रायगढ़ महाराष्ट्र 2023 में किस दिन है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम महाड़ जिला रायगढ़ महाराष्ट्र 2023 में 15 मार्च को है
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम महाड़ जिला रायगढ़ महाराष्ट्र 2023 का समय क्या है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम महाड़ जिला रायगढ़ महाराष्ट्र 2023 का समय 5:00 pm – 8:00 pm है
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम महाड़ जिला रायगढ़ महाराष्ट्र 2023 का स्थान कौन सा है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का सत्संग कार्यक्रम महाड़ जिला रायगढ़ महाराष्ट्र 2023 का स्थान Mhada Maidan, Shedav Naka, Near Government Rular Hospital Tal Mahad, Mumbai Goa Highway, Navenagar, Mahad, Distt. Raigad, Maharashtra है
धन निरंकार जी रहमतें… बख़्शिशें ब्रह्मज्ञान से मन को उज्ज्वल करने वाला सत्गुरु है, सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के पावन सानिध्य में महाराष्ट्र और गोवा की कल्याण यात्रा के सत्संग कार्यक्रम Nirankari Live इस प्रकार से है जी :-
Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj will be blessing the devotees Nirankari Live of Maharashtra and Goa in the month of March 2023 as per the following schedule:-
महाराष्ट्र और गोवा की कल्याण यात्रा Nirankari Live Maharashtra And Goa Savalation Tour
Nirankari Live Ulhas Nagar Maharashtra 2023 Badlapur
निरंकारी सतगुरु माता जी का उल्हास नगर, बदलापुर महाराष्ट्र में सत्संग कब है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का उल्हास नगर, बदलापुर महाराष्ट्र में सत्संग 10 मार्च 2023 को है
निरंकारी सतगुरु माता जी का उल्हास नगर, बदलापुर महाराष्ट्र में सत्संग का समय क्या है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का उल्हास नगर, बदलापुर महाराष्ट्र में सत्संग का समय 4.00 PM to 8.00 PM है
निरंकारी सतगुरु माता जी का उल्हास नगर, बदलापुर महाराष्ट्र में सत्संग किस स्थान पर है ?
निरंकारी सतगुरु माता जी का उल्हास नगर, बदलापुर महाराष्ट्र में सत्संग Ambernath Taluka Krida Sankul, Near Carmel Convent High School, Ambernath – Badlapur Road, Katrap, Ambernath – 421503 पर है
निरंकारी सतगुरु माता जी महाराष्ट्र और गोवा की कल्याण 2023 यात्रा कब से शुरू होगी ?
निरंकारी सतगुरु माता जी महाराष्ट्र और गोवा की कल्याण 2023 यात्रा 10 मार्च 2023 से शुरू होगी
निरंकारी सतगुरु माता जी महाराष्ट्र और गोवा की कल्याण 2023 यात्रा कब तक चलेगी ?
निरंकारी सतगुरु माता जी महाराष्ट्र और गोवा की कल्याण 2023 यात्रा 19 मार्च तक चलेगी
हर समय निरंकार प्रभु-परमात्मा का शुकराना करना भी भक्ति है
Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
सन्त निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक विचारधारा है, एक सतत्प्रवाह है जिसमें सभी धर्मों के मानव कल्याण संबंधी पवित्र विचारों का समावेश है। धर्म के बारे में महर्षि वेदव्यास ने कहा है ‘धारयति इति धर्म:‘ । गोस्वामी जी के शब्दों में, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी फरमाते हैं, ‘मानव कल्याण‘ ही सच्चा धर्म है। धर्म का सार है – जो धारण करे वह धर्म माना जायेगा, धर्म की नींव करुणा, अहिंसा, परोपकार ही हो सकती है। जहाँ करुणा का अभिवादन नहीं, वह धर्म कैसा ? धर्म इन्सान को बेहतर इन्सान बनाने की व्यवस्था है। धर्म इन्सान के अन्दर मानवता के पुष्प खिलाता है। धर्म प्रकृति और पुरुष का मिलान कराता है, धर्म का अंतिम उद्देश्य शांति का साम्राज्य स्थापित करना है।
सन्त निरंकारी मिशन भले ही अपने को कोई धर्म या सम्प्रदाय न मानता हो फिर भी धर्म का बीज मंत्र, वास्तविक अवधारणा में मिशन खरा उतरता है संवेदना, सहनशीलता, प्रेम, मिलनवर्तन, परोपकार करुणा ही धर्म के आभूषण हैं। करुणा की मूर्ति निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी, #निरंकारी राजमाता कुलवन्त कौर जी तथा पूज्य माता सविन्दर-हरदेव जी की इस अद्वितीय त्रिवेणी ने विश्व को अच्छे इन्सान दिए हैं । सद्गुरु के रूप में निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी की छत्तीस वर्षों की कल्याण यात्राएं काल के गाल पर अमिट हस्ताक्षर छोड़ गई हैं जो मानवता के सव्र्निम इतिहास धरोहर है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
सहनशीलता धर्म का प्राण है । इतिहास साक्षी है कि सन्त परम्परा में सुकरात, ज़ीसस क्राइस्ट, महात्मा गाँधी, निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी, निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी के कथनों में कितनी समानता है, कोई विरोध नहीं कि कोई एक गाल पर चांटा मारे और दूसरा गाल भी आगे कर दो । चांटा ही क्या निरंकारी मिशन ने तो गोली मारने वाले को भी क्षमा कर दिया, कोई शिकायत नहीं, कोई विरोध नहीं । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी के महान बलिदान के बाद निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने आक्रोशित जनसमुदाय में भभकती अग्नि को जिस प्रकार शांति का उपदेश देकर शान्त किया वह अद्वितीय है। उन्होंने कहा कि आप सभी ने तो अपना सद्गुरू खोया है, दास ने तो अपना पिता और सद्गुरू दोनों खोये हैं ।
हमें मर्यादा, संयम, सहनशीलता को कायम रखते हुए इस बलिदान का मूल्य प्रेम-नम्रता, प्रीत के साथ रक्तदान देकर चुकाना है । निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी की आज्ञा पालन करते हुए मानव-एकता के नए मानक स्थापित हुए ।यह सजगता, संवेदनाबिना ब्रह्ज्ञान के संभव ही नहीं ।इस सन्दर्भ में गोस्वामी जी की पंक्तियाँ याद आती हैं- Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
ब्रह्मज्ञान को पाइके नामुज भयो जगदीस,
तुलसीऐसे मनुजको देवनवावें सीस ।
ब्रह्मज्ञानकी प्राप्ति के बाद हमारे तौर-तरीके ही बदले जाते हैं।नज़रें बदली हैं तो नज़ारे भी बदल जाते हैं।ऐसा ब्रह्मज्ञानी फूल के प्रति तो संवेदनशील होता ही है साथ ही वह काँटों के प्रति भी क्रूर नहीं होता है।बात तो जागरण की है।शुकराना,धन्यवाद की भावना ही ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के बाद प्रमुखता से मुखरित होती है।सम्पूर्ण हरदेव वाणी फ़रमाती है – Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
शुकर किए जा तू मालिक का शुकराना ही भक्ति है।
शिकवे गिले को लब पर अपने न लानाही भक्ति है।
थैंक्यू, शुक्रिया और धन्यवाद छोटा सा शब्द अपने आप में असीम संभावनाएंसमेटे हुए है।यह छोटा सा शब्द इन्सान के व्यक्तित्व को बड़ा बनता है।प्रत्येक भक्त के जीवन में इस शब्द की महती आवश्यकता है, ‘धन्यवाद‘ ! ये शब्द हमारे व्यवहार के साथ-साथ हमारे अवचेतन मन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।आभार व्यक्त करने वाले व्यक्ति अपेक्षाकृत ज्यादा खुशमिजाज़ देखे गए हैं और उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा भी खूब मिलती है।शुकराना शब्द भावनात्मक एकता का प्रतीक है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
हम दिनचर्या में देखते हैं कि एक छोटा बच्चा हमारे लिए कुछ भी करता है तो हम उसेथैंक्यू कहना नहीं भूलते, इस शब्द को सुनकर एक बछा भी एक अद्भुत जोश से भर जाता है। उसके चेहरे पर आयी खुशी को देखने के लिए हम बार-बारथैंक्यू कहने का बहाना खोजते हैं और बच्चा भी इस शब्द को सुननेके लिए दोहरे वेग से सेवा में तत्पर हो जाता है।धन्यवाद कोई शब्द नहीं, ये तो इन्सान के अन्दर से महसूस किए गए आभार का बाहरी प्रदर्शन है। आन्तरिक भाव की छलकन है, इसे आजीवन व्यवहार का हिस्सा बनाना जरूरी है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
धन निरंकारी जी संतो सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की असीम कृपा से पोचिलिमा ओडिशा निरंकारी संत समागम की विस्तृत जानकारी इस प्रकार से है | The Details of Pochilima Odisha Nirankari Sant Samagam
What is the date of Pochilima Odisha Nirankari Sant Samagam
1. DATE : 12 Feb 2023
What is the Satsang Time of Pochilima Odisha Nirankari Sant Samagam
2. TIME IST 11:00 am – 2:00 pm
What is the Location of Pochilima Odisha Nirankari Sant Samagam
3. LOCATION : Sant Nirankari Satsang Bhawan, near Sankar Eye Hospital, At/Po-Samarjhola, via. Kanchuru, District. Ganjam, Odisha 761101
Who is the Organizer of Pochilima Odisha Nirankari Sant Samagam
Sant Nirankari Mission के दूसरे सतगुरु शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी थे
निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह जी कौन थे ?
निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह जी (Nirankari Baba Gurubachan Singh Ji) एक संत थे जो Sant Nirankari Mission के दूसरे सतगुरु बाबा अवतार सिंह जी के उत्तराधिकारी थे। उन्होंने सन्त निरंकारी मिशन को उन्नत करने के लिए कई कदम उठाए जिससे सन्त निरंकारी मिशन विश्वव्यापी बन गया। सन्त निरंकारी मिशन के मूल मंत्र “अध्यात्म निर्णय” के प्रचार को अपना जीवन का उद्देश्य मानते हुए, बाबा गुरबचन सिंह जी ने अपने जीवन में अध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश दिया। उनके नेतृत्व में सन्त निरंकारी मिशन दान-धर्म, न्याय, समानता और भाईचारे के मूल्यों को समझाते हुए लोगों को आत्म ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। बाबा गुरबचन सिंह जी ने अपने जीवन के दौरान अनेक समाज सेवा कार्य किए जैसे विवाहित लोगों के लिए परिवार का आध्यात्मिक विकास, अंधविश्वास को दूर करने के लिए विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच दैनिक जीवन के समस्याओं का समाधान, समाज के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन आदि।
संत निरंकारी मिशन के पहले सतगुरु बाबा बूटा सिंह जी थे
निरंकारी सुमिरन क्या है ?
निरंकारी सुमिरन (Nirankari Sumiran) :
“तू ही निरंकार” “मैं तेरी शरण हां” “मैंनू बक्श लो”
है
What Is Nirankari Sumiran
The Nirankari Sumiran Is :
“Tu Hi Nirankar” “Main Teri Sharan Haan” “Mainu Baksh Lo”
तू ही निरंकार का क्या अर्थ है ?
तू ही निरंकार > सर्वशक्तिमान निरंकार प्रभु-परमात्मा को सम्बोधित करता है जो हर जगह, कण-कण, ज़र्रे ज़र्रे में और हमेंशां हमारे अंग-संग मौजूद है
मैं तेरी शरण हां का क्या अर्थ है ?
जब इन्सान को सतगुरु / मुर्शिद की कृपा से सर्वशक्तिमान निरंकार प्रभु-परमात्मा का बोध हासिल हो जाता है और ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है तो इन्सानी जन्म सफल हो जाता है और इन्सान का मनुष्य योनी में आने का मूल मकसद जो कि प्रभु-परमात्मा की प्राप्ति करना है वह पूरा हो जाता है जो इन्सान का लोक सुखी और परलोक सुहेला हो जाता है और इन्सान, सर्वशक्तिमान निरंकार प्रभु-परमात्मा के आगे आत्म-समर्पित हो जाता है तो इसी अवस्था को कहा गया है कि हे प्रभु : “तू ही निरंकार, मैं तेरी शरण हां”
मैंनू बक्श लो का क्या अर्थ है ?
जब इन्सान को सतगुरु की अनमोल ब्रह्मदात की सौगात प्राप्त हो जाती है और इन्सान की आत्मा, अपने जीवन के मूल उद्देश्य, जो कि परमात्मा की प्राप्ति करना है, को हासिल कर लेती है तो इन्सान सर्वशक्तिमान निरंकार प्रभु-परमात्मा के आगे नतमस्तक हो जाता है और खुद को इसके आगे आत्मसमर्पण कर देने के बाद अपने गुनाहों / पापों की माफ़ी मांगते हुए कहता है कि तू ही निरंकार, मैं तेरी शरण हां, मैंनू बक्श लो
What is the meaning of Tu Hi Nirankar ?
Only YOU are the Formless Almighty God.
What is the meaning of Main Teri Sharan Haan ?
Only YOU are the Formless Almighty God. I completely surrender unto YOU.
What is the meaning of Mainu Baksh Lo ?
Only YOU are the Formless Almighty God. I completely surrender unto YOU. Forgive all my sins.
Nirankari Youth Symposium (NYS) is an annual event organized by the Sant Nirankari Mission for the youth. The objective of NYS is to provide a platform for the youth to come together and discuss various issues affecting society and to find solutions to these problems. The symposium is designed to encourage the youth to become active participants in creating positive change in their communities. The symposium consists of a series of events and activities, including speeches, group discussions, workshops, and cultural performances. The theme of the symposium varies from year to year, but it always focuses on promoting peace, unity, and harmony among people of all religions and backgrounds. The NYS has been organized annually since 1992 and has been held in various locations around the world, including India, the United States, Canada, the United Kingdom, and Australia. It has been attended by thousands of young people from different parts of the world, and it has been successful in inspiring many young people to become active in community service and social work.
56th nirankari sant samagam maharashtra aurangabad | Day 2 | Sewadal Rally | Blessings of Her Holiness Satguru Mata Sudiksha Ji and Nirankari Rajpita Ji
56th nirankari sant samagam maharashtra aurangabad day 2 sewadal rally blessings of Her Holiness Satguru Mata Sudiksha Ji and Nirankari Rajpita Ji
The Sant Nirankari Mission is a spiritual organization that was founded in 1929 in Peshawar (Presently situated in PAKISTAN) by Baba Buta Singh Ji. The organization’s teachings are based on the belief in the unity of all religions and the importance of realizing the true self through self-realization and service to others. The Sant Nirankari Mission promotes the message of love, peace, and harmony among all people and emphasizes the importance of personal transformation to achieve a better world.
The Sant Nirankari Mission has a global presence, with centers and followers in several countries around the world. The organization conducts regular Satsang’s (spiritual discourses), meditation sessions, and community service activities to promote its message and values. The mission has also been involved in several charitable initiatives, including disaster relief efforts, healthcare, education, and environmental conservation.
Who is the Founder of Sant Nirankari Mission
Sant Nirankari Mission was founded by Baba Buta Singh Ji in 1929 in Peshawar (Presently situated in PAKISTAN). He was a spiritual leader who aimed to promote the universal brotherhood and spiritual unity among people of different religions and castes. Baba Buta Singh Ji believed in the philosophy of “Nirankar,” which means formless or without a physical body, and he preached the message of love, peace, and harmony. Today, the Sant Nirankari Mission has millions of followers across the world, and it continues to promote the message of human unity and spirituality.
Nirankari Samarpan Diwas 2023 समर्पण दिवस – 13 May
Nirankari Live Satsang Paschim Vihar Delhi
NYS Samalkha Haryana 2023
Nirankari Live Sangam Vihar South Delhi
Nirankari Live Matiala New Delhi
Who is the Founder of Sant Nirankari Mission
Sant Nirankari Mission was founded by Baba Buta Singh Ji in 1929 in Peshawar (Presently situated in PAKISTAN). He was a spiritual leader who aimed to promote the universal brotherhood and spiritual unity among people of different religions and castes. Baba Buta Singh Ji believed in the philosophy of “Nirankar,” which means formless or without a physical body, and he preached the message of love, peace, and harmony. Today, the Sant Nirankari Mission has millions of followers across the world, and it continues to promote the message of human unity and spirituality.
What is Sant Nirankari Mission
The Sant Nirankari Mission is a spiritual organization that was founded in 1929 in Peshawar (Presently situated in PAKISTAN) by Baba Buta Singh Ji. The organization’s teachings are based on the belief in the unity of all religions and the importance of realizing the true self through self-realization and service to others. The Sant Nirankari Mission promotes the message of love, peace, and harmony among all people and emphasizes the importance of personal transformation to achieve a better world. The Sant Nirankari Mission has a global presence, with centers and followers in several countries around the world. The organization conducts regular Satsang’s (spiritual discourses), meditation sessions, and community service activities to promote its message and values. The mission has also been involved in several charitable initiatives, including disaster relief efforts, healthcare, education, and environmental conservation.
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji, 13 मार्च, 1985 को बाबा हरदेव सिंह जी और माता सविंदर जी के पवित्र परिवार में जन्मी तीन बहनों में सबसे छोटी सुदीक्षा जी अपने धैर्य, शक्ति, विश्वास और ज्ञान के कारण हमेशा सबसे अलग रहीं। उन्होंने अपने छात्र जीवन में हमेशा एक गुरसिख के गुणों को बरकरार रखा। उसने मनोविज्ञान में स्नातक किया है।
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji’s Life
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji ने जीवन में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने के बाद भी, सुदीक्षा जी का निरंकार में विश्वास कभी नहीं टूटा। वह हमेशा अपने आसपास के सभी लोगों के लिए शक्ति और आनंद का स्तंभ रही है। जब 16 जुलाई 2018 को माता सविंदर हरदेव जी महाराज ने उन्हें मिशन का नेतृत्व करने की सेवा सौंपी, तो निरंकारी सद्गुरु माता सुदीक्षा जी भक्तों, विशेषकर युवाओं को एक नेक, अनुशासित और सार्थक मार्ग की ओर लगातार प्रेरित और मार्गदर्शन कर रही हैं। वह मानती हैं और उपदेश देती हैं कि ईश्वर को जानना ही संतुलित और आनंदमय जीवन जीने का एकमात्र तरीका है।
44 वां उत्तर प्रदेश निरंकारी सन्त समागम 2023 Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji की हुज़ूरी में
Who is Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj ?
Born on 13th March, 1985 in the Holy family of Baba Hardev Singh Ji and Mata Savinder Ji, the youngest of three sisters, Sudiksha Ji always stood out because of her patience, strength, faith and wisdom. She always upheld the virtues of a gursikh in her student life. She has done her bachelors in psychology. Even after facing challenging situations in life, Sudiksha Ji never lost her faith in Nirankar. She has always been a pillar of strength and joy to everyone around her. When Mata Savinder Hardev Ji Maharaj handed over the sewa of leading the Mission to her on 16th July 2018, Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji has been continuously motivating and guiding the devotees, especially the youth towards a righteous, disciplined and meaningful path. She believes and preaches that Knowing God is the only way to lead a balanced and blissful life. Ever since Satguru Mata Ji was consecrated as the sixth Master of the Nirankari Mission, she has been travelling to every nook and corner of India to spread the message of Love and Peace, by establishing the connect of a soul with the oversoul, the formless God. Her tours across the world have stabilized the wavering minds of the youngsters, giving them both direction and purpose. Her life partner, Rev Ramit Chandna Ji, has been walking shoulder to shoulder with her on this path of benevolence and human welfare. The journey of Nirankari Youth Symposiums (NYS), held in India and abroad, vividly bring forth the vision of Satguru Mata Ji. NYS has been a revolutionary step wherein the youth has found a platform for expression of their thoughts along with a methodical understanding of their doubts. Mata Sudiksha Ji not only wants people to know God, but to know God in true essence. It is with the blessings and guidance of Satguru Mata Ji that the Mission and its volunteers could serve lakhs of affected people during the current Covid-19 crisis, when lockdown forced people to stay where they were. Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji preaches acceptance of God’s will, doing our best in every field, working hard as a team, so as to ascertain organic and holistic growth of our society. She advocates wise use of natural resources, conserving and preserving energy in every possible way. Thus, in simple words, it would be no exaggeration to state that Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj is a spiritual master who loves to lead by example. Sheltering the faith of every disciple, Your devoted life is a living example, Be it the rains or the blaring sun, You witnessed and believed the only one
When was Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj born?
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj born on 13th March, 1985 in the Holy family of Baba Hardev Singh Ji and Mata Savinder Ji, the youngest of three sisters, Sudiksha Ji always stood out because of her patience, strength, faith and wisdom.
Nirankari Samarpan Diwas 2023 समर्पण दिवस – 13 May
Dhan Nirankar ji Santo🙏🏻ब्रह्मज्ञान से मन को उज्ज्वल करने वाला सत्गुरु है और यही उज्ज्वलता लेकर एक बार फिर से सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज हमें भरपूर रहमतें और बख़्शिशें हम सब की झोलियों में डालने Nirankari Live Delhi आ रहे हैं जी
दिल्ली बुराड़ी में निरंकारी सत्संग ग्राउंड नंबर 8 में सत्संग कब से शुरू हो रहा है ?
दिल्ली बुराड़ी में निरंकारी सत्संग ग्राउंड नंबर 8 में सत्संग दिनांक 11 दिसम्बर 2022 से शुरू हो रहा है .
Satguru is the one who enlightens the mind with the knowledge of Brahman and taking this brightness once again Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj is coming to Nirankari Live Delhi to shower abundant blessings and blessings on us all 🌸 Divine Blessings by Her Holiness Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj ji.
दिल्ली बुराड़ी में निरंकारी सत्संग ग्राउंड नंबर 8 में सत्संग का समय क्या है ?
दिल्ली बुराड़ी में निरंकारी सत्संग ग्राउंड नंबर 8 में सत्संग का समय सुबह के 11 बजे से दोपहर के 14:30 बजे तक है .
Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj ji ke पावन सानिध्य में एक विशाल सत्संग कार्यक्रम ग्राउंड न. 8, बुराड़ी रोड, दिल्ली में आयोजन होना निश्चित हुआ है। A huge satsang program in the holy presence of Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj ji at Ground no. 8, Burari Road, Delhi has been decided to be held.
दिल्ली बुराड़ी में निरंकारी सत्संग ग्राउंड नंबर 8 में सत्संग पहुँचने के लिए नजदीकी मेट्रो स्टेशन कौन सा है ?
दिल्ली बुराड़ी में निरंकारी सत्संग ग्राउंड नंबर 8 में सत्संग पहुँचने के लिए नजदीकी मेट्रो स्टेशन मजलिस पार्क है
जिसका समय – 11 दिसंबर 2022 ,रविवार, सुबह 11:00 से दोपहर 2:30 बजे तक रहेगा और इस विशाल सत्संग का स्थान- ग्राउंड नंबर- 8 बुराड़ी रोड, दिल्ली Nirankari Live Delhi रहेगा जी . Whose time – 11 December 2022, Sunday, will be from 11:00 am to 2:30 pm and the place of this huge satsang – Ground No. – 8 Burari Road, Delhi Nirankari Live Delhi will remain.
यहाँ Nirankari Live Delhi पहुँचने के लिए नज़दीकी मेट्रो स्टेशन – मजलिस पार्क (पिंक लाइन) ग्राउंड न. 8 से 2.7 कि. मी. की दूरी पर है जी . Nearest metro station to reach Nirankari Live Delhi is Majlis Park (Pink Line) Ground No. 8 to 2.7 km m. G is at a distance of .
दिल्ली NCR की किसी भी ब्रांच में इस दिन सत्संग का कोई भी कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा। No program of Satsang will be organized on this day in any branch of Delhi NCR.
विशेष नोट:- मुकरबा चौक एवं निरंकारी कॉलोनी की तरफ से आने वाले वाहन निरंकारी चौक से ना मुड़ कर आउटर रिंग रोड के जगतपुर मोड़ से बाएं होकर ग्राउंड नंबर 8 के हरदेव नगर की तरफ के गेट से एंट्री करेंगे। इसी प्रकार ISBT की तरफ से आने वाले वाहन जगतपुर की ओर जाने वाला फ्लाई ओवर लेकर हरदेव नगर- झरोदा वाले रोड से होते हुए ग्राउंड नंबर 8Nirankari Live Delhi में एंट्री करेंगे।
Special Note:- Vehicles coming from Mukarba Chowk and Nirankari Colony will not turn from Nirankari Chowk and take left from Jagatpur turn of Outer Ring Road and enter through Hardev Nagar side gate of Ground No.8. Similarly, Nirankari Live Delhi vehicles coming from ISBT side will take the flyover towards Jagatpur and enter Ground No. 8 via Hardev Nagar-Jharoda Road. | Satsang Program Nirankari Live Delhi 2022
इस कार्यक्रम Nirankari Live Delhi की सूचना शीघ्र सर्व साध संगत तक पहुंचा दें ताकि सभी महात्मा सत्संग का लाभ प्राप्त कर पाएं ।
The information of this program should be conveyed to all the people as soon as possible so that everyone can get the benefit of the Mahatma’s satsang.
दिल्ली एवं ग्रेटर-दिल्ली के प्रबंधक महात्मा कृपया ध्यान दें कि इस दिन रविवार को दिल्ली, ग्रेटर-दिल्ली की किसी भी ब्रांच में सत्संग का कोई भी कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा और साथ ही आप सभी प्रबंधक महात्माओं के चरणों में प्रार्थना है कि इस कार्यक्रम की सूचना शीघ्र सर्व साध संगत तक पहुंचा दें ताकि सभी महात्मा सत्संग का लाभ प्राप्त कर पाएं ।
Manager Mahatma of Delhi and Greater-Delhi Please note that on this day Sunday, no program of satsang will be organized in any branch of Delhi, Greater-Delhi and also we pray at the feet of all the Manager Mahatmas that this program The information should be conveyed to all the people immediately so that everyone can get the benefit of the Mahatma’s satsang.
मुकरबा चौक एवं निरंकारी कॉलोनी की तरफ से आने वाले वाहन निरंकारी चौक से ना मुड़ कर आउटर रिंग रोड के जगतपुर मोड़ से बाएं होकर ग्राउंड नंबर 8 के हरदेव नगर की तरफ के गेट से एंट्री करेंगे। इसी प्रकार ISBT की तरफ से आने वाले वाहन जगतपुर की ओर जाने वाला फ्लाई ओवर लेकर हरदेव नगर- झरोदा वाले रोड से होते हुए ग्राउंड नंबर 8Nirankari Live Delhi में एंट्री करेंगे।
निरंकारी सन्त समागम क्या है ?
एक रूहानी संसार है निरंकारी सन्त समागम. जहाँ रूहानियत और इंसानियत का संग-संग मेल होता है.
What is Nirankari Saint Samagam?
Nirankari Saint Samagam is a spiritual world. Where there is harmony of spirituality and humanity.
धन निरंकार जी संतो ! आप सभी को यह जानकार बहुत ही ख़ुशी होगी कि लम्बे समय से आप सभी को जिस रूहानियत की घड़ी का इंतज़ार था वो घड़ी अब सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की असीम कृपा से 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam ( 56वां महाराष्ट्र वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 2023 ) के रूप में हमारी झोलियों में आ रही हैं . Maharashtra’s 56th Annual Nirankari Sant Samagam : Annual Maharashtra Nirankari Samagam Dates Announced.
गुरु की प्यारी साध संगत जी, महाराष्ट्र का 56वां वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam जो कि औरंगाबाद, महाराष्ट्र में दिनांक 27 से 29 जनवरी 2023 में होने जा रहा है जिसमें देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु सन्त, महापुरुष हिस्सा लेंगे और
निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की रहनुमाई में इस वार्षिक निरंकारी सन्त समागम56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam का आयोजन लम्बे समय के अंतराल के बाद ( दो वर्षों से तथा पिछले वर्ष ऑनलाइन होने के बाद ) इस बार यह ऑफ़ लाइन रूप में होगा जिसमें विश्व भर के मानव इंसानियत की राह पर चलते हुए आपसी भाईचारे का सन्देश देते हुए आत्मा का परमात्मा से मिलन का आनंद लेते हुए रूहानियत और इंसानियत का सफ़र संग-संग तय करेंगे . Nirankari Live Aurangabad .
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 में किस जगह है ? ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की असीम कृपा से इस बार 56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 में औरंगाबाद शहर में होने जा रहा है . ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 में कितने दिनों का है ? ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 वैसे तो हर साल की तरह तीन दिनों का लेकिन गुरु वन्दना कार्यक्रम को मिलाकर चार दिनों का हो जायेगा जी . ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 में कौन से माह में होगा ? ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 में जनवरी माह में होगा जी . ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 की तारीख़ कौन-कौन सी हैं जी ? ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 की तारीख़ जनवरी माह की 27 , 28 व 29 तीन तारीख़ हैं जी . ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 गुरु वन्दना कब की है जी ? ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 गुरु वन्दना दिनांक 30 जनवरी 2023 की है जी . ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 में औरंगाबाद जाने के लिए मुम्बई से दूरी कितने किलोमीटर की है जी ? ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
56वां महाराष्ट्र निरंकारी सन्त समागम 2023 में औरंगाबाद जाने के लिए मुम्बई से दूरी राष्ट्रीय राजमार्ग 160 से जायेंगे तो यह दूरी 361.5 किलोमीटर की और यदि राष्ट्रीय राजमार्ग 753F से जायेंगे तो यह दूरी 378 किलोमीटर की पड़ेगी जी . ( 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam2023 )
Bhopal Nirankari Satsang धन निरंकार जी संतो ! आज का दिन भोपाल की संगत के लिए बहुत ही ख़ास है क्योंकि आज समय के रहबर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी ने यहाँ की तमाम संगत की झोलियाँ खुशियों से भर दीं क्योंकि बहुत लम्बे समय से ऐसे खुले में संगतें जहाँ एक ओर अपने सतगुरु के दर्शनों को तरस रहीं थीं वहीँ सतगुरु ने भी साक्षात अपने दर्शनों से संगतों पर रहमतें बरसायीं !
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की हजूरी में यहाँ की संगतों ने कविताओं, गीतों-भजनों का प्रयोग करते हुए तथा निरंकार प्रभु-परमात्मा का गुणगान करते हुए बहुत ही सुंदर ढंग से सत्संग का आनन्द दोगुना कर दिया और सतगुरु का आशीर्वाद प्राप्त किया ! निरंकारी सेवादल ने भी बहुत ही सुंदर ढंग से मर्यादापूर्वक संतो का आदर सत्कार किया और अपनी सेवा अच्छे से निभाई ! बाल संगत ने भी सतगुरु माता जी का आशर्वाद प्राप्त किया और सतगुरु माता जी से बाल संगत बढ़ने की कामना भी करी ताकि सभी अपनी ज़िन्दगी में निरंकार का सहारा ले कर अपना लोक सुखी और परलोक सुहेला करते चले जायें !
Nirankari Satsang Indore धन निरंकार जी संतो ! सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की रहमतों की लड़ी में आज इंदौर में विशाल संख्या में एकत्रित हो कर तथा कोविड के प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए तथा मर्यादित अवस्था में सभी सन्तजनों ने अपनी झोलियाँ, सतगुरु माता जी के आशीर्वाद और रहमतों से भर कर अपने जीवन को आनंदित किया !
इस सुन्दर सत्संग कार्यक्रम के दौरान, गीतों, कविताओं गाते हुए और निरंकार प्रभु परमात्मा का यशोगान करते हुए तथा आनंद लेते हुए सन्तजनों ने अपने जीवन को धन्य किया और एकता का सुंदर रूप सुशोभित किया !
इंदौर की समस्त साध-संगत, आज यहाँ सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के आगमन पर और अपनी रहमतों की बरसात करने के लिए बहुत-बहुत शुक्र गुजार है ! सतगुरु माता जी से यही अरदास है कि ये रहमतों की बरसात का सिलसला यूं ही सदैव निरन्तर संतो की झोलियों में डालते रहना और सबका कल्याण करते रहना जी ! प्यार से कहना, धन निरंकार जी !
75th Nirankari Sant Samagam Dates 2022 | धन निरंकार जी संतो ! आप सभी को यह जानकार ख़ुशी होगी कि बहुत लम्बे इंतज़ार के बाद सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की असीम कृपा से इस वर्ष समालखा में 75 वां वार्षिक निरंकारी सन्त समागम होने जा रहा है और यह रहमतों भरा आशीर्वाद दिनांक 16 नवम्बर 2022 से शुरू हो जायेगा और यह 22 नवम्बर 2022 तक चलेगा !
75th Nirankari Sant Samagam Dates
पहला दिन, (बुधवार)16 नवम्बर 2022
सन्त निरंकारी सेवादल द्वारा भक्तिमयी व सेवादल रैली की प्रस्तुति !
सभी संतजन, सतगुरु माता जी का आशीर्वाद पाने के लिए और विश्व-बन्धुत्व को स्थापित करने के लिए आज, अभी इसी क्षण से ही 75 वें वार्षिक निरंकारी सन्त समागम में पहुँचने की तैयारियाँ शुरू कर लें जी !
बोलिए सतगुरु माता सुदीक्षा सविंदर हरदेव जी महाराज कि जय !
वैसे तो 75 वां निरंकारी सन्त समागम 4 दिन का है ! लेकिन सेवादल रैली, सत्संग कार्यक्रम, प्रभात फेरी और गुरु वन्दना को मिलाकर इस बार कुल 7 दिनों का समागम है जी !
Nirankari Vichar In English, The human race stands at the crossroads of history today. On the one side, we have scientific achievements empowering us like never before to bring us closer to each other. Progress in communications and technology has enabled to us to meet people, through virtual means, in other parts of the world, in real time. We can see their environments, share their experiences and view their worlds through their perspective all from the comfort of our homes. On the other side, we are witnessing events in the world where sectarian and religious based violence is uprooting civilizations; Nirankari Vichar In English millions are migrating from the Middle East to Europe; and fringe elements are using the same technological advancements to wreak havoc. Through systematic brain washing, young and tender minds are being groomed to unleash hatred, even to the extent of using their own bodies as weapons of destruction.
When the going gets tough, the tough gets going. In these tough times of world wide violence, it becomes ever important to spread the light of peaceful coexistence, which His Holiness Nirankari Babaji spent his entire life propagating and Mata Savinder Ji taking it further with added vigour.
One of the primary messages Babaji shared through the Nirankari Mission was human unity. This vision has since been further elaborated upon by the present spiritual leader of the Mission, Her Holiness Satguru Mata Savinder Hardev ji (who we lovingly refer to as ‘Mataji), who counselled that we must first recognize our common origin and foundation in Almighty God, who is all pervading, omnipresent and all powerful. When this realization dawns we recognise that we are all children of the same Universal God and are therefore brothers and sisters.
It is upon this revelation, that we are all in fact linked by a bond greater than genetics or law, that the human mind can begin to view
When the going gets tough, the tough gets going. In these tough times of world wide violence, it becomes ever important to spread the light of peaceful coexistence, which His Holiness Nirankari Babaji spent his entire life propagating and Mata Savinder Ji taking it further with added vigour.
Human beings as part of the same family, and not as strangers. Once we see others as family, there is a better likelihood we can treat one another with a level of love, compassion and respect that we previously only reserved for relatives and friends. On the whole, our actions become much more aligned with what is expected of persons that live an ethical and moral life.
Mataji is preparing us to change our very mindset and our elevate our mode of action. It is to this effect that the Convention on Humanness (a tribute to the life and teachings of His Holiness Nirankari Baba) has been organized in Toronto Canada in the Summer of 2016.
A poet has elaborated the message of theMission in these words:
Oneness of humanity is what the Mission preaches;
And love and harmony amongst all, is what we strive for!
If we take a global view, all of us are travelling in the ‘one boat that is our society. We have all been given an oar help the direction. Should we start rowing in different directions, society will remain at a standstill, or move in circles. However, if all members of the team row in the same direction in the same frequency we will see true progress. This alignment is called synchronous action.
If we believe in the message of Mataji – then we have a shared vision of being united in One God, regardless of the names we give to this power, and regardless of the book or faith that we ascribe to. This understanding, and the follow-on transformation in out thinking and behaviour, is referred to as Enlightenment. The central catalyst for this change comes through the vision of Oneness, or Gyan, that Satguru Mataji is now sharing with anyone who wishes to know.
Our common goal –
‘A world living in love and harmony imbibing all the virtues of humanity’ –
brings us together to participate in events such as the Tribute to Humanness. Now we need synchronous action so that this vision and goal is adopted far and wide.
The synchronous action would have two parts. One is an internal metamorphosis which happens when we imbibe Gyan in its entirety and do not dilute Mataji’s guidance to our convenience. The other is sincere and diligent effort to live the message, so that we practically stand shoulder to shoulder with all our brethren on earth. Sant Nirankari Mission
Let this shared vision and common goal be in our mind when we try and assist the efforts of Her Holiness.
This is a virtuous path. Swami Vivekananda put it well, when he said;
‘Arisel Awake! and stop not until the goal is reached.’ Nirankari Vichar In English
Nirankari Live Today गुरसिख जो होता है वो दास ही बनकर रहता है। उसके हृदय में दास भावना होती है। वो इस पल, एक पल या कुछ पल के लिये नहीं बल्कि दम दम पल-पल दास ही बनके रहता है। उसकी भावना भक्ति वाली होती है, विनम्रता वाली होती है। दास भावना, जिसके हृदय में बस जाती है, वही ऊँचाइयों को प्राप्त कर लेता है।
गुरसिख वही कार्य करता है
गुरसिख वही कार्य करता है जिस तरफ गुरु का इशारा आ जाता है। गुरसिख उसी तरफ को ही, ‘क्यों और किंतु किए बगैर बढ़ता जाता है। उसमें कोई अपनी अक्ल नहीं लगाता है। उसमें कोई और चतुराई नहीं ले आता है। वो तो जैसे इशारा आया उसी को ही हुक्म मानकर, उसको सर आँखों पर ले लेता है और फिर नतमस्तक हो जाता है। जो काम Nirankari Live Today आशय के अनुसार किये जाते हैं, वही शोभायमान हुआ करते हैं। वही होते हैं जो हमारे जीवन में आनंद ले आते हैं।
मुझे तो सलीका ही नहीं है
लाख सयाना हो लेकिन गुरसिख अपने आप को मूढ़ मानता है। मैं कौन हूँ विचार करने वाला। मैं कौन हूँ विद्वता की बात करने वाला। मैं तो एक मूर्ख-सा हूँ, मुझे कोई ढंग नहीं है। विद्वता तो दूर की बात, मुझे तो उठने-बैठने का भी सलीका नहीं है। मुझे तो सलीका ही नहीं है कि भक्तों का कैसे सत्कार किया जाता है। मुझे तो सलीका ही नहीं है कि सेवा कैसे की जाती है… Sant Nirankari Mission।
गुरसिख अपने आपको चरण रज मानता है
वो लाख दौलत वाला हो लेकिन वो अपने आपको चरण रज मानता है कि मैं तो एक धूल से भी ज्यादा नहीं हूँ। मैं कहीं का दौलतमंद हूँ। ठीक है चार पैसे अगर आ गये हैं तो ये भाव नहीं है कि मैं बहुत ऊँचा हो गया हूँ और बाकी मेरे से नीचे दर्जे वाले हो गये हैं।
जो दौलत गुरु ने, ( मुर्शद ने ) बख्शी है
जो दौलत मुझे गुरु ने बख्शी है, उस दौलत के कारण ही मैं अमीर हूँ।…Nirankari Live Today.
जो दौलत मुझे गुरु ने, ( मुर्शद ने ) बख्शी है इसी दौलत के कारण मैं अमीर हूँ बाकी दौलतों के कारण मैं अमीर नहीं हूँ।
गुरसिख अपने अस्तित्व को मिटा देता है
गुरसिख अपने आपको मुका देता है। यानि कि अपने अस्तित्व को मिटा देता है। मैं कौन हूँ? मेरा तो कोई अस्तित्व ही नहीं है। मेरा तो कोई वजूद ही नहीं है। एक बुलबुले का तो वजूद हो सकता है, मेरा तो उतना भी वजूद नहीं है। अगर कहीं भूल से भी कोई ऐसी बात हो जाती है तब भी भक्त के मन में ग्लानि का भाव आ जाता है, जैसे कोई डर जाता है, भय में आ जाता है कि कहीं मेरे से कोई ऐसी चूक तो नहीं हो गई है। दूसरी तरफ संसार में सरेआम गुनाह करके फिर भी छाती चौड़ी की जाती है, का सरेआम गुनाह करको फिर भी स र उठायें फिरते है और यहीं मानते हैं कि पता नहीं क्या-क्या हमने प्राप्ति कर ली है।
गुरसिख जो होता है वो कर्म करता है, वो अपनी जिम्मेदारियाँ निभाता है, वो अपनी भक्ति निभाता है। निष्काम भक्ति की महत्ता है, इसलिये वो कर्म भी निष्काम करता है। वो कामनाओं के साथ नहीं जोड़ता है। Nirankari Live Today जैसे पहले भी महापुरुषों-संतों ने कहा है कि इबादत और बंदगी, उसकी है। वो कीमत नहीं मांगता। जो भक्त होता है वो निष्काम भावना वाला होता है।
ऐसे गुरसिख का नाम रोशन हो जाता है। उसका रुतबा बुलंद हो जाता है। हमेशा-हमेशा के लिये उसको ऊँचा स्थान प्राप्त हो जाता है। जिन्होंने इस सच्ची दौलत से अपने आपको अमीर बनाया। जो आदेश आये उसी अनुसार अपने आपको चलाया। वही है जिन्होंने ऊँचा रुतबा प्राप्त कर लिया। जिस स्थान कोई उनको हिला नहीं सका। चाहे सदियों बीत गई, चाहे युग बीत गये लेकिन जो स्थान उनको प्राप्त हुआ वो आज तक वो स्थान प्राप्त है। उसको कोई धूमिल नहीं कर सका है। ऐसे गुरसिखों का नाम रोशन हो जाता है जिन्होंने समर्पण भाव से अपने आपको है।…Nirankari Live Today
गुरसिख कौन होता है ?
Nirankari Live Today गुरसिख जो होता है वो दास ही बनकर रहता है।
गुरसिख की दौलत कौन सी होती है ?
ब्रह्म-ज्ञान की दात वाली दौलत, जो की मुर्शिद (सतगुरु) बक्शते हैं वो दौलत गुरसिख की असली दौलत हुआ करती है।…Nirankari Live Today
सद्गुरु के दर पर ऊँचाइयों को कौन छूता है ?
दास भावना, जिसके हृदय में बस जाती है, वही ऊँचाइयों को प्राप्त कर लेता है।…Nirankari Live Today
Todays Nirankari Vichar, युगों-युगों से गुरु, पीर, पैग़म्बर मानवता के कल्याण के लिए मानव रूप में अवतरित होते रहे हैं। वेद, ग्रन्थ, शास्त्र और उपनिषद् सभी सद्गुरु की महिमा गुणगान करते हैं। सद्गुरु की महिमा असीम, अनन्त और अपरम्पार है।
गुरु का शाब्दिक अर्थ | Aaj Ki Nirankari Vichar
गुरु का शाब्दिक अर्थ ही है- अज्ञानता या अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। पर संसार में बहुत से लोगों की अलग-अलग विचारधाराएं होती हैं। कुछ ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं और कुछ लोग ईश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं। वो सूरज, चाँद-सितारों और पृथ्वी आदि को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं। बेशक आज विज्ञान के आविष्कारों और खोजों से पूरे विश्व में तरक्की की लहर फैल गई है। दिनों की दूरियां घंटों में बदल गई हैं। और घंटों की दूरियां मिन्टों में रह गई है।
विज्ञान की भूमिका | Nirankari Vichar
विज्ञान से लोगों के जीवन में सुविधाएं बढ़ गई हैं पर फिर भी यह प्रश्न तो मन में उठते ही रहते हैं। कि क्या इन वैज्ञानिक खोजों से पूरे संसार में शान्ति और अमन भी स्थापित हो सकती है? क्या प्यार, नम्रता, विश्वास, एकता और मानवता को नापने के बैरामीटर भी बन सकते हैं? क्या हम सब एक ही हैं की ऐसी छबि भी बन सकती Nirankari Vichar है?
अगर विज्ञान ये सब दे सकता तो सबसे पहले संसार के लोगों का नजरिया ही बदल दिया जाना सम्भव हो जाता और धर्म-जाति, रंग-भेद जैसी भयावह स्थितियों को खत्म कर दिया गया होता और मिलवर्तन और विश्व बन्धुत्व का भाव लोगों के हृदयों में बस गया होता।
परमात्मा क्या है ?
गहराई से विचार करें तो हम पायेंगे कि विज्ञान के ज्ञान की एक सीमा रेखा है, परन्तु निराकार परमात्मा अनन्त और अविनाशी है। प्रभु परमात्मा के स्वरूप की जानकारी इस सृष्टि में केवल सद्गुरु ही प्रदान कर सकते हैं।
सतगुरु की कृपा
इसलिए यह भी मानना ही होगा कि सद्गुरु की कृपा के बिना ज्ञान पथ पर आगे बढ़ पाना असम्भव है। सद्गुरु परमात्मा और अपने गुरसिख के बीच एक सेतु का काम करते हैं। वो गुरसिख वो निराकार के दर्शन कराके ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं। उसे जीवन जीने की कला सिखाते हैं।
बाबा हरदेव सिंह जी का संदेश
अक्सर बाबा हरदेव सिंह जी महाराज अपने विचारों Nirankari Vichar में दोहराते थे कि मनुष्य चाँद तक पहुँच गया पर उसे धरती पर अभी तक चलना नहीं आया है।” धरती पर चलने के लिए हमें सद्गुरु के चरण चिन्हों का अनुसरण करते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलना होगा। तभी हमारे दिलों की दूरियां खत्म होगी और सम्पूर्ण विश्व एकता के बंधन में बंधकर मानव के वास्तविक स्वरूप जो सेवा, करुणा और मानवता से जुड़ा है वो सार्थक हो जाएगा।
क्या वैज्ञानिक खोजों से पूरे संसार में शान्ति और अमन भी स्थापित हो सकती है?
नहीं, वैज्ञानिक खोजों से पूरे संसार में शान्ति और अमन स्थापित नहीं हो सकता बल्कि सतगुरु की कृपा से यह संभव है ।
सतगुरु किसे कहते हैं ?
अज्ञानता या अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला, प्रभु से नाता जोड़ने वाला सतगुरु होता है।
Nirankari Online Satsang | प्यारी साध-संगत जी प्यार से कहना, धन निरंकार जी !
सतगुरु माता सुदीक्षा जी का विश्व के नाम सन्देश
सच्चाई और प्यार से एकत्व भाव बढ़ाएं
Live Nirankari Satsang
वर्ष 2020 से हम सभी परिचित हैं कि जहां हर एक की रूटीन बदल गई वहीँ इसका प्रभाव पूरे संसार पर पड़ा। Nirankari Online Satsang किसे तरह किसी ने माया चाहे जितनी भी बटोर ली पर जब लॉकडाउन का समय आया तो Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji वह माया इस्तेमाल नहीं हो पाई।
Live Nirankari Satsang
चाहे घर भी बना लिए अच्छे से अच्छे पर यातायात बन्द होने से कहीं आ-जा नहीं सकते। देखा गया कि महंगे घर भी किसी Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji काम के नहीं रहे। महंगी से महंगी गाड़ियों को भी कहीं ले जाना स्वीकृत नहीं था तो उनका भी कोई लाभ नहीं हुआ।
माया तो एक भ्रम है | Nirankari Vichar
Live Nirankari Satsang
युगों-युगों से सन्तों की वाणी में श्रवण करते हैं कि माया ही सब कुछ नहीं है, इसी को सब कुछ न बनायें। माया तो एक भ्रम है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiजितना काम हो, इसका सदुपयोग करें, नहीं तो माया का भ्रम जो दिखता है वह प्रासंगिक नहीं है। Nirankari Online Satsang सन्तों ने इन्सान से कहा कि कैसे प्यार, नम्रता, दया, करुणा, आदर ने ही हमारे जीवन को सुन्दर बनाना है। Nirankari Online Satsang can be change our life. The purpose of Nirankari Online Satsang is universal brotherhood.
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आपस में प्यार की पकड़ मजबूत | Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
अभी लॉकडाउन में भी इसको नकारात्मक रूप में नहीं लिया गया बल्कि इसको इस तरह देखा गया कि कैसे हमें अवसर मिला है, हम अपने काम-काज में व्यस्त रहते थे, अब परिवार को समय दे Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji पा रहे हैं। इसने हमें सिखाया, घरों में आपस में प्यार दिया और प्यार की पकड़ मजबूत हुई।
कहीं पर भी यदि कोई जरूरत है, जीवन में कोई कठिनाई है तो चाहे व्यक्तिगत रूप में दे पाएं, हमने Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji लॉकडाउन की स्थिति में समझा कि यह पूरा संसार ही अपना है। किसी की जरूरत की वह चीज यदि हमारे सामर्थ्य में है Nirankari Online Satsang कि हम दे सकें तो वह उसे पहुंचाई जाए।
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मानवता को अपनाना है | Satguru Mata Ji Vichar
मानवता ही सच्चा धर्म है, हम यदि इन्सान हैं तो इसी सच्चे धर्म को अपनाना है। हमें एकजुट होकर संसार को सिर्फ़ प्यार देना है, एक दूसरे को अपना Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji मानना है। कोई भेदभाव नहीं, बस प्यार ही करना है। Nirankari Online Satsang यही आशा, यही कामना हर एक के मन में, हर एक के लिए प्यार रहे, किसी ऐसी स्थिति से न आना पड़े कि हमने संसार में तो रहना है पर लगाव इस तरह नहीं।
प्यार, नम्रता व एकता इंसानों का गहना है ।
प्यार सजाये गुलशन को नफरत वीरान करे।
संतों की संगती जीवन में निखार लती है।
भक्त हमेशां अकर्ता भाव से युक्त रहता है।
धर्म की पहचान केवल आचरण द्वारा ही सम्भव है।
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Live Nirankari Satsang
एकत्व का भाव अपनाएं | Niranakari Live Satsang
हमने साधनों को साधन ही समझना है, उन पर अपने जीवन को आधारित नहीं कर लेना। जितना-जितना सच्चाई की Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji और बढ़ेंगे, जितना प्यार दिलों में बढ़ता जाएगा उतनी मजबूती से हम एकत्व का भाव बनाएंगे। Nirankari Online Satsang जितना गहरा रिश्ता होगा उतनी ही स्थिरता आएगी।
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि : सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा, जैसे हमने उसके प्रति अपनी धारणा बना ली है।
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | As is the Vision, so is the Creation
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि : सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा, जैसे हमने उसके प्रति अपनी धारणा बना ली है। हम सभी अपना नज़रिया ऐसा बनाएं जैसे कि हम सृष्टि को देखना चाहते हैं। सौन्दर्य तो दर्शक की आँखों में होता है इसलिए अगर हम अपनी दृष्टि सुंदर रखेंगे तो हमें सृष्टि भी सुंदर लगेगी। किसी की तो तमाम खामियों के बावजूद हम उसे बहुत प्यार से के देखते हैं, जबकि किसी की तमाम खूबियाँ भूलकर, एक खामी की वजह से हम उस इन्सान को अपने मन से उतार देते हैं और उससे बात करना छोड़ देते हैं। इसलिए हम सभी को खुद को स्थिर रखने की आवश्यकता है। यह विचार सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
अक्सर हमारी आँखों में ही गलती होती है-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | Our Eyes are Often at Fault
अक्सर हमारी आँखों में ही गलती होती है यानि कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, बेशक हमारी नीयत ठीक हो। उदाहरण के तौर पर जिस बुजुर्ग इंसान को हमने सड़क पार करा दी, बाद में पता चला कि उसे इसकी जरूरत नहीं थी। चूक हो गई क्योंकि सामने वाले की जरूरत को बिना समझे हमने निर्णय ले लिया।
हमने परछाई को ही हकीकत बना दिया-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | We Turned the Shadow into Reality
एक और उदाहरण भी हमने सुना है कि हम बार-बार एक चीज को पानी में से निकालने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी हम उसे पानी से निकाल नहीं पा रहे क्योंकि कोई वह कीमती चीज तो दरअसल पेड़ पर टंगी है और उसकी परछाई ही पानी में दिखाई दे रही है। हमने परछाई को ही हकीकत बना दिया।
ऐसा भी होता है कि हमने किसी कमरे में प्रवेश किया और वहाँ दो व्यक्तियों के बीच पहले से ही कोई वार्तालाप चल रहा है। हमने पीछे की बात सुनी नहीं और सामने वाले के प्रति हम अपनी एक धारणा बना कर बैठ जाते हैं। बहुत बार जो दिखाई देता है, सुनाई देता है वह सही नहीं होता। जब हमने परमात्मा को मन में बसा लिया, अपने हर ख्याल में बसा लिया तो हमें संदेह का लाभ किसी और को देना आ जाए, बेशक गलती किसी से भी हुई हो।
किसी का स्वभाव कैसा भी हो, हम यह मानें कि हमारा नज़रिया ही ठीक नहीं। किसी को देखकर कई बार लगता है कि यह व्यक्ति कुछ अजीब-सा है। उसके पीछे भी कोई कारण तो रहा होगा। हो सकता है. उसको कुछ अच्छे अनुभव ना हुए हों और हालात की वजह से उसके अंदर कड़वापन आ गया हो।
अपने नजरिए में जब हम निरंकार को बसा लेते हैं फिर हमें हर चीज पावन व पुनीत दिखती है जैसा निरंकार ने उसे मूल रूप से बनाया है। इन्सान के शरीर द्वारा गलतियां होने पर भी रूह तो निरंकार का अंश है।
इस शरीर पर माया का असर होता है क्योंकि मानवीय अनुभव शरीर से होता है। निरंकार को याद रखने से माया का रंग भी अपने आप उतरता चला जाता है और शरीर में रहते हुए, परमात्मा से इकमिक हो कर जीना संभव हो जाता है।
माया में लिपायमान हुए लोगों को ये ईश्वरीय मनुष्य आवाज देते हैं कि इंसान बन जाओ और बताते हैं कि इंसान वह हैं जिनके हृदय में समस्त जगत के लिए दर्द है और जिनके हृदय में दूसरे के लिए दुख नहीं है वे पशु हैं।
लोग आज कल पशुओं की तरह बेकार ही लड़ते हैं और धर्मों का झमेला खड़ा कर रहे हैं कि यह सिक्ख है, यह हिन्दू है, यह मुसलमान है और यह ईसाई है। वास्तव में न कोई हिन्दू है, न ईसाई, न सिख और न मुसलमान, ये सब ईश्वर के बनाये हुये इंसान है।
मनुष्य का मनुष्योचित व्यवहार मानवता है। मानवता सन्त महापुरुषों के अत्यन्त महत्वपूर्ण उद्घोष मनुर्भव का अनुपालन है। मानवता मनुष्यत्व का संविधान है जिसमें मनुष्य को क्या करना चाहिए अर्थात् प्यार, नम्रता, सत्कार, विशालता, सहनशीलता, परोपकार आदि अपनाने का निर्देश है और क्या नहीं करना चाहिए अर्थात् वैर, द्वेष, हिंसा, घृणा, संकीर्णता, खुदगर्जी आदि को त्याग देने की हिदायत है।
मनुष्य को मानव, मानुष, मानस भी कहा गया है। मानव को । नियंत्रित, निर्देशित करने में मन की विशेष भूमिका होती है। मन ही मानव को मानवेन्द्र बनाता है और मन मानसव्रती भी। राजसी ऐश्वर्य और धन-सम्पदाओं की चाह रखता है तो मानसवती सत्य, प्रेम, दया, करुणा, स्नेह, अहिंसा आदि मानवोचित व्यवहारों द्वारा परमपद पाता है। मानस शास्त्री, मानव मन की विभिन्न वृत्तियों, क्रियाओं आदि अध्ययन की कुशलता तो हासिल कर सकते हैं लेकिन मानवता अपनाकर समग्र मानव बनने की शिक्षा-दीक्षा केवल सदगुरु के पास होती है जो करुणा करके मानव को उसके वास्तविक स्वरूप में स्थित करते हैं। सद्गुरु यह कार्य शरणागत की किसी विशिष्टता के कारण नहीं अपितु निज करुणा द्वारा ही करते हैं। पारिवारिक उलझनों में फंसे अर्जुन का सद्गुरु श्री कृष्ण जी ने हर प्रकार उद्धार करने का यत्न किया और उसे बुद्ध के मैदान में ही तत्वबोध जैसी अनमोल वस्तु प्रदान की।
मानवता स्वार्थ से परमार्थ की ओर की यात्रा है। मानवता जियो और जीने दो का संस्कार देने और स्वहित से परहित की ओर ले जाने वाली भावना से युक्त सुगन्ध भरी बयार है। मानवता हर मानव के लिए अपनाने योग्य है क्योंकि मानव ही इसके लिए अधिकृत है, कोई भी पशु या पक्षी मानवता अपनाने का अधिकारी नहीं है। कोयल कितना भी मीठा बोल ले, फूल कितने भी सुकोमल और सुन्दर क्यों न हों, सागर कितना भी गंभीर क्यों न हो, चाँद शीतलता देने वाला हो या सूर्य ऊष्मा व प्रकाश देने वाला हो लेकिन मानवता की अपेक्षा मानव से ही है, अन्य से नहीं।
मानवता दानवता और पशुता व्यक्ति के स्वभाव की विभिन्न स्थितियाँ हैं। शिशु निरोल मानव और पूर्णतः विकारों से मुक्त होता है। सुमति, संस्कार, संस्कृति और संग व्यक्ति को मानव, दानव अथवा पशुवत बनाते हैं। संग, शिक्षा और संस्कार खराब हुए तो इंसान मानवीय विकारों की गंदगी में डूबता चला जाता है। किसी इंसान को गंदगी से निकालना तो आसान है, गंदगी से निकालकर उसे साफ-सुधरा भी किया जा सकता है। माताएं अक्सर बच्चों की गंदगी दूर करके उन्हें साफ-स्वच्छ बनाती है, वे फिर गंदे होते हैं फिर ठीक किए जाते हैं लेकिन इसान के अंदर की गंदगी को निकालना आसान नहीं होता। सन्त महापुरुष इंसान के अंदर की गंदगी निकालकर उन्हें मानवतामय बना देते हैं। अंगुलिमाल के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटी कि वह हिंसा से भर उठा। महात्मा बुद्ध ने उसे ठहरने की शिक्षा दी और उसकी जीवन दिशा ठीक हो गई।
सद्गुरु वेष-भूषा नहीं बदलता, किसी का धर्म परिवर्तन भी नहीं करता क्योंकि इनको बदलने का कोई विशेष अर्थ नहीं नजर आता। सद्गुरु भाव बदल देता है, दृष्टि परिवर्तित कर देता है क्योंकि जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि बोतल या उस पर लिखे जहर शब्द का लेबल हटाने से उसके अन्दर के विष की जान लेने की क्षमता खत्म नहीं होती, सद्गुरु व्यक्ति रूपी बोतल के अंदर का जहर निकालकर अमृत भर देते हैं और व्यक्ति के व्यवहार में जमीन-आसमान का अन्तर आ जाता है। सदगुरु बाबा
हरदेव सिंह जी महाराज फरमाते हैं दुर्भावनाओं ने सदा से मानवता का नुक्सान किया है। पहले जो बोया गया, सो बोया गया. अब मनों में ऐसे बीज बोए जाएं जिनसे शूल नहीं फूल उपजें।
संसार अपराधी को क्षमादान नहीं देता। क्षमादान देकर दानव को भी मानव बनाने का कार्य केवल सद्गुरु करते हैं। कहते हैं जिसकी आँखें खूबसूरत होंगी उसको दुनिया अच्छी लगेगी लेकिन जिसकी जुबान अच्छी होगी वह दुनिया को अच्छा लगेगा तभी तो कहा जाता है कि एक
खूबसूरत दिल हजार खूबसूरत चेहरों से अच्छा होता है।
सदगुरु दिल को खूबसूरती प्रदान करते हैं।
हर मानव प्रेमी मानवता का ही उपासक होता है वह नर सेवा के द्वारा नारायण की पूजा कर रहा होता है। जहाँ सुगंध भरे फूल ही फूल हो वहाँ दुर्गन्ध नहीं होती। जहाँ मानवता के महकते पुष्प हो वहाँ जीवन बोझ नहीं रहता उत्सव बन जाता है, वहाँ दानवता के तांडव की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं।
मानवता अपनाने से मानव सुशोभित होता है और इसे त्यागकर कलंकित। दिल्ली की एक पॉश कालोनी में महीनों भूखी-प्यासी रहने के कारण मर गई दो बहनों की खोज-खबर लेने कोई पड़ोसी या रिश्तेदार का न आना, सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त घायल व्यक्ति को तड़पते छोड़कर गुजर जाना, डाक्टर का धोखे से मरीज की किडनी निकाल लेना, कार को साइड न देने वाले को गोली मार देना, बेटी सदृश्य बहुओं को लोभ में पड़कर प्रताड़ित करना, भाई का हक़ हड़प लेना आदि मानवता के लिए कलंक ही तो हैं। मानवता का न होना दानवता के होने का मार्ग खोलता है। रावण द्वारा भगवे वस्त्रों में सीता जी के हरण का विचार आना उसके दानव होने की ओर बढ़ाया गया कदम था जिससे वापस लौटना रावण जैसे ज्ञानी-ध्यानी के लिए भी संभव न हुआ और उसका धन-बल, यश- कुल सब कुछ तो नष्ट हुआ ही आज तक उसको घृणा की दृष्टि से ही देखा जाता है।
विश्व में मानवता का साम्राज्य होना मानव मात्र के हित में है। विश्व शांति के लिए मानवता अनिवार्य आवश्यकता है, और यह मानवता वास्तविक होनी चाहिए शाब्दिक, सतही और दिखावटी मानवता तो साधु के वेष में सीता हरण के लिए उपस्थित रावण की तरह है जो और भी ज्यादा घातक है। कोई भी व्यक्ति दानव से तो सजग रह सकता है लेकिन मानवता की ओट में छिपे छद्म दानव से वह कैसे बचेगा?
संसार में सद्भावों के पुष्प खिले होंगे तो उनकी महक से वातावरण खुशगवार बनेगा। गुलाब की खुशबू और सुन्दरता के सामने साथ लगे कांटे भी स्वीकार्य हो जाते हैं। पुष्प की अपनी विशेषता है, जहाँ रहें वहाँ महक फैलाएं। गुलाब प्रेम का, सुन्दरता का प्रतीक है तो कमल पावनता और शीतलता का, जूही, बेला, चम्पा, चमेली हों या गेंदा अथवा रात रानी विविध पुष्पों की अपनी सुन्दरता, अपनी महक है। सन्त समागम भी प्यार, नम्रता, करुणा, स्नेह आदि मानवीय गुणों रूपी विविध पुष्पों का खिला हुआ रूप है। जिसकी रचना सद्गुरु अपनी कृपा और तप-त्याग से करते हैं, जहाँ सद्भावों की महक तो है पर दुर्भावों की उपस्थिति बिल्कुल नहीं है। सद्गुरु सम्पूर्ण विश्व का आह्वान मानवता को सुन्दर रूप देने के लिए कर रहे हैं। आइए, हम भी मानवता से युक्त विश्व की संरचना का संकल्प लें और सद्गुरु के साथ सभी मिलकर
हम इस जग की शोभा बन सकते हैं तो वाकई ये भावनाएं जो मानवता, करुणा वाली है, ये सुन्दरता प्रदान करती हैं।
इसका मतलब यह नहीं कि शोभा किसी बाग-बगीचे के कारण होनी है, या सुन्दर इमारतों के कारण होनी है, यह सुन्दरता जो स्थापित होगी संसार में, यह भक्ति भावनाओं के कारण होगी इसलिए हम खुद जब अपने आपको संवार लेते हैं तो हम संसार को भी सुन्दर रूप देने के लिए अपना योगदान देते हैं।
आत्मा के अध्ययन को अध्यात्म कहते हैं और किसी भी। आ विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान अध्यात्म और विज्ञान की परिभाषाएं तो यही है लेकिन जब विज्ञान को देखते हैं तो अध्यात्म के बिना विज्ञान आज जहर का काम कर रहा है। उदाहरण के लिए विज्ञान के बल पर लोग आज चाँद तक पहुँच रहे हैं लेकिन अध्यात्म के अभाव में बगल में पड़ोसी के घर में नहीं जा रहे हैं।
इतना ही नहीं अध्यात्म के अभाव में विज्ञान के सहारे पड़ोसी पर बम का प्रयोग कर रहे हैं। यह बम विज्ञान ने बनाया है, अध्यात्म ने नहीं। लोग अध्यात्म के अभाव में खाद्यान्न की सुरक्षा हेतु कीड़े मारने वाली दवा से कीड़े मारने की बजाय उसको खाकर आत्म हत्या कर रहे हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए निरंकारी बाबा जी कहते हैं
ब्रह्म की प्राप्ति भ्रम की समाप्ति इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि बिना ‘ब्रह्मज्ञान के आत्मज्ञान सम्भव नहीं है। लंका में रावण को घूमने के लिए विमान था लेकिन अध्यात्म के अभाव में उसने विमान का दुरुपयोग माता सीता जी को चुराने में किया।
आज भी यही हो रहा है लोग ट्रेन में सड़कों-चौराहों पर बम फेंक कर निर्दोष लोगों को मार रहे हैं। ध्यान से देखें तो क्या ट्रेन में सब लोगों की गलती है या शहर के चौक में सब लोगों की गलती है? नहीं, लेकिन आध्यात्मिकता न होने के कारण आज पढ़े-लिखे डॉक्टर अथवा इंजीनियर इन्सानी जीवन के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते।
आज लोग अच्छा घर बना लेते हैं तो कहते हैं कि हम घर वाले हो गये लेकिन अवतार बाणी में शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज फरमा रहे हैं सौ-सौ योनी भुगते बन्दा रहता आता जाता है।
पर वह जो हरि को जाने घर वाला हो जाता है। सन्त-महात्मा यही समझाते हैं कि आप सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं लेकिन अध्यात्म के अभाव में बुरे काम से नहीं बच पाते इसीलिए सदगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कहते हैं कि Let God dwell in the mind so that you are protected from evil ways. (इस प्रभु-परमात्मा पर ध्यान केन्द्रित रखो ताकि कुमार्ग से बचे रहो।)
इन्सान के मन में अगर अध्यात्म बसा हुआ नहीं है तो इन्सान, इन्सान होते हुए भी बहुत से गलत काम करता है। सन्त कबीर जी ब्रह्मज्ञानी थे। परोपकार करना उनका स्वभाव था इन्सान को मधुर वाणी बोलने की प्रेरणा देते हुये उन्होंने कहा बाज़ी ऐसी बोलिए, मन का आपा खोय।। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय लेकिन आज की स्थिति कितनी भिन्न हो चुकी है, स्वार्थपरता और चालाकियां इतना उग्र रूप ले चुकी हैं कि सन्त कबीर जी की बात के ठीक विपरीत लोगों की सोच हो चुकी है – बाली ऐसी बोलिए कि तुरन्त झगड़ा होय। उससे कभी न बोलिए जो आपसे तगड़ा होय ।
इन्सानी प्रवृत्ति में इस गिरावट का मुख्य कारण यही है कि विज्ञान तो प्रगति कर रहा है लेकिन अध्यात्म का अभाव होता जा रहा है। सार रूप में देखा जाये तो शान्त और सुखद जीवन हेतु विज्ञान के साथ-साथ हर इन्सान को अध्यात्म का भी ज्ञान होना आवश्यक है।
दमी दिमाग ही ऐसा आनिकारक है, जिसरण हथियार भी खतरनाक बन जाते हैं और उनका इस्तेमाल विनाश फैलाता है।
अगर दिमागों में से यह विषैलापन दूर हो जाये, विष के स्थान पर अमृत आ जाये तो निश्चय ही विनाश का सामान होते हुए भी ये हानिकारक नहीं हो पायेंगे जो शुद्ध भावनाओं से वंचित है, जो लालसाओं में, खुदगर्जियों में पड़े हुए हैं।
जो भूल जाते हैं कि यह धरती, परमात्मा ने बनाई है और इस एक धरती पर ही सभी इन्सानों को पैदा किया है।
आज खोज चल रही है, दूसरे ग्रहों पर जीवन की लेकिन यह तो इन्सान एक अरसे से जान चुका है कि इस धरती पर जो इन्सान पैदा हुए हैं, वे और कहीं देखने को नहीं मिल रहे हैं। यह धरती बहुत खूबसूरत है।
आज दूसरे ग्रहों पर जाते हैं, फोटो खींचते हैं। उन फोटो की तुलना जब इस धरती से करते हैं तो पता लगता है कि सभी में से यह धरती ही इतनी खूबसूरत बनाई गई है, इन्सानों के लिए इस सुन्दर धरती पर इन्सान के रूप में जन्म लेकर इन्सान ने क्या देन दी है इसे? यह विचार करना है।
इस खूबसूरती को बढ़ाना इसका कर्म था लेकिन इसमें खूबसूरती कम की, विनाश को बढ़ावा दिया। इसने इन्सान से भगवान बनना था लेकिन यह इन्सान से हैवान बन गया।
इस अमोलक जन्म की कद्र न करके यह स्वयं ही इसके नुकसान का कारण बन गया।
धर्म का अपना विज्ञान है और विज्ञान का अपना धर्म। धर्म ने यदि अपने विज्ञान को नहीं समझाया, मानव को सही दिशा-निर्देश नहीं दिया अपने तथ्यों से अवगत नहीं कराया तो मानव कल्याण के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ पायेगा। आज सन्त निरंकारी मिशन मानव कल्याण के लिए धर्म के विज्ञान को आत्मज्ञान के द्वारा समझा रहा है। इसी प्रकार विज्ञान का भी अपना धर्म है। विज्ञान का विकास मानव कल्याण एवं मानव की प्रगति के लिये है। यदि विज्ञान के विकास को सही दिशा में नहीं लगाया गया तो यह मानव के विनाश का कारण बन सकता है।
इस तथ्य को एक उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं विज्ञान ने अल्ट्रासाउण्ड उपकरणों का विकास गर्भस्थ शिशु की रक्षा हेतु जाँच के रूप में किया ताकि गर्भ में बच्चे का शारीरिक-मानसिक विकास बराबर न हो रहा हो तो उसका उपचार गर्भ में ही किया जा सके लेकिन अध्यात्म के अभाव में विज्ञान के उपकरणों का दुरुपयोग भ्रूण-परीक्षण के रूप में किया जाने लगा और यह कितना कृतघ्न कार्य है कि यदि गर्भ में लड़की है तो गर्भपात करा देते हैं। ऐसे जीवन की हत्या तो कोई पशु भी गर्भस्य अवस्था में नहीं करता है परन्तु मानव पशु से भी नीचे गिर गया है जो अपने ही प्यार
के अंकुर को विज्ञान का सहारा लेकर नष्ट कर देता है। विज्ञान का कार्य मानव विकास को गति देना है परन्तु किस दिशा में ले जाना है यह कार्य विज्ञान से नहीं हो। सकता विज्ञान यदि गति देता है तो अध्यात्म उसे दिशा बताता है। मनुष्य रूपी वाहन में भी गति देने का इंतजाम अलग होता है और दिशा बढ़ाने का इंतजाम अलग। दिशासूचक और गति देने वाले यंत्रों में अलग-अलग शक्तियां है। हम पाव से चलते है, आंख से दिशा मालूम होती है।
इसी तरह अध्यात्म आँख है और विज्ञान पांव है। अगर मानव को आत्मज्ञान (अध्यात्म) की दृष्टि न हो तो वह दृष्टि के अभाव में न मालूम कहां चला जायेगा और अगर आँखें हो, पाँव न हों, तो उसे एक स्थान पर ही बैठे रहना पड़ेगा, वह अपना कोई विकास नहीं कर पायेगा। इसलिए बिना विज्ञान के संसार का विकास होना सम्भव नहीं और बिना अध्यात्म के विज्ञान को ठीक दिशा देना सम्भव नहीं है।
मनुष्य के हाथ में विज्ञान की शक्ति आने के बाद बुद्धि को ठीक रखना अधिक आवश्यक हो जाता है जो अध्यात्म से ही सम्भव हो सकता है क्योंकि अक्ल तो अध्यात्म के गुणों में रहती है। विज्ञान ने अग्नि की शक्ति की खोज करके बताया कि अग्नि का उपयोग ‘प्रकाश’ फैलाने में अथवा चूल्हा जलाने में हो सकता है और धन-सम्पदाओं को जलाने में भी लेकिन अग्नि का अच्छे अथवा चुरे कार्यों में उपयोग करने से विज्ञान का कोई संबंध नहीं है, यह काम अध्यात्म करेगा। शक्ति के नाते विज्ञान को अध्यात्म का मार्गदर्शन चाहिए। ज्ञान और शक्ति के तौर पर दोनों मिलकर एक ही चीज है। विज्ञान analysis (विश्लेषण ) है तो अध्यात्म (synthesis) संश्लेषण है।
अगर गहराई से देखा जाये तो वैज्ञानिक भाषा में अध्यात्म ‘सुपर विज्ञान’ है। विज्ञान और अध्यात्म के समन्धित एवं समग्र प्रयास अर्थात् वैज्ञानिक अध्यात्मवाद में विज्ञान की जिज्ञासा तथा अध्यात्म के रहस्यों का समाधान एवं अनावरण सम्भव है। इसके लिए बहिदृष्टि के साथ अर्न्तदृष्टि की ओर उन्मुख होने की आवश्यकता है। जी महाराज जो ब्रह्मज्ञान प्रदान सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह रहे हैं उसके परिणामस्वरूप अध्यात्म विज्ञान हमें आत्मा और सृष्टि के कसौटी पर कसा हुआ विशेष अनुभव की कसी हाइड्रोजन ऑक्सीजन के संयोग से पानी बनता है।
कुराकर तत्त्वदर्शी ही अध्यात्म और विज्ञान का संयोग इन्सान को तत्वदर्शी बनाता है। तत्वदर्शी में जहाँ एक ओर विराट निराकार में प्रवेश करने की वृत्ति होती है, वहीं दूसरी ओर अत्यंत सूक्ष्म अणु में प्रवेश करने की भी वृत्ति होती है। सन्त निरंकारी मिशन ब्रह्मज्ञान द्वारा पहले आत्मा का अनुभव पहचान कराकर विराट और सूक्ष्म तत्व, दोनों में प्रवेश करने की वृत्ति जाग्रत कर, जन कल्याण का कार्य कर रहा है।
स्थिर (निरंकार) से नाता जोड़कर ही जीवन में आये स्थिरता
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Ke Vichar
गहराई से सोचें तो यह बात सामने आती है कि धरती से लेकर जितनी भी प्राकृतिक चीजें हैं वे गतिमान हैं, परिवर्तनशील हैं। इनमें कोई भी स्थिर नहीं है। इसी प्रकार इनमें से किसी भी वस्तु के साथ हम अपने मन का नाता जोड़ लेते हैं तो उन वस्तुओं के स्वयं अस्थिर होने के कारण हमारा मन भी स्थिरता नहीं प्राप्त कर पाता।
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 2022
Nirankari Vichar Satguru Mata Ji
इस बदलने वाले संसार के पीछे केवल एक ही स्थिर सत्ता है जिसको परमात्मा, ईश्वर, गॉड, अल्लाह, अकाल पुरख आदि अनगिनत नामों से पुकारा जाता है। यह सत्ता स्थिर है, शाश्वत है, अचल है, अटल है, अविनाशी है और सर्वव्यापी है। अज्ञानतावश इस सत्ता से बिछुड़ने के कारण ही जीवात्मा भटक रही है। सद्गुरु हमें इस सत्ता का बोध करा देता है। और इसके साथ इकमिक होने का विधि समझाता है जिससे जीवात्मा की भटकन समाप्त होकर वह इस परमात्मा में स्थिर हो जाता है, स्थित हो जाता है।
Nirankari Vichar In Hindi
यह संसार, जिसे प्रकृति, रचना या मायाभी कहा जाता है, यह पांच तत्वों से बना हुआ है। आत्मा को चतना या रूह कहा जाता है। पांच तत्व तो अपने-अपने तत्वों में मिलकर शान्त होते हैं। लेकिन यह छटा तत्व जब तक अपने मूल की पहचान नहीं करता तब तक स्थिरता को प्राप्त नहीं कर पाता। जब यह अपने मूल परमात्मा से मिलता है तब जाकर शान्त होता है, उसे स्थिरता प्राप्त होती है।
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Ke Vichar In Hindi
जब तक जीवात्मा को अपने वास्तविक स्वरुप का पता नहीं चलता तब तक वह अपने आपको प्रकृति का ही अंग मानता रहता है। प्रकृति डोलायमान है और इसका संग करने से जीवात्मा भी डोलायमान हो जाता है। सद्गुरु ने हमें परमात्मा को बोध कराया जो स्थिर है, कायम-दायम है। यह आत्मा उसी की अंश होने के कारण जब इसका मिलाप स्थिर परमसत्ता के साथ होता है तो उसकी भटकन खत्म हो जाती है। इसीलिए अगर हमें स्थिरता प्राप्त करनी है तो सद्गुरु की शरण में आकर इस कायम-दायम सत्य परमात्मा को जानना होगा, जिसके बारे में कहा गया है। आदि सचु जुगादि सच है भि सच, नानक होसी भी सचु और
Satguru Mata Sudiksha Ji Vichar
तीन काल है सत्य तू मिथ्या है संसार।
परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद मन को इस ज्ञान में स्थित करने के लिए सद्गुरु हमें तीन बहुमूल्य साधन देता है- सत्संग, सेवा और सुमिरण श्रद्धा और विश्वास के साथ जब साधन हम ये अपनाते हैं तो माया में रहकर भी मन को स्थिर रख पाते हैं।
निरंकारी लाइव
रोज सत्संग में आते रहेंगे तो मन इस निरंकार परमात्मा में मजबूती से टिका रहेगा, भटकेगा नहीं। सत्संग में जब हम आते हैं तो सन्तों के दिव्य वचन हमारे मन पर प्रभाव डालते हैं और उसे परमात्मा में स्थित रहने के लिए मजबूती प्रदान
निरंकारी सतगुरु माता जी के विचार
करते हैं। इसी तरह सन्तों के चरणों में झुकते हैं, सेवा करते हैं तो अहंकार से बचे रहते हैं और निरंतर इस परमात्मा का सुमिरण करने से इसी का रंग मन पर चढ़ा रहता है। मन को निर्मलता और स्थिरता प्राप्त होती है।
निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी के विचार
संसार में रहना है तो माया के बीच ही रहना होगा। बाबा हरदेव सिंह जी ने उदाहरण देकर समझाया कि- नाव चलाने के लिए पानी की आवश्यकता है, नाव पानी में ही चलेगी लेकिन नाव के अंदर पानी न आए यह ध्यान रखना होता है। इसी तरह हम बेशक संसार में विचरण करें लेकिन ध्यासन परमात्मा में टिका रहे तो जीवन में स्थिरता और सहजता कायम रह सकती है।
संत निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी के विचार
जो अस्थिर है, डोलायमान है उनके साथ जुड़ने पर हमारी भी वैसी अवस्था बन जाती है। जिस व्यक्ति के विचार डोलायमान हों, आधे अधूरे हों, विश्वास पूरा ना हो और दो नावों पर पैर रखे हों तो उनका संग करने से हमारे विचारों में भी बदलाव आ जाते हैं। ऐसे लोग खुद तो भ्रमों में है ही, औरों को भी भ्रमित कर देते हैं, कहा गया है
निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी
साकत संग न कीजिए, दूरों जाय भाग शाश्वत परमात्मा के साथ नाता जोड़कर पक्के सन्तों महात्माओं का संग करने से हमारे जीवन में दृढ़ता और स्थिरता आयेगी। चंचलता चली जायेगी और निश्छलता आयेगी। भ्रम से ऊपर उठकर हम ब्रह्म में स्थित हो जायेंगे।
मन रूपी बंदर को ध्यान रूपी रस्सी से ब्रह्मज्ञान रूपी खम्बे के साथ बांध दो तो यह टिक जाएगा।
फिर चाहे यह इधर-उधर भागता भी दिखाई देगा, यानि कभी इसमें माया आएगी, कभी मान बड़ाई की बातें आएंगी या कभी दुनिया की और बातें आएंगी लेकिन फिर भी यह ज्ञान रूपी खम्बे से हट नहीं सकता, धूम-फिर कर यह एक निरंकार पर ही टिकेगा।
संसार में चाहे कोई कितना धनवान, बलवान, गुणगान ही क्यों न हो लेकिन ब्रह्मज्ञानी पूर्ण रहवर की कृपा के बिना उसे ईश्वर मिलने वाला नहीं है।
सद्गुरु की कृपा से ही ऐसा हो सकता है।
सद्गुरु की बख्शिश से जब हमारी लिव परमात्मा से जुड़ती है तब हमारा हर एक कर्म सुख ही सुख देता है, शान्ति ही शान्ति देता है।
तू ही निरंकार, मैं तेरी शरण हाँ, मैनूं बख्श लो Tu Hi Nirankar Main Teri Sharan Han Menu Bakhsh Lo
मन अन्तर को शुद्ध करने म और गुरमत पर चलने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर सद्गुरु निरंकार का भाव पूर्वक सुमिरण करना। इससे ज्ञान, ध्यान, त्याग और प्रेम की स्थिरता बढ़ती जाएगी। ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के बाद शान्ति और स्थिरता तक पहुंचना आवश्यक है। सद्गुरु के ज्ञान को ग्रहण कर स्थिरता से जीवन को सहज, सरल और सजग जीने की शक्ति प्राप्त होती है। हमारा मन क्यों मलीन हो जाता है, इसके लिए मन और उसके दोषों को समझना आवश्यक है।
हर मनुष्य में मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार है। जब यह संकल्प-विकल्प करता है तो मन कहलाता है जब निर्णय करती है तो बुद्धि मन जब धारण करता है तो चित्त कहलाता है। इसी प्रकार मन जब मैं मेरी के चक्रवात में फंस जाता है तो इसे अहंकार की संज्ञा दी जाती है। मन के दोषों को सद्गुरु द्वारा प्रदत्त सुमिरण से दूर किया जाता है।
मन शीशे के समान होता है। इसमें तीन दोष हैं- आवरण, मैल और चंचलता। ये दोष मन को अस्थिर करते हैं। ब्रह्मज्ञान जब सद्गुरु द्वारा प्रकट होता है तब मन रूपी दर्पण साफ हो जाता है और प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई देता है। यदि आंखों और दर्पण के बीच में कपड़ा रख दें तो प्रतिविम्ब स्पष्ट दिखाई नहीं देगा। यदि शीशे पर धूल जमी हो तो भी प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई देगा। इसका कारण मल दोष कहा जाएगा।
यदि कोई शीशे को हिलाता रहे अर्थात् स्थिरता न हो तब प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई दे। ये तीनों दोष मन रूपी शीशे में चित्र नहीं प्रकट होने देते। माया का आवरण ही मन के दर्पण में प्रभु को नहीं देखने देता। विषय-वासनाएं मन में मैल पैदा करती हैं और धन, पुत्र तथा सम्मान की तृष्णाएं मन को चंचल बना देती हैं। यही विशेष दोष है।
दोषों को दूर करके अन्तःकरण को पवित्र करने धीर, वीर, गम्भीर, सहनशील, जीवन स्थिर बनकर निराकार प्रभु से इकमिक होकर जीवन में सुन्दरता आती है।
तू ही निरंकार Tu Hi Nirankar Meaning in Hindi
तू ही निरंकार, ज्ञान अन्तःकरण दोष को दूर करता है।
मैं तेरी शरण हाँ Main Teri Sharan Haan Meaning In Hindi
मैं तेरी शरण हाँ, कर्म अन्तःकरण के मैल दोष को दूर करता है।
मैनूं बख्श लो Menu Bakhsh Lo
मैनूं बख्श लो प्रार्थना, उपासना, भक्ति, अन्तःकरण मन की चंचलता को दूर करता है।
इस प्रकार मन दर्पण जब दोषों से मुक्त होकर बिलकुल स्वच्छ हो जाता है तो इसमें प्रभु का चित्र प्रकट होता है। चित्र उतना ही अधिक स्पष्ट होता है जितना दर्पण अधिक स्वच्छ होगा। मन की पूर्ण शुद्धि ब्रह्मज्ञान से ही होती है।
तुलसी के शब्दों में तब लगि हृदय बसत खल नाना। लोभ मोह मत्सर मद माना। जब लगि हिय न बसहि रघुनाथा लिये चाप कटि सायक माथा ब्रह्मज्ञान और सद्गुरु के आशीर्वाद से गुरसिख के मन को सारी उथल-पुथल शान्त हो जाती है। स्थिर के साथ नाता जुड़ने से उसकी अस्थिरता समाप्त हो जाती है।
सद्गुरु की कृपा Satguru Ki Kripa ( Nirankari Vichar )
सद्गुरु की कृपा से निराकार परमात्मा से जुड़कर आनन्द प्राप्त करती है फिर उसे दुनिया की दुर्गन्ध नहीं, हरि परमात्मा सुगन्ध ही चारों ओर व्याप्त प्रतीत होती है। आनन्द स्वरुप से जुड़कर वह आनन्दमय हो उठता है। संसार में रहते हुए दातार की बन्दगी करते हुए उसको जीवन यात्रा सुखद हो जाती है।
कण-कण में परमात्मा Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
कण-कण में परमात्मा का बोध होते ही मन सेवा, सुमिरण, सत्संग की ओर मुड़ जाता है। सद्गुरु की कृपा गुरसिख अन्तर्मन से सद्गुरु दातार की आराधना और जिवा से नाम सुमिरण होता है। उसके नेत्र लोगों की बुराईयां न देखते हुए सद्गुरु के दर्शनों से ही सुख पाना चाहते हैं। उसके कान निन्दा रस नहीं, हरियश सुनने को लालायित रहते हैं। यह अन्तःकरण को शुद्ध करने का जीवन को पवित्र करने का अथवा गुरमत पर चलने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। जिस गुरसिख की यह अवस्था हो जाती है वह सबको सुख बांटते हुए सुखमय जीवन जीता है।
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज निरन्तर जोर दे रहे हैं कि हम सभी के साथ मिल-जुलकर रहें, सभी सन्तों का आदर करते जायें। सद्गुरु सारे भय, तनाव, कपट, संकट, दुख, रोष, सन्ताप का शमन कर देते हैं और जीवन को सहज, स्थिर अवस्था प्राप्त हो जाती है।
इन्सान के मन की ‘मैं‘ उसे जीवन भर परेशान करती है इसलिए इन्सान के भीतर के ‘मैं‘ का मिटना बहुत ही जरूरी है।
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji
इन्सान के मन की ‘मैं‘ उसे जीवन भर परेशान करती है इसलिए इन्सान के भीतर के ‘मैं‘ का मिटना बहुत ही जरूरी है।
एक दिन सुकरात समुद्र तट पर टहल रहे थे और उनकी नजर तटपर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी। वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा, “तुम क्योंरो रहे हो?” बच्चे ने कहा, “ये जो मेरे हाथ में प्याला है में इसमें इस समुद्र को भरना चाहता हूं पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं।
बच्चे की बात सुनकर सुकरात विस्माद में चले गये और स्वयं रोने लगे। अब पूछने की बारी बच्चे की थी। बच्चा कहने लगा, आप भी मेरी तरह रोने लगे होती है। पर आपका प्याला कहाँ है?” सुकरात ने जवाब दिया, “बालक, तुम छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहते हो और में अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ।
आज तुमने सिखा दिया कि समुद्र प्याले में नहीं समा सकता है, मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा।” यह सुनकर बच्चे ने प्याले को दूर समुद्र में फेंक दिया और बोला- “सागर अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है।”
इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और बोले- “बहुत कीमती सूत्र हाथ लगा है।” हे परमात्मा! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते हैं पर मैं तो सारा का सारा आपमें लीन हो सकता। हैं।
ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गए और सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त कराया। जिस सुकरात से मिलने के लिए सम्राट तक समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लौट गए थे। ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का “मैं सबसे पहले मिटता है या यूँ कहें जब आपके अंदर का ‘मैं मिटता है तभी ईश्वर की कृपाहोती है ।
कैसे हम स्कूल में अपनी क्लासें अटेंड करते थे, कॉलेज जाते थे तो वह सब भी वर्चुअल रूप ले चुका है।
किसी से भी मिलना उस तरह संभव नहीं था। कैसे हम अगर मानवीय स्पर्श की बात करें तो अपने मित्रों को या किसी को भी गले लगाना पहले हम Live Nirankari कर पाते थे तो वह सब अब दो गज की दूरी वाला नॉर्म (मानक) आ गया या किसी तरह भी हम कहें जो एक सुरक्षा प्रोटोकाल अपना रहे हैं तो ऐसी छोटी-छोटी चीजों के लिए हम दातार का शुकर नहीं करते थे, इसे हमने फार ग्रांटेड (सहज स्वीकृत ) माना हुआ था।
कैसे हर एक के जीवन में उन्होंने ऐसा प्रभाव डाला Live Nirankari जिसको हमने एक ऐसा रूप जो सिर्फ बातों में ही सुनते थे कि ये माया तो सिर्फ एक मोहमाया है, एक भ्रम है। माया को तो सिर्फ जितना कार्य है वहीं तक ही रखा जाए, उसको प्राथमिकता न दी जाए, उसको सब कुछ न बनाया जाए।
इस कोरोना की स्थिति ने हर एक के जीवन में उसको सीधे ही अनुभव करने का मौका दिया कि माया होते भी वह माया का प्रयोग नहीं कर पाया।
कोई अगर किसी दूसरे राज्य में अपने रिश्तेदारों के यहां गया तो Online Nirankari Satsang लॉकडाउन के समय वह वहीं रह गया और इतने सुन्दर घर-बार बनाए हुए, इतनी महंगी गाड़ियां घर में होते हुए भी उनका कोई प्रयोग नहीं हो पा रहा था। धन निरंकार जी, इस पोस्ट को शेयर करें–>>>
और अपने बच्चों को, परिवार को समय नहीं दे पाते थे तो यह कोरोना का समय ऐसे आया कि ऑफिस बंद हो गए तो Live Nirankari हमने आपस में संवाद किए, अपनी बातचीत ठीक की, हमने इकट्ठे प्यार से, सत्कार से, छोटे-बड़ों का आदर करते हुए अपने दिन-प्रतिदिन की जिंदगी को ऐसे ढालने का प्रयास किया कि अब ज्यादा बेहतर तरीके से अपने परिवार के परस्पर प्रभाव में हो पाए।
संसार अनेकता में एकता का सुन्दर रूप है जहां निरंकार की कृपा से हर भाषा, हर धर्म के लोग फूलों की तरह शोभायमान हैं लेकिन यही विभिन्नता नफ़रत और फूट का कारण बनी हुई है जो मानव जाति के लिए घातक है।
जब सब एक ही निरंकार प्रभु की संतान हैं, सब इसके ही अंश हैं तब हमारे मनों में भेदभाव की कोई बात ही नहीं होनी चाहिए।
दुनिया में लोग भ्रम में हैं।
सन्तजन लोगों का भ्रम मिटाकर उन्हें जीवन की सच्ची राह दिखाते हैं।
नफ़रतें भी प्यार में बदल जाती हैं जब ब्रह्मज्ञान की रोशनी जीवन में आती है।
सबमें निरंकार का नूर देखें,
यह संसार निरंकार ने बनाया है,
संसार अनेकता में एकता का सुन्दर रूप है जहां निरंकार की कृपा से हर भाषा, हर धर्म के लोग फूलों की तरह शोभायमान हैं लेकिन यही विभिन्नता नफ़रत और फूट का कारण बनी हुई है जो मानव जाति के लिए घातक है
| Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
सबमें निरंकार का नूर देखें, यह संसार निरंकार ने बनाया है, संसार अनेकता में एकता का सुन्दर रूप है जहां निरंकार की कृपा से हर भाषा, हर धर्म के लोग फूलों की तरह शोभायमान हैं लेकिन यही विभिन्नता नफ़रत और फूट का कारण बनी हुई है जो मानव जाति के लिए घातक है Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
वर्ष 2020से हम सभी परिचित हैं कि जहां हर एक की रूटीन बदल गई वहीँ इसका प्रभाव पूरे संसार पर पड़ा। किसे तरह किसी ने माया चाहे जितनी भी बटोर ली पर जब लॉकडाउन का समय आया तो Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiवह माया इस्तेमाल नहीं हो पाई।
चाहे घर भी बना लिए अच्छे से अच्छे पर यातायात बन्द होने से कहीं आ-जा नहीं सकते। देखा गया कि महंगे घर भी किसी Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiकाम के नहीं रहे। महंगी से महंगी गाड़ियों को भी कहीं ले जाना स्वीकृत नहीं था तो उनका भी कोई लाभ नहीं हुआ।
युगों-युगों से सन्तों की वाणी में श्रवण करते हैं कि माया ही सब कुछ नहीं है, इसी को सब कुछ न बनायें। माया तो एक भ्रम है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiजितना काम हो, इसका सदुपयोग करें, नहीं तो माया का भ्रम जो दिखता है वह प्रासंगिक नहीं है। सन्तों ने इन्सान से कहा कि कैसे प्यार, नम्रता, दया, करुणा, आदर ने ही हमारे जीवन को सुन्दर बनाना है।
आपस में प्यार की पकड़ मजबूत | Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
अभी लॉकडाउन में भी इसको नकारात्मक रूप में नहीं लिया गया बल्कि इसको इस तरह देखा गया कि कैसे हमें अवसर मिला है, हम अपने काम-काज में व्यस्त रहते थे, अब परिवार को समय दे Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiपा रहे हैं। इसने हमें सिखाया, घरों में आपस में प्यार दिया और प्यार की पकड़ मजबूत हुई।
कहीं पर भी यदि कोई जरूरत है, जीवन में कोई कठिनाई है तो चाहे व्यक्तिगत रूप में दे पाएं, हमने Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiलॉकडाउन की स्थिति में समझा कि यह पूरा संसार ही अपना है। किसी की जरूरत की वह चीज यदि हमारे सामर्थ्य में है कि हम दे सकें तो वह उसे पहुंचाई जाए।
मानवता ही सच्चा धर्म है, हम यदि इन्सान हैं तो इसी सच्चे धर्म को अपनाना है। हमें एकजुट होकर संसार को सिर्फ़ प्यार देना है, एक दूसरे को अपना Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiमानना है। कोई भेदभाव नहीं, बस प्यार ही करना है। यही आशा, यही कामना हर एक के मन में, हर एक के लिए प्यार रहे, किसी ऐसी स्थिति से न आना पड़े कि हमने संसार में तो रहना है पर लगाव इस तरह नहीं।
हमने साधनों को साधन ही समझना है, उन पर अपने जीवन को आधारित नहीं कर लेना। जितना-जितना सच्चाई की Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiऔर बढ़ेंगे, जितना प्यार दिलों में बढ़ता जाएगा उतनी मजबूती से हम एकत्व का भाव बनाएंगे। जितना गहरा रिश्ता होगा उतनी ही स्थिरता आएगी।
अनन्त गुणों के भंडार थे सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज
Satguru Baba Hardev Singh Ji Maharaj
Satguru Baba Hardev Singh Ji Maharaj
सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी अनन्त मानवीय गुणों के भण्डार थे। प्यार-नम्रता उनके अन्दर कूट-कूट कर भरी हुई थी। वे अन्तर्मन से ही विनम्र थे। सतवचन कहकर वे हर किसी की बात को स्वीकार करने का प्रयास करते थे। उन्होंने अपने माता-पिता बाबा गुरबचन सिंह जी एंव निरंकारी राजमाता जी की बातों की यथारूप स्वीकार करने का प्रयास करते थे। Nirankari Vichar
उन्होंने अपने माता-पिता बाबा गुरबचन सिंह जी एंव निरंकारी राजमाता जी की बातों की यथारूप स्वीकार कर उस पर चलने का यत्न बाल्यकाल से ही करना आरम्भ कर दिया था। केवल उनकी बात को सतवचन कहकर स्वीकार करना नहीं अपितु साध संगत के हर बाल-वृद्ध, छोटे-बड़े सदस्य का आदर-सत्कार करते हुए उनकी बातों को गंभीरता से स्वीकार करना उनका स्वाभाव था।
सद्गुरु सारी दुनिया को सेहत बख्शता है लेकिन सृष्टि का मालिक जब नर तन में आता है जगत की मर्यादा कायम रखते हुए शरीर के स्वस्थ्य के लिए डॉक्टर का परामर्श भी स्वीकार करता है।
सौभाग्यवश एक बार जब एक सेवादार को बाबा जी की स्वास्थ्य सेवा करने का अवसर मिलता रहा। होमियोपैथी में उपचार से पूर्व उस व्यक्ति की अभिरुचि व स्वभाव के बारे में जानकारी लेनी होती है ताकि उपचार आसानी से हो सके। जब उन्हीं सेवादार महात्मा ने बाबा जी से पूछा कि हुज़ूर आप अपने स्वाभाव के बारे बताएं तो उन्होंने कहा : SUBMISSION (स्वीकार कर लेना)।
बाबा जी सामने वाले व्यक्ति की बात को अहमियत देते हुए उसे स्वीकार कर लेते थे। कभी-कभी अगर वह पूरी तरह सही ना भी हो तब भी अन्दर से ही सतवचन का स्वर उठता और वे अपने से ज़्यादा सामने वाले को महत्त्व देने का प्रयास करते थे।
आत्मीयता उनकी दूसरी सब बड़ी विशेषता थी। उनका अपनापन इतना सजीव था कि उनके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति इस अपनत्व का कायल हो जाता था। समझने वाली बात यह है कि उनके स्वीकार कर लेने और अपनत्व वाले भाव को हमें अवश्य अपनाना चाहिए।
उनके स्वभाव की ये बातें हमारे जीवन में आमूल चूल परिवर्तन ला सकती हैं। उनके स्वाभाव की खूबसूरतियों को अपने जीवन में ढालकर उनको याद करना, उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
Nirankari Satsang Live जिस मनुष्य का मन प्रभु चिन्तन में लगा है और जिसमें सदा प्रभु का ही विश्वास भरा है वही सच्चा ज्ञानी है The man whose mind is engaged in the contemplation of GOD and in whom the faith of GOD is always filled, he is the true scholar.
Nirankari Satsang Live |Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
रोशनी प्रसन्नता का प्रतीक है। आँखों का महत्त्व भी रोशनी से है। थोड़ी देर के लिए रोशनी समाप्त हो जाए तो कहानी बिगड़ जाती है। Light is a symbol of happiness. The importance of eyes is also from light. The story gets worse if the lights go out for a while. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
बाबा हरदेव सिंह जी एक उदाहरण दिया करते थे कि एक कमरे में सब प्रकार के अच्छे-अच्छे फर्नीचर, सोफ़ा-सेट अदि मौज़ूद हों लेकिन अगर वहां रौशनी न हो तो वह सारा सामान हमारी कठिनाई का कारण बनता है और अगर वहाँ रोशनी हो तो वही सामान हमारे आराम का कारण बनता है। Baba Hardev Singh ji used to give an example that a room should have all kinds of good furniture, sofa-set etc. But if there is no light then all that stuff becomes the cause of our trouble and if there is light then the same thing. Stuff causes our comfort. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj इसी प्रकार संसार की तमाम आराम की वस्तुएं हमारे लिए दुःख का कारण भी बन जाती हैं यदि हमारे पास प्रभु का ज्ञान, ब्रह्मज्ञान नहीं है। Similarly, all the comforts of the world also become a cause of sorrow for us if we do not have the knowledge of God, the knowledge of Brahman. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
ब्रह्मज्ञान की रोशनी की आवश्यकता
मनुष्य के जीवन में ब्रह्मज्ञान की रोशनी की बहुत आवश्यकता होती है। The light of Brahma Gyan is very much needed in the life of a human being. ब्रह्मज्ञान के बिना हम संसार में ऐसे घूमते हैं जैसे अँधेरे में घूम रहे हों। Without the knowledge of Brahman, we walk in the world as if we are walking in the dark. सद्गुरु ब्रह्मज्ञान का दाता है। जिसे सद्गुरु मिल जाता है उसे ब्रह्मज्ञान मिल जाता है। Sadhguru is the giver of Brahmagyan. The one who gets the Sadguru gets the knowledge of Brahman. फिर उस के जीवन में सच्च्ची रौशनी प्रकट होती है और उस मनुष्य का जीवन स्वर्गमयी बन जाता है। Then true light appears in his life and that person’s life becomes heavenly. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
सचमुच वे लोग बहुत खुशनसीब हैं जिन्हें रोशनी से प्यार होता है और जिन्हें रोशनी का महत्त्व पता होता है।
Truly, those people are very lucky who are in love with light and who know the importance of light. नहीं तो लोगों को यह एहसास भी नहीं होता कि ब्रह्मज्ञान की कोई रौशनी भी होती है। Otherwise people do not even realize that there is any light of Brahmagyan. जो सद्गुरु की संगत में आते हैं उनको आभास हो जाता है कि ऐसी दिव्य-ज्योतिसद्गुरु के पास है जिससे कि हमारा जीवन रोशन होता है।Those who come in the company of Sadguru, they get the feeling that such divine light is with Sadguru, sant nirankari mission which illuminates our life. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
महापुरुष एक उदाहरण दिया करते हैं कि एक दिन मैना और तोता रोशनी की बात कर रहे थे और जब एक उल्लू ने यह सुना तो वह कहने लगा कि क्या कहीं रोशनी भी होती है ? The great men give an example that one day the myna and the parrot were talking about light and when an owl heard this, he started saying that is there light anywhere? कहीं तुम अँधेरे को तो ही रौशनी नहीं कहते हो ? Do you not call darkness only as light? वह उड़ गया कि रोशनी होती ही नहीं है और उसने अपनी बात के समर्थन में एक चमगादड़ की गवाही भी दिलवा दी कि रौशनी नाम की कोई चीज़ नहीं होती। He flew away that there is no light and he also got the testimony of a bat in support of his point that there is no such thing as light. इसी प्रकार कई लोगों का यह विश्वास होता है कि ब्रह्मज्ञान, ईश्वरीय-ज्ञान, सत्य ज्ञानज्योति है ही नहीं, यह केवल भ्रम है। Similarly, many people believe that Brahmagyan, God-knowledge, true knowledge is not a light, it is only an illusion. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
सन्त वाणी में स्पष्ट लिखा है कि जिस मनुष्य का मन प्रभु चिन्तन में लगा है और जिसमें सदा प्रभु का ही विश्वास भरा है वही सच्चा ज्ञानी है। It is clearly written in Sant Vani that the person whose mind is engaged in contemplating GOD and in whom the faith of GOD is always filled, he is the true knowledgeable person. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
धन निरंकार जी।
सतगुरु माता सुदीक्षा सविन्दर हरदेव जी महाराज की जय !
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने एक दिवसीय सत्संग समारोह में कहा कि ब्रह्मज्ञान पाने के बाद ही मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं। जीवन मुक्त Nirankari Satsang Live होना ही सही मायने में मुक्ति है। सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज मुक्ति-पर्व समागम के अवसर पर श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे।
मुक्ति-पर्व पर शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी एंव जगत माता बुद्धवंती जी सहित उन तमाम महात्माओं को याद किया Nirankari Satsang Live जाता है, जिन्होंने संत निरंकारी मिशन के सत्य सन्देश के प्रचार-प्रसार में सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया।
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने आत्म-विश्लेषण करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि हम सोचें कि मुक्ति का असली अर्थ क्या है ? वास्तव में जीवन मुक्त होना ही सही मायनों में मुक्ति है। क्या हमने ब्रह्मज्ञान को पाकर अपनी असली पहचान Nirankari Satsang Live कर ली है ? क्या जीवन से मृत्यु की इस यात्रा में हम निरंकार से जुड़ पाए हैं ?
अगर ज़िन्दगी के सफर में हमें उतार -चढ़ाव, सुख-दुःख आदि का असर नहीं हो रहा तभी हम जीते जी मुक्त हैं। हमें सेवा, सुमिरन, सत्संग करने का सुक्ष्म अभिमान नहीं आना चाहिए, अगर Nirankari Satsang Live कोई गलत विचार मन में आते हैं तो वे हमें गलत रास्ते पर ले जाते हैं, निरंकार से दूर कर देते हैं और फिर हम मुक्ति से भी दूर चले निरंकारी विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जाते हैं।
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने कहा कि भक्ति कोई कुछ समय के लिए करने वाला कार्य नहीं है बल्कि जीवन भर करने वाला कार्य है। जब हम निरंकार के Nirankari Satsang Live एहसास के साथ जुड़कर कोई नेक कार्य करते हैं तो वो भी सेवा, सुमिरन, सत्संग का एक हिस्सा बन जाता है, चाहे हम घर में काम कर रहे हों या किसी की मदद करके सेवा कर रहे हों। फिर हमारा जीवन सुन्दर और भक्तिमय निरंकारी विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज बन जाता है।
हमारे जीवन में कभी भी ऐसा समय जीते जी नहीं आता कि हम परिपूर्ण हो जाएं। हम इंसान हैं तो कमियां भी हमारे Nirankari Satsang Live जीवन में रहेंगी, परन्तु इतना तो अवश्य कर सकते हैं कि हम अपने मूल इस निरंकार से जुड़कर इस पर ध्यान टिका कर बेहतरी की ओर बढ़ते जायें।
कम से कम इतना तो करें कि हर दिन हमारी कमियां थोड़ी काम होती जाएं। हमारे कर्म दूसरे के आंसू पोंछने वाले हों, औरों को खुशियां देने वाले हों। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji दातार कृपा करे कि सभी ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके अपने जीवन में मानवीय मूल्यों को विकसित करें और गलत रास्ते पर कदम बढ़ाने Nirankari Satsang Live से बचें।
साध संगत, यहाँ मान्तोवा, इटली के इस प्रांगण में आज हम सब यूरोपियन सन्त समागम के लिए इकट्ठे हुए हैं। यहाँ न सिर्फ इटली के बल्कि यूरोप के बहुत से देशों और हिन्दुस्तान से भी महापुरुष आए हैं ताकि जहाँ इस निरंकार परमात्मा का गुणगान कर सकें,वहीँ वो एक जो महत्ता है कि Nirankari Satsang Liveजीते जी इस निरंकार को जानने के बाद हमें अपना असली रूप पता लग सकता है और जब निरंकार का बोध हो जाए तो जीवन भर ब्रह्मज्ञान को याद रखते हुए सेवा, सुमिरन व सत्संग को अपनाना है।
अपने जीवन में मानवीय मूल्यों वाले गुण डालने हैं कि हम प्यार से हर एक के साथ रहें, चाहे वो हमसे कैसा भी व्यवहार करे, हमें उसके साथ कभी उल्टा व्यवहार नहीं करना, हमेशां अच्छी तरह ही पेश आना है, उनके साथ भी जो हमारे लिए अच्छी सोच नहीं रखते। Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharचाहे किसी ने हमें कुछ गलत बोल दिया, उसके साथ भी हमने उसी प्यार से व्यवहार करना है। उनके लिए अपने दिलो-दिमाग को जलना नहीं है बल्कि स्वंय में सहनशीलता लानी है और दूसरों को भी ठंडक देनी है।
आज आप सत्संग में समय निकाल कर इतनी दूर-दूर से आए हैं, अन्य संगठनों के भी प्रतिनिधि आए हैं और यहाँ के भारतीय दूतावास का भी प्रतिनिधित्व हुआ है, दासी सभी का धन्यवाद करती है। यह जो निरंकारी मिशन का सत्य-सन्देश है इसको सभी ने न केवल सुना बल्कि जो भी मिल रहे थे उन्होंने प्रशंसा भी की कि किस तरह दुनिया की जो आज के समय की आवश्यकता है कि हम अपने आप को एक छोटे से दायरे में न कर लें, अपने आगे-पीछे दीवारें न खड़ी कर लें। Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharउन दीवारों को न सिर्फ गिरना है बल्कि कोशिश करके जोड़ने वाले पुल के रूप में अपने जीवन को आगे लाना है।
जहाँ हम हर एक के दिल और ज़िन्दगी तक उस तरह से पहुंचें, जिस तरह ब्रह्मज्ञान ने हमारे अंदर रोशनी की, हम वो जीवन जीयें जैसा युगों-युगों से संतों-महापुरुषों ने कहा कि-मनुष्य तन है तो मनुष्य जीवन भी वैसा हो जो मानवीय मूल्यों को अपने अंदर रखते हुए सारी खूबियाँ दर्शाए। Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharजीवन वाही मुबारक होता है जो उन गुणों से युक्त होता है और वो जीवन भर के लिए एक उत्सव के रूप में माना जा सकता है।
हम संसार में देखते हैं कि हर साल अलग-अलग मौसम आते हैं; कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी बरसात तो कभी बर्फ़बारी होती है, इसी तरह हमारे जीवन में भी समय हमेशां एक सा नहीं होता। खुशियों के समय खुशियाँ आएंगी, जब दुःख आना है तो वह भी अपने समय पर आना है, Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharजब शरीर में कोई तकलीफ़, कोई बीमारी आनी है तो उसने भी अपने समय से आना है।
इतना कुछ जब हमारे साथ हो रहा है इस जीवन काल में तो, हमने शांति और स्थिरता रखते हुए जीवन की किसी भी स्तिथि में अपने मन और व्यवहार को स्थिर रखना है। यह तभी संभव है जब हम इस स्थिर परमात्मा-निरंकार, जो शुरू में था, आज भी है और जिसका कोई अंत नहीं, से जुड़ जाते हैं।
यह भोतिक्वादी दुनिया, यह माया, यह सब चीजें क्षण-भंगुर हैं, सब नाशवान हैं तो हम कैसे उसे याद रखते हुए कि हमारी स्तिथि जो भी चल रही है, पर हम हमेशां इस एकरस निरंकार के साथ जुड़े हैं। चाहे हम इसे अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु, राम Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharकिसी भी नाम से बुलाएं यह अपने-आप में निर्गुण है, यह पत्ते-पत्ते, ज़र्रे-ज़र्रे में समाया हुआ है, जब हम इसका सहारा लेकर इसके जैसा बनने की कोशिश करेंगे तो हमारे जीवन में चाहे कैसी भी स्तिथि चल रही हो हमें वो एक जैसी सहज-आनन्द की अवस्था और स्थिरता ही मिलेगी।
दासी, अन्त में यही शुभकामना व्यक्त करेगी कि जिस जज़्बे से सब यहाँ आज संगत में आए हैं, दातार सभी पर इस तह अपना आशीर्वाद बनाए रखे कि जो सन्देश ग्रहण करने आए हैं वो एक-एक सन्देश चाहे छोटा हो या बड़ा Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharअपनी ज़िन्दगी में हम उतारेंगे तो निश्चित रूप से उसका हमारे जीवन पर एक अच्छा प्रभाव पड़ेगा और हम एक बेहतर इन्सान बन सकेंगे।
जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिए इच्छाओं-लालसाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना क्योंकि लालसायें कभी ख़त्म नहीं होतीं। संतुष्टि के प्रभाव को प्रबल रखने के लिए सदैव निरंकार को जीवन का आधार बनाये रखें।
यह विचार सद्गुरु माता जी ने एक दिवसीय सत्संग समारोह में व्यक्त किये। आप सन्त निरंकारी मिशन के आधिकारिक यू-ट्यूब चैनल पर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे।
राजा ने भिखारी की आमंत्रित किया और कहा कि मैं तुम्हारे बर्तन को पूरा भर दूंगा। राजा ने धन, सम्पत्ति सब कुछ दाल दिया, यहाँ तक कि अपना राज-पाठ भी उसे सौंप दिया, फ़िर भी बर्तन खाली का खाली ही रहा। भिखारी कहता है राजन ! ये मानवीय इच्छाएं हैं जो कभी ख़त्म नहीं होतीं।
अर्थात परमातमा हमें हर पल हमारी ज़रूरतों के अनुसार साधन उपलब्ध करा रहा है किन्तु इन्सान फिर भी संतुष्ट नहीं होता। इच्छाओं पर लगाम लगगने के लिए मन पर नियंत्रण रखना होता है।
ख़्वाहिशें मन में इतनी अधिक हैं कि साँस लेने के लिए भी जगह नहीं है। साँस भी रुक-रुक कर ले रहे हैं। भाव यही कि अपनी इच्छाओं के कारण निरंकार को भी दूर कर दिया है। अंग-संग रहने वाले निरंकार को भी भुला बैठे हैं।
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी ने एकदिवसीय सत्संग समारोह में कहा कि, पूरे ब्रह्मांड में यह जो कण-कण में शिक्षा है इसको हमने अपने जीवन में उतारना है। यह जो शिक्षा है कि हमने कभी भी किसी से भी किसी भी स्थिति में कुछ भी सीखा है तो वह हमारे अन्दर इस तरह ढल जाती है कि ताउम्र कायम रहती है।
अगर हम सामाजिक रूप से भी देखें कि कुछ समय पहले टेप रिकॉर्डर होते थे, वीडियो कैसेट होती थी, ग्रामोफोन होते थे तो आज तो वह Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiतकनीक पुरानी हो गई हैं। समय के साथ कैसे सब ने सीखा कि अपने आप को अपडेट करें।
आज फिर यह एक स्थिति आई लॉकडाउन की कि बाहर जाकर अगर अपना कार्य नहीं कर पा रहे हैं तो हमने सीखा कि Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiकिस तरह घर बैठे भी अपने कार्य को ‘वर्क फ्रॉम होम’ के रूप में करना है।
हम अपने जीवन में सीखते हैं, हर पल सीखते हैं, हर जगह से शिक्षा मिल रही है। हमने यह चुनाव भी करना है कि कौन सी शिक्षा रखनी है और कौन सी शिक्षा नहीं लेनी, यह भी बहुत महत्वपूर्ण है। हमने Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiअगर किसी व्यक्ति के स्वाभाव में किसी चीज़ को देखा तो साथ में यह भी देखा कि उस व्यक्ति में जो अच्छाईयां हैं उनसे सीखो और यदि अच्छाइयां नहीं हैं तो बुराई के रूप में सामने आया तो यह भी सीखो कि उसको नहीं सीखना।
एक यह भी शिक्षा कि कैसे इस साल यह ‘समागम फ्रॉम होम’ हम सबकी झोली में आया है कि घरों में बैठे हुए ही इस Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiसमागम का उसी तरह आनन्द, वही सेवा भाव जो मैदानों में आप सब सन्तों का होता था वह अब अपने परिवार रूप, घर रूप में ही टेक्नोलॉजी के माध्यम से वह आनन्द इस बार इस तरह लेंगे।
सन्तों का तो कभी भी शिकायती भाव नहीं होता तो कैसे सहज में ही यह आनन्द आया है कि इस बार तो समागम जाया नहीं जाएगा तो उसको भी एक सकारात्मक रूप में लेNirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji लिया कि इस बार तो घर की ही सहूलियत में बैठे हुए यह समागम करने को मिलेगा।
दातार कृपा करे कि Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiजीवन में हर एक के जहां सेवा, सुमिरन और सत्संग के पहलू और ज्यादा मजबूत हों वहीं एक हर चीज़ में भी यह शिक्षा हमें मिल सकती है, किसी से भी शिक्षा मिल सकती है।
सिर्फ़ हम मनुष्य तक ही नहीं ब्रह्माण्ड से Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiसीखने की बात है तो उसी तरह हमें क्या शिक्षा किस से लेनी है, किसकी क्या अच्छाई है उसको अपनाते चले जायें और जो भी किसी की नकारात्मकता है वह अपनाने की हमें ज़रुरत नहीं, वह सीखने का नहीं।
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने एकदिवसीय सत्संग समारोह में कहा कि, दुनिया में देखा जाए तो हमारी श्रद्धा किसी भी चीज़ पर हो सकती है पर यहाँ पर हम जो श्रद्धा की बात कर रहे हैं वो इस प्रभु-परमात्मा निरंकार से है।
हम अपने काम-काज की दुनिया में देखें, इतनी लगन से अगर कोई कार्य करता है तो कहा जाता है कि कर्म ही पूजा है या इस तरह से कि इस व्यक्ति ने तो अपना कार्य इतना अच्छे से निभाया कि यह कार्य ही उसकी पूजा बन गया।
लेकिन यहाँ जो श्रद्धा है वह अपने इष्ट के प्रति है और यह लगन परमात्मा के प्रति उसकी जानकारी होने के बाद ही लगती है। मन में भाव आते हैं और फिर वो श्रद्धा सिर्फ अपने गुरु तक ही सीमित नहीं होती बल्कि उसका बहुत विस्तार हो जाता है।
हमारी श्रद्धा ही होती है कि किसी को अगर घर में बुलाया है भोजन के लिए तो वो घर जाकर बाद में बताते भी हैं कि मैं उन महापुरुषों के घर गया और बहुत ही श्रद्धापूर्वक उन्होंने भोजन खिलाया।
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने कहा कि, यह मन में घर करने वाली बात है कि किस चीज़ पर संसार में श्रद्धा रखनी है किस पर नहीं क्योंकि यह भी देखा जाता है कि अगर कोई नुकसान देने वाला कार्य है तो भी कुछ ऐसे लोग होते है कि वो उसके लिए भी इतने ही दृढ हो जाते हैं। उतनी ही निष्ठा से लगे रहते हैं और रात की नींद भी त्याग देते हैं।
ऐसा सोचें, ऐसा करें, ऐसा लिखें कि जिससे किसी का निकसान होता हो तो ऐसी श्रद्धा किसी काम की नहीं है क्योंकि श्रद्धा तो पवित्रता से जुड़ा शब्द है। जहाँ विश्वास की बात है तो हमारे विश्वास के भी कितने पहलू हैं जीवन में। अगर कोई इंटरव्यू के लिए जा रहा है तो कैसे इंटरव्यू लेने वाला उसके विश्वास की जाँच करता है और बाद में बोलता है कि मुझे तुम्हारा आत्मविश्वास पसंद आया।
हम शरीर नहीं हैं, हम आत्मा हैं तो जब आत्मा और परमात्मा का मेल हुआ है तो फिर यह एक विश्वास इस परमात्मा पर कि हर बात को इस तरह से मन में बिठा लेना कि यही सब कुछ है। हम परमात्मा पर अपनी श्रद्धा व विश्वास को मजबूत करें।
सद्गुरु माता ने एक दिवसीय सत्संग समारोह में अपने विचार व्यक्त किए कि, जीवन में हम भक्ति को सच में भक्ति की ही तरह कर रहे हैं क्या ? या जिसमें आस्था रखते हैं हम, अपने परमात्मा में, उसी से कोई सौदा कर रहे हैं ? क्या कोई व्यापार चल रहा है ? या सचमुच हमारी भक्ति, एक प्रभु को समर्पित भक्ति है ? यह वास्तविकता केवल सवयं हम सब को ही पता है।
हम सब भली भांति जानते हैं कि हम सब क्या कर रहे हैं ? क्यों कर रहे हैं ? हमारा उद्देश्य क्या है ? हम सब यह भी भली भांति जानते हैं कि एक तरफ़ तो विश्वास होती है और वो प्यार और विश्वास कभी नहीं छूटता, फिर चाहे हमारे जीवन के सफ़र में कितने भी उतार-चढ़ाव आ रहे हों।
सद्गुरु माता जी कहते हैं कि हम देखते हैं कि एक बन्दर के बच्चे ने अपनी माँ को इतना कसकर पकड़ रखा होता है और उस चिपके हुए बच्चे को लेकर माँ एक पेड़ से छलाँग मार कर दूसरे पेड़ पर जा रही है तो बच्चा उस स्थिति में भी माँ को नहीं छोड़ता। यह एक दृढ विश्वास की बात होती है।
फूल और तितली के सम्बन्ध की बात कि कितनी तेजी से हवा चलती है जब आँधी है और तितली फूल का रस ले रही है, उस पर इस तरह से बैठ गई है, फिर हवा चाहे कितनी भी तेजी से आए, एक छोटी छोटी सी तितली को वह हवा नहीं उड़ा पाती। वह फूल के साथ है तो वहीं दूसरी तरफ़ जो ऊँचे-ऊँचे पेड़ एक अभिमान के सूचक वो अपनी अकड़ में खड़े हैं और आंधी आते ही वो पेड़ टूट जाते हैं।
कैसे यहाँ एक प्यार वाला फूल और एक प्यार वाली तितली एक-दूसरे का प्यार नहीं छोड़ रहे हैं, चाहे कितनी भी आँधियाँ आयें, वहां उस पेड़ की टहनियों ने साथ छोड़ दिया। हमारा जीवन भी इस रूप में ही हमने एक प्यार भरा बनाना है कि कैसे भी हालात हों इस परमात्मा से, इस निरंकार से प्यार ही प्यार हमेंशा हमारे मन में हो।
सद्गुरु माता जी ने कहा कि, भक्ति कोई ऐसी चीज़ तो नहीं जो दिन में अलग कोई समय निकालकर की जाए। भक्ति तो हर सांस के साथ होती है। प्यार तो हम हर समय ही कर सकते हैं इस निरंकार के साथ। हमें एक इसी भाव में चूर होकर अपने जीवन में भक्ति को और मजबूत करना है।
इसके लिए साधन सेवा, सुमिरन व सत्संग है और इसी के साथ जुड़कर हम इस निरंकार को अपने जीवन में और मजबूती के बिठायें। दिल से प्यार हमेंशा सभी के लिए हो। फिर किसी भी व्यक्ति को मिलकर हम अगर धन निरंकार कर रहे हैं तो वो हमें एक इंसान न दिखे बल्कि उसे अपना सद्गुरु रूप ही समझ कर प्रेमाभक्ति हर एक से की जाए।
Nirankari Vichar Today : हर समय निरंकार प्रभु-परमात्मा का शुकराना करना भक्ति है
न्त निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक विचारधारा है, एक सतत् प्रवाह है जिसमें सभी धर्मों के मानव कल्याण संबंधी पवित्र विचारों का समावेश है। धर्म के बारे में महर्षि वेदव्यास ने कहा है ‘धारयति इति धर्म:’ । गोस्वामी जी के शब्दों में, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई ।
निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी फरमाते हैं, ‘मानव कल्याण’ ही सच्चा धर्म है । Nirankari Vichar Today धर्म का सार है – जो धारण करे वह धर्म माना जायेगा, धर्म की नींव करुणा, अहिंसा, परोपकार ही हो सकती है । जहाँ करुणा का अभिवादन नहीं, वह धर्म कैसा ? धर्म इन्सान को बेहतर इन्सान बनाने की व्यवस्था है । धर्म इन्सान के अन्दर मानवता के पुष्प खिलाता है । धर्म प्रकृति और पुरुष का मिलान कराता है, धर्म का अंतिम उद्देश्य शांति का साम्राज्य स्थापित करना है ।
सन्त निरंकारी मिशन भले ही अपने को कोई धर्म या सम्प्रदाय न मानता हो फिर भी धर्म का बीज मंत्र, वास्तविक अवधारणा में मिशन खरा उतरता है संवेदना, सहनशीलता, प्रेम, मिलनवर्तन, परोपकार करुणा ही धर्म के आभूषण हैं । करुणा की मूर्ति निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी, #निरंकारी राजमाता कुलवन्त कौर जी तथा पूज्य माता सविन्दर-हरदेव जी की इस अद्वितीय त्रिवेणी ने विश्व को अच्छे इन्सान दिए हैं । सद्गुरु के रूप में निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी की छत्तीस वर्षों की कल्याण यात्राएं काल के गाल पर अमिट हस्ताक्षर छोड़ गई हैं जो मानवता के सव्र्निम इतिहास धरोहर है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
सहनशीलता धर्म का प्राण है । इतिहास साक्षी है कि सन्त परम्परा में सुकरात, ज़ीसस क्राइस्ट, महात्मा गाँधी, निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी, निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी के कथनों में कितनी समानता है, कोई विरोध नहीं कि कोई एक गाल पर चांटा मारे और दूसरा गाल भी आगे कर दो । चांटा ही क्या निरंकारी मिशन ने तो गोली मारने वाले को भी क्षमा कर दिया, कोई शिकायत नहीं, कोई विरोध नहीं । Nirankari Vichar Today
निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी के महान बलिदान के बाद निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने आक्रोशित जनसमुदाय में भभकती अग्नि को जिस प्रकार शांति का उपदेश देकर शान्त किया वह अद्वितीय है । उन्होंने कहा कि आप सभी ने तो अपना सद्गुरू खोया है, दास ने तो अपना पिता और सद्गुरू दोनों खोये हैं ।
हमें मर्यादा, संयम, सहनशीलता को कायम रखते हुए इस बलिदान का मूल्य प्रेम-नम्रता, प्रीत के साथ रक्तदान देकर चुकाना है । निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी की आज्ञा पालन करते हुए मानव-एकता के नए मानक स्थापित हुए । यह सजगता, संवेदना बिना ब्रह्ज्ञान के संभव ही नहीं । इस सन्दर्भ में गोस्वामी जी की पंक्तियाँ याद आती हैं- Nirankari Vichar Today
ब्रह्मज्ञान को पाइके नामुज भयो जगदीस,
तुलसीऐसे मनुजको देवनवावें सीस ।
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ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के बाद हमारे तौर-तरीके ही बदले जाते हैं । नज़रें बदली हैं तो नज़ारे भी बदल जाते हैं । ऐसा ब्रह्मज्ञानी फूल के प्रति तो संवेदनशील होता ही है साथ ही वह काँटों के प्रति भी क्रूर नहीं होता है । बात तो जागरण की है । शुकराना,धन्यवाद की भावना ही ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के बाद प्रमुखता से मुखरित होती है । सम्पूर्ण हरदेव वाणी फ़रमाती है – Nirankari Vichar Today
शुकर किए जा तू मालिक का शुकराना ही भक्ति है।
शिकवे गिले को लब पर अपने न लानाही भक्ति है।
थैंक्यू, शुक्रिया और धन्यवाद छोटा सा शब्द अपने आप में असीम संभावनाएं समेटे हुए है । यह छोटा सा शब्द इन्सान के व्यक्तित्व को बड़ा बनता है । प्रत्येक भक्त के जीवन में इस शब्द की महती आवश्यकता है, ‘धन्यवाद’ ! ये शब्द हमारे व्यवहार के साथ-साथ हमारे अवचेतन मन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है । आभार व्यक्त करने वाले व्यक्ति अपेक्षाकृत ज्यादा खुशमिजाज़ देखे गए हैं और उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा भी खूब मिलती है । शुकराना शब्द भावनात्मक एकता का प्रतीक है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
हम दिनचर्या में देखते हैं कि एक छोटा बच्चा हमारे लिए कुछ भी करता है तो हम उसे थैंक्यू कहना नहीं भूलते, इस शब्द को सुनकर एक बछा भी एक अद्भुत जोश से भर जाता है । उसके चेहरे पर आयी खुशी को देखने के लिए हम बार-बार थैंक्यू कहने का बहाना खोजते हैं और बच्चा भी इस शब्द को सुनने के लिए दोहरे वेग से सेवा में तत्पर हो जाता है । धन्यवाद कोई शब्द नहीं, ये तो इन्सान के अन्दर से महसूस किए गए आभार का बाहरी प्रदर्शन है । आन्तरिक भाव की छलकन है, इसे आजीवन व्यवहार का हिस्सा बनाना जरूरी है । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने सत्संग समारोह में कहा कि एक की जानो, एक को मानो, एक हो जाओ के मिशन के आह्वान को हम बहुत सालों से सुन रहे हैं और इस पर चल कर हकीकत से संसार के लिए एक आदर्श उपस्थित कर रहे हैं।
सबसे पहले एक को जान सकते हैं, फिर एक को मान सकते हैं। जब एक को जान लिया, एक को मान लिया तभी संभव है एक हो जाना और गहराई Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiमें एक को जानने वाली जो बात है हर कोई अपने इष्ट, अपने ईश्वर, परमात्मा, निरंकार जो भी नाम से वह सम्बोधित करता है भाव यही होता है कि वह सर्वशक्तिमान है।
यह एक छोटे से पत्ते से लेकर विशाल पहाड़ तक, हर एक में, हर एक के अन्दर-बाहर में, कण-कण में रहने वाली ऐसी शक्ति है जो न घटती है, न बढ़ती है, न Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiजल सकती है, न बुझ सकती है। यह स्थिर है। जब अपनी जगह पर स्थिर रहने वाले निरंकार की पहचान हो जाती है, इसको जब जान लेते हैं तो जीवन में बदलाव आते हैं और इस जीवन को और बेहतर कैसे जीया जा सकता है ? उसके लिये यह पहली सीढ़ी बन जाती है।
अवतार बाणी की यह पंक्तियाँ कि –
बिन वेखे मन मन्नदा नहीं ए बिन मन मन्ने प्यार नहीं।
प्यार बिन नहीं भगती ते बिन भगती बेड़ा पार नहीं।
इस जीवन में जब हमने इस एक के दशन कर लिए हैं, इस एक के साथ हम जुड़ गए हैं, इस Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiएक को देख लिया है, जान लिया है तो तभी हम इस से प्यार कर सकते हैं। भक्ति में प्यार मूल है और भय के साथ भक्ति नहीं होती। भक्ति का सार तो प्यार है।
मन ने जब इस भक्ति को अपने जीवन में अपनाया तो प्यार के साथ ही हमारी यात्रा चली। इसी तरह एक को जानने Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiके बाद एक को मानना संभव हो जाता है और आगे इस मूल को समझने के बाद फिर सभी एक हो जाते हैं।
इस निरंकार का एहसास हम कभी न भूलें। यह कभी न भूलें कि निरंकार ने तो सदैव हमारे अंग-संग ही है। यह हमेशां कायम-दायम रहने वाला है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiयह कभी आता जाता नहीं है।
यह हमारा मन जो हमें किसी भी पल हमें कोई सोच देता है तो हमारा मन अस्थिर हो जाता है परन्तु जब हमारा मन इस एक स्थिर प्रभु-परमात्मा Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Jiपर टिका रहता है तो ही एकत्व भी स्थापित होता है।