Best Nirankari Vichar 2024 | भक्ति

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

Nirankari Vichar : परमात्मा पत्ते-पत्ते, डाली-डाली ब्रह्मांड के कण-कण में समाया है। परमात्मा अंदर-बाहर सब जगह मौजूद है और हर धर्म ग्रंथ ने यही समझाया है। परमात्मा को जानने के बाद मन से भय, स्वार्थ और अहंकार दूर हो जाता है। हानिकारक सोच और नकारात्मक विचार खत्म हो जाते हैं। सभी एक ही परमपिता-परमात्मा की ही रचना हैं। मनुष्य जीवन अनमोल है और जीते जी ही परमात्मा की पहचान करनी है। यह शरीर ही हमारी वास्तविक पहचान नहीं है बल्कि आत्मिक रूप ही वास्तविक पहचान है।

Nirankari Vichar
Nirankari Vichar

निरंकारी मिशन का परिचय | Introduction of Nirankari Mission

निरंकारी मिशन एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक संगठन है जिसका उद्देश्य मानवता के बीच प्रेम, शांति, और एकता को बढ़ावा देना है। इस मिशन की स्थापना 1929 में बाबा बूटा सिंह जी द्वारा की गई थी। यह मिशन विभिन्न सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों के माध्यम से लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता और मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करता है। निरंकारी मिशन के अनुयायी अपने जीवन में सत्य, प्रेम, और सेवा के सिद्धांतों का पालन करते हैं।

व्यव्हार | Nirankari Vichar

शरीर की अवस्था (Nirankari Vichar) और आकार तो एक जैसा है परंतु व्यवहार से पता चलता है कि वह मानव है या दानव है। फरिश्ता और शैतान दोनों इंसानी रूप में ही होते हैं परंतु मानवीय गुणों से पता चलता है।

अवस्था | Nirankari Vichar

जैसे फूल में खुशबू होगी और कोमलता भी होगी, फूल जिस भी अवस्था में होगा खुशबू ही देगा। कोई भी फलदार पेड़ हो तो फल देगा साथ ही वह ऑक्सीजन भी देगा और छाया भी देगा।

धर्म | Nirankari Vichar

Nirankari Vichar : मानवता से ऊँचा कोई धर्म नहीं है और ऐसा ही इंसान का जीवन हो। जब मन में परमात्मा बसा रहता है तो प्यार का भाव, अपनत्व, एकता, विशालता, सहनशीलता, करुणा, दया इत्यादि मानवीय गुण मन में खुद-ब-खुद आ जाते हैं।

प्यार | Nirankari Vichar

जीवन में यदि भक्ति के बीज बीजेंगे तो उसका परिणाम अच्छा होगा, जीवन में प्यार ही प्यार होगा। इससे नफ़रत के कारण भी खत्म हो जाते हैं और किसी के प्रति भी नफ़रत का भाव नहीं होता, फिर मन में प्यार ही टिकेगा।

आदर-सत्कार और प्यार से भरा जीवन होगा तो जीवन व्यर्थ नहीं होगा बल्कि गुणवत्ता वाला जीवन हो जाएगा।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि निरंकारी सत्संग
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि_निरंकारी सत्संग

निरंकारी मिशन क्या है?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक संगठन है जो मानवता की सेवा, प्रेम, और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है। इसका उद्देश्य मानवता के बीच एकता और शांति स्थापित करना है।

निरंकारी मिशन की स्थापना कब और किसने की थी?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन की स्थापना 1929 में बाबा बूटा सिंह जी ने की थी।

निरंकारी मिशन का मुख्यालय कहाँ स्थित है?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन का मुख्यालय दिल्ली, भारत में स्थित है।

निरंकारी मिशन के प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन के प्रमुख सिद्धांतों में ईश्वर की अनुभूति, मानवता की सेवा, प्रेम, शांति, और भाईचारे को बढ़ावा देना शामिल है।

निरंकारी मिशन की प्रमुख गतिविधियाँ क्या हैं?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन के अंतर्गत सत्संग, सामाजिक सेवा, चिकित्सा शिविर, रक्तदान शिविर, और पर्यावरण संरक्षण जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।

निरंकारी मिशन के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु कौन हैं?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज हैं।

निरंकारी मिशन में शामिल होने की प्रक्रिया क्या है?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन में शामिल होने के लिए किसी भी निरंकारी सत्संग में भाग लेकर, ईश्वर की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं और मिशन के सिद्धांतों का पालन कर सकते हैं।

निरंकारी मिशन का संदेश क्या है?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन का संदेश है कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं और हमें प्रेम, शांति, और एकता के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।

निरंकारी मिशन के सेवा कार्य क्या हैं?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन द्वारा किए जाने वाले सेवा कार्यों में गरीबों की सहायता, अनाथालयों में सेवा, वृद्धाश्रमों में सेवा, और प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य शामिल हैं।

निरंकारी मिशन के सत्संग में क्या होता है?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन के सत्संग में भजन, प्रवचन, और आध्यात्मिक चर्चा होती है, जहाँ भक्त जन अपने अनुभव साझा करते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।

मानवता ही सच्चा धर्म | Humanity Is The Only True Religion | Nirankari Vichar Today

Nirankari Live

मानवता (Humanity) से बड़ा कोई धर्म नहीं है, मगर इंसान मानवता (Humanity) मानव धर्म को छोड़कर मानव के बनाये हुए धर्मों पर चल पड़ता है। ऐसा उसकी अज्ञानता के कारण होता है इंसान, इंसानियत को छोड़कर धर्म की आड़ में अपने मन के अन्दर छिपी, निंदा, नफरत और जाति-पाँति के भेद भाव के कारण अभिमान को प्राथमिकता देता है। इसके कारण ही मानव जीवन के मूल मकसद को भूल जाता है मानव प्यार करना भूल जाता है, अपने जन्मदाता को भूल जाता है इससे मानव मन में दानवता वाले गुणों का प्रभाव बढ़ता चला जाता है। आज धर्म के नाम पर लोग लहू लुहान हो रहे हैं।

मानवता (Humanity) को एक तरफ रखकर इंसान अपनी मनमर्जी अनुसार धर्म को कुछ और ही रूप दे रहा है, जिसके कारण इंसान से इंसान की दूरियाँ बढ़ रही है. कहीं जाति पाँति तो कहीं परमात्मा के नामों के झगड़ों के कारण दिलों में नफरत बढ़ती जाती है। इंसानियत खत्म होती जाती है, जहाँ इंसानियत खत्म होती है। वहा धर्म भी खत्म हो जाता है। सन्तों महापुरुषों ने यही संदेश दिया कि कुछ भी बनो मुबारक है, पर पहले इंसान बनो। आज मानवता के विपरीत दानवता का ही उदाहरण जगह-जगह नज़र आता है परिणामस्वरूप परिवार के परिवार उजड़ जाते हैं। आज इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन बना हुआ है। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए इंसान धर्म की ओट लेकर इंसान का खून बहाने से भी पीछे नहीं हटता ।

मानवता अपनाकर इंसान दूसरों को सुख देने का कारण बनता है दुख देने का नहीं। वह दूसरों को रोता देखकर खुश नहीं होता है वह जख्म देकर नहीं जख्म भरकर खुश होता है, दूसरों को गिराकर कर नही उठाकर खुश होता है। वह हमेशा भला करके खुश होता है भला-सोचना, भला ही करना, मानवता की असल निशानी है। मानवता की मजबूती के लिए मन में सद्भाव वाले भाव धारण करने होंगे, यह तभी संभव होता है, जब मन का नाता निर्मल पावन परम सत्ता से जुड़ा होगा, मानव परमपावन से जुड़कर कभी अपावन कार्य नहीं करेगा।

सन्त निरंकारी मिशन में महापुरुषों के रहन-सहन, आचार-विचार, वेश-भूषा, खान-पान, बोली-भाषा अलग होते हुए भी विचारधारा और मानवीय सोच एक है। निरंकारी सन्त समागम भी मानवता के सुन्दर गुलदस्ते के रूप नजर आते हैं। यहाँ मानवता का जीवन्त स्वरूप नजर आता है। निरंकारी मिशन इंसानों का दृष्टिकोण विशाल कर रहा है। मिशन परमात्मा की जानकारी द्वारा लोगों के अंतर्मन के भावों को बदल रहा है। मन बदलता है तो स्वाभाविक रूप से स्वभाव भी बदलता है, विचार बदलते हैं और व्यक्ति के जीवन जीने का ढंग बदल जाता है, फिर जीवन की दिशा अपने-आप सही हो जाती है, फिर हर स्वाँस कह उठती है-

एक नूर ते सब जग,

उपजिया कउन भले कौन मन्दे ।

सद्गुरु माता जी कहते हैं कि विश्व में मानवता तभी कायम होगी जब हम मिलकर मानवता को अपने दिलो में, मनों और दिमागों में बसायेंगे। हम प्यार से रहें, मिलवर्तन को बढावा दें, दूसरों को खुशियाँ बाटें, ऊँच-नीच, जाति-पाँति, वैर, निंदा-नफरत की भावना को त्यागकर सारे संसार की सेवा करें।

ऐसा था सन्त कवि सुलेख साथी जी का जीवन

सद्गुरु ने हमें सत्य से जोड़कर प्रेम से रहने की शिक्षा दी है, विश्वबन्धुत्व का पाठ पढ़ाते हुए मानव को मानव से प्रेम, नम्रता व सत्कार करना सिखाया हैं। सद्गुरु संसार में शान्ति व अमन-चैन का वातावरण बना रहे हैं। मानवता की वास्तविक स्थापना प्रेम, दया, करुणा, सहनशीलता और विशालता की स्थापना में निहित है। महापुरुषों ने मानवता को ही सच्चा धर्म माना है। मानवता को खत्म करके कभी भी धर्म को बचाया नहीं जा सकता है, धर्म को मजबूती नही प्रदान की जा सकती।

आज इंसान धर्म के नाम पर बँटा हुआ है। अपनी उपासना पद्धति अपने आराध्य, अपनी परम्पराओं को वह श्रेष्ठ मानता है और दूसरों से अकारण नफरत करता है। जिन पीर पैगम्बरों को वह अपना मार्गदर्शक स्वीकार करता है वास्तविकता में उनकी बातों को तो न ध्यान से समझने का प्रयास करता है और न ही उन्हें सच्चे मन से मानने का।

ध्यान से देखा-समझा जाये तो सभी सन्तों-महापुरुषों-पैगम्बरों ने मानवता की ही शिक्षा दी है। प्यार, नम्रता, सहनशीलता और सद्भाव का ही पाठ पढ़ाया है फिर भी इन्सान अपनी मनमति अपनाकर मानवता का अहित करता जाता है। आवश्यकता है मानवता के मर्म को समझ कर मानवता के धर्म को हृदय से अंगीकार किया जाए।

Prabhu Chain Ki Baja Do Bansi Re

ऐसा था सर्वप्रिय सन्त, प्रसिद्ध कवि विद्वान संपादक, प्रभावशाली विचारक, श्री सुलेख ‘साथी’ जी का जीवन | The life of ‘Sulekh Sathi Ji’ 16.06.1953 – 08.07.2023

Sulekh Sathi Nirankari

सर्वप्रिय सन्त, प्रसिद्ध कवि विद्वान संपादक, प्रभावशाली विचारक, बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री Sulekh Sathi जी का जन्म 16 जून, 1953 को पिता श्री ज्ञान सिंह जी और माता वीरांवली जी के गृह अम्बाला शहर (हरियाणा) में हुआ। आरम्भिक शिक्षा अम्बाला शहर में हुई। तीन भाई और पाँच बहनों वाले परिवार की पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने में पिता का हाथ बंटाने का कार्य साथी जी ने शुरू से ही प्रयास जारी रखा। आपके परिवार का वातावरण भक्तिमय था जिसका व्यापक प्रभाव सुलेख साथी जी के ऊपर पड़ा। आपका समय शिक्षा ग्रहण करने, सेवा, भक्ति तथा परिवार के कार्यों को पूर्ण करने में व्यतीत होता। रोजगार की आवश्यकता को देखते हुए आपने हिन्दी स्टेनो की परीक्षा उत्तीर्ण की और पहले हिसार (हरियाणा) तथा बाद में दिल्ली सरकार में चयनियत हुए। श्री वासुदेव राय जी की प्रेरणा पाकर आप 1972 में दिल्ली आए और एक नजर अखबार से जुड़कर सन्त निरंकारी मिशन की सेवा करने लगे।

अम्बाला शहर में Sulekh Sathi जी के घर में संगत होती थी जहाँ माता-पिता की प्रेरणा से सभी भाई-बहनों को सेवा का अवसर मिला। आपके मन में आरम्भ से ही सेवा का जज्बा था। 1979 में श्री कुन्दन सिंह अरोड़ा जी की बेटी पूज्य चरणजीत कौर जी के साथ आप विवाह के बंधन में बंधे। आपने धर्मपत्नी से यही आग्रह किया कि आपने घर संभालना है और दास को सत्गुरु की सेवा के लिए समय उपलब्ध कराना है। आपने सत्गुरु की सेवा में सहयोग देना है। पति-पत्नी के बीच यह समझ जीवनपर्यन्त कायम रही। बेटियां नवनीत जी, नवीन जी और बेटे सुप्रीत जी ने भी माता-पिता के आदर्श गुरसिखी जीवन का अनुकरण किया और सतगुरु की सेवा में सदा समर्पित रहे। स्वयं को पीछे रखकर सतगुरु की शिक्षाओं को सदैव उजागर करते रहे। बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सुलेख साथी जी में अनेकों गुण थे। आपने अपनी योग्यता को पूरी दक्षता के साथ गुरु कार्य में लगाया। आप सत्संग में गहरी रुचि रखते थे और हर संभव सत्संग में पहुँचने का प्रयास करते थे। आपने बाल संगत और युवा संगत को बढ़ावा देने में पूरा योगदान दिया। निरंकारी सन्त समागम के समय एकोमोडेशन कमेटी का अंग बनकर हर महात्मा की सुविधाओं का ख्याल रखते। प्रचार-प्रसार की हर गतिविधि से आप तन्मयतापूर्वक जुड़े रहे।

बाबा गुरबचन सिंह जी, ममतामयी निरंकारी राजमाता जी, बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविन्दर हरदेव जी और सतगुरु माता सुदीक्षा जी तथा निरंकारी राजपिता रमित जी का आपको भरपूर स्नेह- आशीर्वाद प्राप्त हुआ। होली सिस्टर्स की भी आपके ऊपर विशेष रहमतें रहीं।

Sulekh Sathi जी की गुरुवंदना कार्यक्रमों में शुरुआत से ही सहभागिता रही। आप कवि सभा की विभिन्न गतिविधियां के केन्द्र में रहे। पुराने कवियों का साथ लेकर आप नए उभरते कवियों को आगे बढ़ाते रहे। सन्त निरंकारी सीनियर सेकेंड्री स्कूल (बॉयज) के दस वर्ष तक चेयरमैन रहे। उत्तरी दिल्ली के जोनल इंचार्ज की सेवाएं भी बाखूबी निभाई। आपने सन्त निरंकारी पत्रिका – प्रकाशन के साथ-साथ मिशन के साहित्य की भरपूर सेवा की। आप अंतिम स्वांसों तक सन्त निरंकारी, एक नजर और हँसती दुनिया (पंजाबी) के संपादक की सेवा बहुत कुशलतापूर्वक निभाते रहे। ज्ञान प्रचारक के रूप में भी आपका सराहनीय योगदान रहा और समय-समय पर अनेक राज्यों की प्रचार यात्रा पर जाते रहे।

दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों पर्यटन, सेल्स टैक्स और तीस हजारी कोर्ट में आपने शालीनता और पूरी प्रवीणता के साथ सेवा करके विभागीय अधिकारियों की प्रशंसा प्राप्त की । शुक्रवार 7 जुलाई को आप सन्त निराकारी कार्यालय आए और बड़ी लगन व सहजता से पत्रिका विभाग की अपनी सेवाओं को निभाया तथा अनेकों महात्माओं से गुरुचर्चा करते रहे। 8 जुलाई, 2023 को हरमन प्यारे, हरदिल अजीज सुलेख साथी जी जीवन यात्रा पूरी करके इस अविनाशी परमसत्ता निरंकार में लीन हो गए-

जिउ जल महि जलु आइ खटाना ।

तिउ जोती संग जोति समाना।

Sulekh Sathi Ji Life 16.06.1953 – 08.07.2023

10 जुलाई को मैरिज ग्राउंड निरंकारी कालोनी से अंतिम यात्रा निगमबोध घाट दिल्ली पहुँची। सी.एन.जी. शवदाह गृह में अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल हुए। भीगी आँखों से आपको भावपूर्ण श्रद्धाजंलि देते भक्तों के मन आपकी अविस्मरणीय यादों से भरे हुए थे। आपकी यादें हमेशा सभी के दिलों में रहेंगी।

जीवन क्या है प्रभु दया है, मरण है क्या बस प्रभु रज़ा है।

हमको जितना मिला है जीवन, उसको जीना एक कला है।

सब की आंख का तारा जीवन, सब को लगता प्यारा जीवन ।

दुःख-सुख में जो बनता ‘साथी’ होता है वो न्यारा जीवन ।

……. समस्त नागी परिवार

Nirankari Satsang Live

Nirankari Live

ऐसा था महान सन्त खुश्विंदर नौल Mintu Ji का प्रेरणादायक जीवन

Mintu Ji Nirankari
Mintu Ji Nirankari

सतगुरु के हरमन प्यारे, आदरनीय सुलेख साथी जी, निरंकारी कवि, लेखक और सन्त निरंकारी पंजाबी पत्रिका के सम्पादक, सतगुरु के चरणों में तोड़ निभाते हुए निरंकारमयी हो गए हैं.

शहंशाह जी से रहमतें प्राप्त निरंकारी कॉलोनी निवासी हंसमुख, मिलनसार, हरमन प्यारे, निरंकारी कवि, लेखक और सन्त निरंकारी (पंजाबी पत्रिका) के सम्पादक, श्री सुलेख साथी जी, ( Rev. Sulekh Sathi Ji ) 08 जुलाई, शनिवार को अकस्मात हृदय घात होने से निरंकार प्रभुसत्ता द्वारा प्रदत्त स्वांसों को पूर्ण कर गुरु चरणों में तोड़ निभाते हुए (16.06.1953 – 08.07.2023) नश्वर शरीर त्यागकर निरंकारमय हो गए हैं।

Sulekh Sathi Ji 16.06.1953 08.07.2023 jpg
सुलेख साथी जी 16.06.1953 – 08.07.2023

उनके पार्थिव शरीर को अन्तिम दर्शनों के लिए,10 जुलाई सोमवार को सुबह 9.30 बजे, मैरिज ग्राउंड, निरंकारी कॉलोनी में लाया गया और तदुपरांत, वहीं से 12 बजे, अन्तिम यात्रा आरम्भ होकर,12.30 बजे, निगम बोध घाट (CNG), कश्मीरी गेट, दिल्ली में सम्पन्न हुई।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के चरणों मे अरदास है कि समस्त परिवार पूर्व की भाँति ही आपके चरणों में लगा रहे।

धन निरंकार जी !

👇ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन | Inspirational Saint : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.1975 to 29.06.2023👇

Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.195 29.06.2023 2 jpeg
Khushvinder Naul ‘Mintu Ji’ Nirankari 25.11.1975 – 29.06.2023

ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन

ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन | Inspirational Saint : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.1975 to 29.06.2023

Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.195 - 29.06.2023

Khushvinder Naul Mintu Ji Life :

समर्पित सन्त

खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji

(25.11.1975 29.06.2023)

Khushvinder Naul Mintu Ji

जो वी डुब्बा नाम सरोवर ओह बन्दा तर जावेगा।

कहे अवतार सुनो रे सन्तों मुंह उजला कर जायेगा।

Khushvinder Naul Mintu Ji

सर्वप्रिय सन्त खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’

उजियारे के स्रोत तुझे जो पा के तुझ में खो जाता ।

कहे ‘हरदेव’ जगत में वह जन आत्म प्रकाशित हो जाता।

Khushvinder Naul Mintu Ji

Nirankari Europian Samagam

जिन्हें हम प्यार करते हैं वास्तव में वो हमें कभी नहीं छोड़ते, वो अपनी उसी उदारता और करुणा के साथ हमारे साथ होते हैं। खुशविन्दर नौल जी, जिन्हें सभी प्यार से मिंटू जी कहते थे, Khushvinder Naul Mintu Ji ने अपनी अद्वितीय दयालुता और सत्गुरु के प्रति अगाध निष्ठा से सभी के दिलों में स्थान बनाया। हर दिल अजीज, हरमन प्यारे मिंटू जी के चेहरे पर हमेशा गुरमत की चमक और सभी के लिए प्यार का भाव रहता था। अपने सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति के दिल में, अपनी पहली मुलाकात में ही वे जगह बना लेते थे।

खुशविन्दर नौल जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) का जन्म नीलोखेड़ी जिला करनाल (हरियाणा) में पिता श्री टहल सिंह जी एवं माता श्रीमती वरिन्दर कौर जी के गृह में हुआ। तीन भाई-बहन वाले परिवार का वातावरण आरंभ से ही पूरी तरह से भक्तिभाव वाला था। मिन्टू जी की आरंभिक शिक्षा नीलोखड़ी और बाद की शिक्षा भिवानी और दिल्ली में हुई। वे बचपन से ही अध्यात्म के रंग में रंगे हुए थे। खेलकूद में भी उनकी रुचि थी। बचपन से ही वे बाल संगत में नियमित रूप से जाते और सत्गुरु की शिक्षाओं को सुनते-समझते रहे।

मिंटू जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) पर उनकी नानी श्रीमती प्रसन्न कौर जी एवं नाना सौदागर सिंह जी का बहुत प्रभाव पड़ा, जिन्होंने करनाल में निरंकारी संगत आरंभ की थी। शहंशाह जी का वहां आगमन होता रहता था। उस दौर में यद्यपि महिलाएं कम सक्रिय होती थीं परन्तु शहंशाह जी का आशीर्वाद पाकर वो कविताएं लिखतीं और प्रचार-प्रसार में भरपूर योगदान देती थीं। जब वो गुरबाणी का सुंदर गायन करतीं तो मिंटू जी बड़े ध्यान से उसका आनंद लेते थे। उस समय मिन्टू जी तबला और उनकी बहन हारमोनियम बजाती थीं। भक्ति गीत-संगीत की गहरी रुचि ने उनके अन्दर आध्यात्मिकता का भाव दृढ़ किया। नीलोखेड़ी में ही उन्हें बाउ महादेव सिंह जी से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई । निरंकार प्रभु को अंग-संग पाकर उनकी रूह खिल उठी।

मिंटू जी के जीवन में परमात्मा का भय मानकर रहने तथा सच्चाई और अच्छाई को अपनाने का भाव बचपन से ही था। एक बार बाल सुलभ स्वभाव के कारण, साथ खेलने वाले बच्चों के साथ पडोस के अहाते में जाकर पेड़ से अमरूद तोड़ लाए। उन्होंने ऐसा कर तो दिया पर मन में निरंकार का भय वाला भाव इतना गहरा था कि अपनी गलती का तुरन्त एहसास हुआ तो घर से कपड़ा लिया और तोड़े गए अमरूदों को पेड़ की डाल से जोड़ने की कोशिश की। प्रभु से प्रेम और भय दोनों ही भाव जीवन पर्यन्त उनके अन्दर गहराई तक प्रभावी रहे।

नीलोखेड़ी में उनके पिता टहल सिंह जी की वर्कशाप मुख्य मार्ग पर थी। दिल्ली या आस-पास से आते-जाते हुए पुरातन महात्मा कुछ समय इनकी दुकान पर अवश्य रुकते और भरपूर आशीर्वाद देकर जाते। बाद में मिंटू जी माता-पिता के साथ दिल्ली आ गए। बाउ महादेव सिंह जी का निरंकारी कालोनी स्थित मकान उनका नया निवास स्थान बना, जहां भगत कोटूमल जी. राजकवि जी, सत्यार्थी जी, निर्माण जी आदि सन्तों के साथ गहरा लगाव रहा।

मिंटू जी ने घर-परिवार की जिम्मेदारियां बाखूबी निभाई और अनेक संघर्षों का सामना करते हुए जीवन को लय पर लाने में सफल हुए। वो मिशन की सेवाओं में पूरी श्रद्धा से लगे रहे। बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविंदर हरदेव जी और वर्तमान सतगुरु माता सुदीक्षा जी का उन्हें भरपूर स्नेह आशीर्वाद मिलता रहा। इन रहमतों के मूल में उनके द्वारा विनम्र भाव से की गई सेवाएं ही थीं। कोठी की सेवाएं हो, प्रदर्शनी विभाग एकोमोडेशन कमेटी में रहकर सन्त समागम के अवसर पर की जाने वाली सेवाएं उन्होंने सभी को सच्ची निष्ठा से निभाया।

सतगुरु माता जी ने उन्हें पत्रिका प्रकाशन, इस्टेट मैनेजमेन्ट, डिजाइन स्टूडियो और मानव संसाधन विभाग के को-आर्डिनेटर के रूप में सेवा का अवसर प्रदान किया, जिसे वे पूरी लगन से निभाते रहे। मिन्टू जी देश-दूरदेश की कल्याण यात्राओं में सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज एवं सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के साथ शामिल होते रहे। उन्होंने सतगुरु को हमेशा सेवादारों का हित करते देखा और स्वयं भी यही प्रयास करते रहे कि हर सेवादार की हर समस्या का समाधान संभव हो सके।

जब कोविड महामारी का भयावह समय आया तब उन्होंने सत्गुरु माता जी के आशय अनुसार मानवता को राहत पहुंचाने वाले कार्यों में पूरी लगन व निर्भीकता से स्वयं को समर्पित किया। जरूरतमंदों को आक्सीजन, सिलेण्डर, मास्क, पी.पी.ई. किट, दवाईयां, लंगर आदि पहुंचाने में वे दिन रात लगे रहे।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने जब निरंकारी यूथ सिम्पोजियम (NYS) के आयोजन आरंभ किए तो मिन्टू जी इससे सम्बन्धित सारी व्यवस्थाओं में लगातार लगे रहते। सत्गुरु की सेवा करने हुए उन्हें अपने आराम की लेशमात्र भी चिंता नहीं होती थी।

29 जून, 2023 को श्री खुशविन्दर नौल जी 47 वर्ष की आयु में नश्वर शरीर त्यागकर निरंकार में लीन हो गए। अपने छोटे परन्तु यादगार जीवन काल में उन्होंने अपनी कर्मठता और प्रभु पर विश्वास के बल पर जीवन के हर पल का स्वागत किया। उन्होंने अपनी अद्वितीय विनम्रता से जीवन के पल-पल को जीवन्त किया और साहसपूर्वक हर परिस्थिति का सामना किया। सतगुरु की सेवा में सदैव समर्पित उनका जीवन प्रेरणा और स्फूर्ति से भरा हुआ था।

पूरा नौल परिवार सत्गुरु एवं समस्त साध संगत के प्रति शुकराने और कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हुए यही अरदास करता है कि जो प्रेरणा खुशविंदर जी ने अपनी अटूट सेवाभक्ति भाव से दी, उसका हम भी अपने जीवन में अनुसरण कर पाऐं।

समस्त नौल परिवार !

Nirankari Live

हर समय निरंकार प्रभु-परमात्मा का शुकराना करना भी भक्ति है Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

44th-uttar-pradesh-nirankari-sant-samagam

हर समय निरंकार प्रभु-परमात्मा का शुकराना करना भी भक्ति है
 

    

Nirankari%2BVichar%2BSaturu%2BMata%2BSudiksha%2BJi
Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

    सन्त निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक विचारधारा है, एक सतत्  प्रवाह है जिसमें सभी धर्मों के मानव कल्याण संबंधी पवित्र विचारों का समावेश है। धर्म के बारे में महर्षि वेदव्यास ने कहा है धारयति इति धर्म:। गोस्वामी जी के शब्दों में, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

 
 
        
 
 
 
 
 
 
 
    निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी फरमाते हैं, ‘मानव कल्याणही सच्चा धर्म है । धर्म का सार है – जो धारण करे वह धर्म माना जायेगा, धर्म की नींव करुणा, अहिंसा, परोपकार ही हो सकती है । जहाँ करुणा का अभिवादन नहीं, वह धर्म कैसा ? धर्म इन्सान को बेहतर इन्सान बनाने की व्यवस्था है । धर्म इन्सान के अन्दर मानवता के पुष्प खिलाता है । धर्म प्रकृति और पुरुष का मिलान कराता है, धर्म का अंतिम उद्देश्य शांति का साम्राज्य स्थापित करना है 
 

       न्त निरंकारी मिशन भले ही अपने को कोई धर्म या सम्प्रदाय न मानता हो फिर भी धर्म का बीज मंत्र, वास्तविक अवधारणा में मिशन खरा उतरता है संवेदना, सहनशीलता, प्रेम, मिलनवर्तन, परोपकार करुणा ही धर्म के आभूषण हैं  । करुणा की मूर्ति निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी, #निरंकारी राजमाता कुलवन्त कौर जी तथा पूज्य माता सविन्दर-हरदेव जी की इस अद्वितीय त्रिवेणी ने विश्व को अच्छे इन्सान दिए हैं । सद्गुरु के रूप में निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी की छत्तीस वर्षों की कल्याण यात्राएं काल के गाल पर अमिट हस्ताक्षर छोड़ गई हैं जो मानवता के सव्र्निम इतिहास धरोहर है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 

      हनशीलता धर्म का प्राण है । इतिहास साक्षी है कि सन्त परम्परा में सुकरात, ज़ीसस क्राइस्ट, महात्मा गाँधी, निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी, निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी के कथनों में कितनी समानता है, कोई विरोध नहीं कि कोई एक गाल पर चांटा मारे और दूसरा गाल भी आगे कर दो । चांटा ही क्या निरंकारी मिशन ने तो गोली मारने वाले को भी क्षमा कर दिया, कोई शिकायत नहीं, कोई विरोध नहीं । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 
 
    निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी के महान बलिदान के बाद निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने आक्रोशित जनसमुदाय में भभकती अग्नि को जिस प्रकार शांति का उपदेश देकर शान्त किया वह अद्वितीय है  । उन्होंने कहा कि आप सभी ने तो अपना सद्गुरू खोया है, दास ने तो अपना पिता और सद्गुरू दोनों खोये हैं । 
 
 
    में मर्यादा, संयम, सहनशीलता को कायम रखते हुए इस बलिदान का मूल्य प्रेम-नम्रता, प्रीत के साथ रक्तदान देकर चुकाना है । निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी की आज्ञा पालन करते हुए मानव-एकता के नए मानक स्थापित हुए ।  यह सजगता, संवेदना  बिना ब्रह्ज्ञान के संभव ही नहीं ।  इस सन्दर्भ में गोस्वामी जी की पंक्तियाँ याद आती हैं- Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 
ब्रह्मज्ञान को पाइके नामुज भयो जगदीस,
तुलसी  ऐसे मनुज  को देव  नवावें  सीस । 
       ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के बाद हमारे तौर-तरीके ही बदले जाते हैं  नज़रें बदली हैं तो नज़ारे भी बदल जाते हैं   ऐसा ब्रह्मज्ञानी फूल के प्रति तो संवेदनशील होता ही है साथ ही वह काँटों के प्रति भी क्रूर नहीं होता है  बात तो जागरण की है   शुकराना,धन्यवाद की भावना ही ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के बाद प्रमुखता से मुखरित होती है  सम्पूर्ण हरदेव वाणी फ़रमाती है – Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 
शुकर किए जा तू मालिक का शुकराना ही भक्ति है  
शिकवे गिले को लब पर अपने न लाना  ही भक्ति है  
       थैंक्यू, शुक्रिया और धन्यवाद छोटा सा शब्द अपने आप में असीम संभावनाएं  समेटे हुए है   यह छोटा सा शब्द इन्सान के व्यक्तित्व को बड़ा बनता है  प्रत्येक भक्त के जीवन में इस शब्द की महती आवश्यकता है, ‘धन्यवाद‘ ! ये शब्द हमारे व्यवहार के साथ-साथ हमारे अवचेतन मन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है  आभार व्यक्त करने वाले व्यक्ति अपेक्षाकृत ज्यादा खुशमिजाज़ देखे गए हैं और उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा भी खूब मिलती है  शुकराना शब्द भावनात्मक एकता का प्रतीक है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 
 
 
    हम दिनचर्या में देखते हैं कि एक छोटा बच्चा हमारे लिए कुछ भी करता है तो हम उसे थैंक्यू कहना नहीं भूलते, इस शब्द को सुनकर एक बछा भी एक अद्भुत जोश से भर जाता है । उसके चेहरे पर आयी खुशी को देखने के लिए हम बार-बार थैंक्यू कहने का बहाना खोजते हैं और बच्चा भी इस शब्द को सुनने  के लिए दोहरे वेग से सेवा में तत्पर हो जाता है   धन्यवाद कोई शब्द नहीं, ये तो इन्सान के अन्दर से महसूस किए गए आभार का बाहरी प्रदर्शन है । आन्तरिक भाव की छलकन है, इसे आजीवन व्यवहार का हिस्सा बनाना जरूरी है । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 
धन निरंकार जी !
 

56वां महाराष्ट्र वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 2023 | 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam 2023 will be held in Aurangabad during 27-29 January 2023

44th-uttar-pradesh-nirankari-sant-samagam 8

धन निरंकार जी संतो ! आप सभी को यह जानकार बहुत ही ख़ुशी होगी कि लम्बे समय से आप सभी को जिस रूहानियत की घड़ी का इंतज़ार था वो घड़ी अब सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की असीम कृपा से 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam ( 56वां महाराष्ट्र वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 2023 ) के रूप में हमारी झोलियों में आ रही हैं . Maharashtra’s 56th Annual Nirankari Sant Samagam : Annual Maharashtra Nirankari Samagam Dates Announced.

nirankari live rajasthan | paota | bundi | tonk | ajmer | jhunjhunu | nirankari vichar
Nirankari Satsang Live | live nirankari live

56th nirankari sant samagam
56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam | Nirankari Live Aurangabad
Bhakti parv samagam 2023 samalkha | भक्ति पर्व समागम 2023 समालखा

गुरु की प्यारी साध संगत जी, महाराष्ट्र का 56वां वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam जो कि औरंगाबाद, महाराष्ट्र में दिनांक 27 से 29 जनवरी 2023 में होने जा रहा है जिसमें देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु सन्त, महापुरुष हिस्सा लेंगे और

निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की रहनुमाई में इस वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam का आयोजन लम्बे समय के अंतराल के बाद ( दो वर्षों से तथा पिछले वर्ष ऑनलाइन होने के बाद ) इस बार यह ऑफ़ लाइन रूप में होगा जिसमें विश्व भर के मानव इंसानियत की राह पर चलते हुए आपसी भाईचारे का सन्देश देते हुए आत्मा का परमात्मा से मिलन का आनंद लेते हुए रूहानियत और इंसानियत का सफ़र संग-संग तय करेंगे . Nirankari Live Aurangabad .

Nirankari Live Today | Nirankari Live Aurangabad | Nirankari Live
nirankari vichar today

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | Best Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 2024

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि : सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा, जैसे हमने उसके प्रति अपनी धारणा बना ली है।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि NirankariSatsangLive
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि NirankariSatsangLive

 जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | As is the Vision, so is the Creation

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि : सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा, जैसे हमने उसके प्रति अपनी धारणा बना ली है। हम सभी अपना नज़रिया ऐसा बनाएं जैसे कि हम सृष्टि को देखना चाहते हैं। सौन्दर्य तो दर्शक की आँखों में होता है इसलिए अगर हम अपनी दृष्टि सुंदर रखेंगे तो हमें सृष्टि भी सुंदर लगेगी। किसी की तो तमाम खामियों के बावजूद हम उसे बहुत प्यार से के देखते हैं, जबकि किसी की तमाम खूबियाँ भूलकर, एक खामी की वजह से हम उस इन्सान को अपने मन से उतार देते हैं और उससे बात करना छोड़ देते हैं। इसलिए हम सभी को खुद को स्थिर रखने की आवश्यकता है। यह विचार सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | Niirankari Vichar Satguru Mata Ji

अक्सर हमारी आँखों में ही गलती होती है-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | Our Eyes are Often at Fault

अक्सर हमारी आँखों में ही गलती होती है यानि कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, बेशक हमारी नीयत ठीक हो। उदाहरण के तौर पर जिस बुजुर्ग इंसान को हमने सड़क पार करा दी, बाद में पता चला कि उसे इसकी जरूरत नहीं थी। चूक हो गई क्योंकि सामने वाले की जरूरत को बिना समझे हमने निर्णय ले लिया।

हमने परछाई को ही हकीकत बना दिया-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | We Turned the Shadow into Reality

एक और उदाहरण भी हमने सुना है कि हम बार-बार एक चीज को पानी में से निकालने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी हम उसे पानी से निकाल नहीं पा रहे क्योंकि कोई वह कीमती चीज तो दरअसल पेड़ पर टंगी है और उसकी परछाई ही पानी में दिखाई दे रही है। हमने परछाई को ही हकीकत बना दिया।

ऐसा भी होता है कि हमने किसी कमरे में प्रवेश किया और वहाँ दो व्यक्तियों के बीच पहले से ही कोई वार्तालाप चल रहा है। हमने पीछे की बात सुनी नहीं और सामने वाले के प्रति हम अपनी एक धारणा बना कर बैठ जाते हैं। बहुत बार जो दिखाई देता है, सुनाई देता है वह सही नहीं होता। जब हमने परमात्मा को मन में बसा लिया, अपने हर ख्याल में बसा लिया तो हमें संदेह का लाभ किसी और को देना आ जाए, बेशक गलती किसी से भी हुई हो।

किसी का स्वभाव कैसा भी हो, हम यह मानें कि हमारा नज़रिया ही ठीक नहीं। किसी को देखकर कई बार लगता है कि यह व्यक्ति कुछ अजीब-सा है। उसके पीछे भी कोई कारण तो रहा होगा। हो सकता है. उसको कुछ अच्छे अनुभव ना हुए हों और हालात की वजह से उसके अंदर कड़वापन आ गया हो।

अपने नजरिए में जब हम निरंकार को बसा लेते हैं फिर हमें हर चीज पावन व पुनीत दिखती है जैसा निरंकार ने उसे मूल रूप से बनाया है। इन्सान के शरीर द्वारा गलतियां होने पर भी रूह तो निरंकार का अंश है।

इस शरीर पर माया का असर होता है क्योंकि मानवीय अनुभव शरीर से होता है। निरंकार को याद रखने से माया का रंग भी अपने आप उतरता चला जाता है और शरीर में रहते हुए, परमात्मा से इकमिक हो कर जीना संभव हो जाता है।

What is true religion
What is true religion

सच्चा धर्म क्या है ?

सबसे बड़ा और सच्चा धर्म मानवता का है (इंसानियत का धर्म सबसे सच्चा धर्म है।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि से क्या तात्पर्य है ?

सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा, जैसे हमने उसके प्रति अपनी धारणा बना ली है।

उदाहरण के तौर पर : जिस बुजुर्ग इंसान को हमने सड़क पार करा दी, बाद में पता चला कि उसे इसकी जरूरत नहीं थी

चूक हो गई क्योंकि सामने वाले की जरूरत को बिना समझे हमने निर्णय ले लिया।

मानवतामयी विश्व बनाएं | Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji | निरंकारी विचार 2022

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

 मानवतामय विश्व बनाएं

AVvXsEh2AIW9VYob0SfNNjZF jI1g9lPnMAnuM6Vl3mlJ 62UTy4nFcJyMc9HSU5Rb1HTo2Ed9d3 ZBBMnxn2 uj371Y DTbocMQDk9kPrAt2qK5wMN4Ry Ymvi38FZMOqU n8UtVUX6PLgy9DSL0HAxECL FOlQsGgSSCuuBYWT4uCVZg1zSDc6WSNSxgbh A
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

मनुष्य का मनुष्योचित व्यवहार मानवता है। मानवता सन्त महापुरुषों के अत्यन्त महत्वपूर्ण उद्घोष मनुर्भव का अनुपालन है। मानवता मनुष्यत्व का संविधान है जिसमें मनुष्य को क्या करना चाहिए अर्थात् प्यार, नम्रता, सत्कार, विशालता, सहनशीलता, परोपकार आदि अपनाने का निर्देश है और क्या नहीं करना चाहिए अर्थात् वैर, द्वेष, हिंसा, घृणा, संकीर्णता, खुदगर्जी आदि को त्याग देने की हिदायत है।

मनुष्य को मानव, मानुष, मानस भी कहा गया है। मानव को । नियंत्रित, निर्देशित करने में मन की विशेष भूमिका होती है। मन ही मानव को मानवेन्द्र बनाता है और मन मानसव्रती भी। राजसी ऐश्वर्य और धन-सम्पदाओं की चाह रखता है तो मानसवती सत्य, प्रेम, दया, करुणा, स्नेह, अहिंसा आदि मानवोचित व्यवहारों द्वारा परमपद पाता है। मानस शास्त्री, मानव मन की विभिन्न वृत्तियों, क्रियाओं आदि अध्ययन की कुशलता तो हासिल कर सकते हैं लेकिन मानवता अपनाकर समग्र मानव बनने की शिक्षा-दीक्षा केवल सदगुरु के पास होती है जो करुणा करके मानव को उसके वास्तविक स्वरूप में स्थित करते हैं। सद्गुरु यह कार्य शरणागत की किसी विशिष्टता के कारण नहीं अपितु निज करुणा द्वारा ही करते हैं। पारिवारिक उलझनों में फंसे अर्जुन का सद्गुरु श्री कृष्ण जी ने हर प्रकार उद्धार करने का यत्न किया और उसे बुद्ध के मैदान में ही तत्वबोध जैसी अनमोल वस्तु प्रदान की।

मानवता स्वार्थ से परमार्थ की ओर की यात्रा है। मानवता जियो और जीने दो का संस्कार देने और स्वहित से परहित की ओर ले जाने वाली भावना से युक्त सुगन्ध भरी बयार है। मानवता हर मानव के लिए अपनाने योग्य है क्योंकि मानव ही इसके लिए अधिकृत है, कोई भी पशु या पक्षी मानवता अपनाने का अधिकारी नहीं है। कोयल कितना भी मीठा बोल ले, फूल कितने भी सुकोमल और सुन्दर क्यों न हों, सागर कितना भी गंभीर क्यों न हो, चाँद शीतलता देने वाला हो या सूर्य ऊष्मा व प्रकाश देने वाला हो लेकिन मानवता की अपेक्षा मानव से ही है, अन्य से नहीं।

मानवता दानवता और पशुता व्यक्ति के स्वभाव की विभिन्न स्थितियाँ हैं। शिशु निरोल मानव और पूर्णतः विकारों से मुक्त होता है। सुमति, संस्कार, संस्कृति और संग व्यक्ति को मानव, दानव अथवा पशुवत बनाते हैं। संग, शिक्षा और संस्कार खराब हुए तो इंसान मानवीय विकारों की गंदगी में डूबता चला जाता है। किसी इंसान को गंदगी से निकालना तो आसान है, गंदगी से निकालकर उसे साफ-सुधरा भी किया जा सकता है। माताएं अक्सर बच्चों की गंदगी दूर करके उन्हें साफ-स्वच्छ बनाती है, वे फिर गंदे होते हैं फिर ठीक किए जाते हैं लेकिन इसान के अंदर की गंदगी को निकालना आसान नहीं होता। सन्त महापुरुष इंसान के अंदर की गंदगी निकालकर उन्हें मानवतामय बना देते हैं। अंगुलिमाल के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटी कि वह हिंसा से भर उठा। महात्मा बुद्ध ने उसे ठहरने की शिक्षा दी और उसकी जीवन दिशा ठीक हो गई।

सद्गुरु वेष-भूषा नहीं बदलता, किसी का धर्म परिवर्तन भी नहीं करता क्योंकि इनको बदलने का कोई विशेष अर्थ नहीं नजर आता। सद्गुरु भाव बदल देता है, दृष्टि परिवर्तित कर देता है क्योंकि जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि बोतल या उस पर लिखे जहर शब्द का लेबल हटाने से उसके अन्दर के विष की जान लेने की क्षमता खत्म नहीं होती, सद्गुरु व्यक्ति रूपी बोतल के अंदर का जहर निकालकर अमृत भर देते हैं और व्यक्ति के व्यवहार में जमीन-आसमान का अन्तर आ जाता है। सदगुरु बाबा

हरदेव सिंह जी महाराज फरमाते हैं दुर्भावनाओं ने सदा से मानवता का नुक्सान किया है। पहले जो बोया गया, सो बोया गया. अब मनों में ऐसे बीज बोए जाएं जिनसे शूल नहीं फूल उपजें।

संसार अपराधी को क्षमादान नहीं देता। क्षमादान देकर दानव को भी मानव बनाने का कार्य केवल सद्गुरु करते हैं। कहते हैं जिसकी आँखें खूबसूरत होंगी उसको दुनिया अच्छी लगेगी लेकिन जिसकी जुबान अच्छी होगी वह दुनिया को अच्छा लगेगा तभी तो कहा जाता है कि एक

खूबसूरत दिल हजार खूबसूरत चेहरों से अच्छा होता है।

सदगुरु दिल को खूबसूरती प्रदान करते हैं।

हर मानव प्रेमी मानवता का ही उपासक होता है वह नर सेवा के द्वारा नारायण की पूजा कर रहा होता है। जहाँ सुगंध भरे फूल ही फूल हो वहाँ दुर्गन्ध नहीं होती। जहाँ मानवता के महकते पुष्प हो वहाँ जीवन बोझ नहीं रहता उत्सव बन जाता है, वहाँ दानवता के तांडव की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं।

मानवता अपनाने से मानव सुशोभित होता है और इसे त्यागकर कलंकित। दिल्ली की एक पॉश कालोनी में महीनों भूखी-प्यासी रहने के कारण मर गई दो बहनों की खोज-खबर लेने कोई पड़ोसी या रिश्तेदार का न आना, सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त घायल व्यक्ति को तड़पते छोड़कर गुजर जाना, डाक्टर का धोखे से मरीज की किडनी निकाल लेना, कार को साइड न देने वाले को गोली मार देना, बेटी सदृश्य बहुओं को लोभ में पड़कर प्रताड़ित करना, भाई का हक़ हड़प लेना आदि मानवता के लिए कलंक ही तो हैं। मानवता का न होना दानवता के होने का मार्ग खोलता है। रावण द्वारा भगवे वस्त्रों में सीता जी के हरण का विचार आना उसके दानव होने की ओर बढ़ाया गया कदम था जिससे वापस लौटना रावण जैसे ज्ञानी-ध्यानी के लिए भी संभव न हुआ और उसका धन-बल, यश- कुल सब कुछ तो नष्ट हुआ ही आज तक उसको घृणा की दृष्टि से ही देखा जाता है।

विश्व में मानवता का साम्राज्य होना मानव मात्र के हित में है। विश्व शांति के लिए मानवता अनिवार्य आवश्यकता है, और यह मानवता वास्तविक होनी चाहिए शाब्दिक, सतही और दिखावटी मानवता तो साधु के वेष में सीता हरण के लिए उपस्थित रावण की तरह है जो और भी ज्यादा घातक है। कोई भी व्यक्ति दानव से तो सजग रह सकता है लेकिन मानवता की ओट में छिपे छद्म दानव से वह कैसे बचेगा?

संसार में सद्भावों के पुष्प खिले होंगे तो उनकी महक से वातावरण खुशगवार बनेगा। गुलाब की खुशबू और सुन्दरता के सामने साथ लगे कांटे भी स्वीकार्य हो जाते हैं। पुष्प की अपनी विशेषता है, जहाँ रहें वहाँ महक फैलाएं। गुलाब प्रेम का, सुन्दरता का प्रतीक है तो कमल पावनता और शीतलता का, जूही, बेला, चम्पा, चमेली हों या गेंदा अथवा रात रानी विविध पुष्पों की अपनी सुन्दरता, अपनी महक है। सन्त समागम भी प्यार, नम्रता, करुणा, स्नेह आदि मानवीय गुणों रूपी विविध पुष्पों का खिला हुआ रूप है। जिसकी रचना सद्गुरु अपनी कृपा और तप-त्याग से करते हैं, जहाँ सद्भावों की महक तो है पर दुर्भावों की उपस्थिति बिल्कुल नहीं है। सद्गुरु सम्पूर्ण विश्व का आह्वान मानवता को सुन्दर रूप देने के लिए कर रहे हैं। आइए, हम भी मानवता से युक्त विश्व की संरचना का संकल्प लें और सद्गुरु के साथ सभी मिलकर

सद्भावों के पुष्प खिलाएं, मानवतामय विश्व बनाएं।

अध्यात्म के बिना विज्ञान घातक Nirankari Vichar Satgurru Mata Sudiksha Ji

Nirankari Vichar Satgurru Mata Sudiksha Ji

अध्यात्म के बिना विज्ञान घातक

AVvXsEi pXFa2HKgPdZKkdB3GRKeBLxvU5cFWdNY8BYllgQfHi38AL71jNyvK ZVhJQiNdx2SwIwDmvWZbnhLTzTwgSD0DpNo4B tIBYDInKpB6eEW8ECvQF5TVq0LfPD 8ZcxihwGXE8XZJyyFPPKUhYymxrda3N0OCdQYRsFDaZ0iVBzwR SrW5wfDA3FlLg=w640 h588
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Hindi

आत्मा के अध्ययन को अध्यात्म कहते हैं और किसी भी। आ विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान अध्यात्म और विज्ञान की परिभाषाएं तो यही है लेकिन जब विज्ञान को देखते हैं तो अध्यात्म के बिना विज्ञान आज जहर का काम कर रहा है। उदाहरण के लिए विज्ञान के बल पर लोग आज चाँद तक पहुँच रहे हैं लेकिन अध्यात्म के अभाव में बगल में पड़ोसी के घर में नहीं जा रहे हैं।

इतना ही नहीं अध्यात्म के अभाव में विज्ञान के सहारे पड़ोसी पर बम का प्रयोग कर रहे हैं। यह बम विज्ञान ने बनाया है, अध्यात्म ने नहीं। लोग अध्यात्म के अभाव में खाद्यान्न की सुरक्षा हेतु कीड़े मारने वाली दवा से कीड़े मारने की बजाय उसको खाकर आत्म हत्या कर रहे हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए निरंकारी बाबा जी कहते हैं

ब्रह्म की प्राप्ति भ्रम की समाप्ति इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि बिना ‘ब्रह्मज्ञान के आत्मज्ञान सम्भव नहीं है। लंका में रावण को घूमने के लिए विमान था लेकिन अध्यात्म के अभाव में उसने विमान का दुरुपयोग माता सीता जी को चुराने में किया।

आज भी यही हो रहा है लोग ट्रेन में सड़कों-चौराहों पर बम फेंक कर निर्दोष लोगों को मार रहे हैं। ध्यान से देखें तो क्या ट्रेन में सब लोगों की गलती है या शहर के चौक में सब लोगों की गलती है? नहीं, लेकिन आध्यात्मिकता न होने के कारण आज पढ़े-लिखे डॉक्टर अथवा इंजीनियर इन्सानी जीवन के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते।

आज लोग अच्छा घर बना लेते हैं तो कहते हैं कि हम घर वाले हो गये लेकिन अवतार बाणी में शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज फरमा रहे हैं सौ-सौ योनी भुगते बन्दा रहता आता जाता है।

पर वह जो हरि को जाने घर वाला हो जाता है। सन्त-महात्मा यही समझाते हैं कि आप सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं लेकिन अध्यात्म के अभाव में बुरे काम से नहीं बच पाते इसीलिए सदगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कहते हैं कि Let God dwell in the mind so that you are protected from evil ways. (इस प्रभु-परमात्मा पर ध्यान केन्द्रित रखो ताकि कुमार्ग से बचे रहो।)

इन्सान के मन में अगर अध्यात्म बसा हुआ नहीं है तो इन्सान, इन्सान होते हुए भी बहुत से गलत काम करता है। सन्त कबीर जी ब्रह्मज्ञानी थे। परोपकार करना उनका स्वभाव था इन्सान को मधुर वाणी बोलने की प्रेरणा देते हुये उन्होंने कहा बाज़ी ऐसी बोलिए, मन का आपा खोय।। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय लेकिन आज की स्थिति कितनी भिन्न हो चुकी है, स्वार्थपरता और चालाकियां इतना उग्र रूप ले चुकी हैं कि सन्त कबीर जी की बात के ठीक विपरीत लोगों की सोच हो चुकी है – बाली ऐसी बोलिए कि तुरन्त झगड़ा होय। उससे कभी न बोलिए जो आपसे तगड़ा होय ।

इन्सानी प्रवृत्ति में इस गिरावट का मुख्य कारण यही है कि विज्ञान तो प्रगति कर रहा है लेकिन अध्यात्म का अभाव होता जा रहा है। सार रूप में देखा जाये तो शान्त और सुखद जीवन हेतु विज्ञान के साथ-साथ हर इन्सान को अध्यात्म का भी ज्ञान होना आवश्यक है।

अध्यात्म पूर्ण है विज्ञान अपूर्ण Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari Satsang Today

अध्यात्म पूर्ण है विज्ञान अपूर्ण

AVvXsEiLZ5F1zLsxnenVZGMvOL5oAwO5Q1FsgXqsvWCIdO0ItvyDTMvVhNzRQV7zhDKF APeUgPDcs3k7YPcxA lShCPhFrJ
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

धर्म का अपना विज्ञान है और विज्ञान का अपना धर्म। धर्म ने यदि अपने विज्ञान को नहीं समझाया, मानव को सही दिशा-निर्देश नहीं दिया अपने तथ्यों से अवगत नहीं कराया तो मानव कल्याण के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ पायेगा। आज सन्त निरंकारी मिशन मानव कल्याण के लिए धर्म के विज्ञान को आत्मज्ञान के द्वारा समझा रहा है। इसी प्रकार विज्ञान का भी अपना धर्म है। विज्ञान का विकास मानव कल्याण एवं मानव की प्रगति के लिये है। यदि विज्ञान के विकास को सही दिशा में नहीं लगाया गया तो यह मानव के विनाश का कारण बन सकता है।

इस तथ्य को एक उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं विज्ञान ने अल्ट्रासाउण्ड उपकरणों का विकास गर्भस्थ शिशु की रक्षा हेतु जाँच के रूप में किया ताकि गर्भ में बच्चे का शारीरिक-मानसिक विकास बराबर न हो रहा हो तो उसका उपचार गर्भ में ही किया जा सके लेकिन अध्यात्म के अभाव में विज्ञान के उपकरणों का दुरुपयोग भ्रूण-परीक्षण के रूप में किया जाने लगा और यह कितना कृतघ्न कार्य है कि यदि गर्भ में लड़की है तो गर्भपात करा देते हैं। ऐसे जीवन की हत्या तो कोई पशु भी गर्भस्य अवस्था में नहीं करता है परन्तु मानव पशु से भी नीचे गिर गया है जो अपने ही प्यार

के अंकुर को विज्ञान का सहारा लेकर नष्ट कर देता है। विज्ञान का कार्य मानव विकास को गति देना है परन्तु किस दिशा में ले जाना है यह कार्य विज्ञान से नहीं हो। सकता विज्ञान यदि गति देता है तो अध्यात्म उसे दिशा बताता है। मनुष्य रूपी वाहन में भी गति देने का इंतजाम अलग होता है और दिशा बढ़ाने का इंतजाम अलग। दिशासूचक और गति देने वाले यंत्रों में अलग-अलग शक्तियां है। हम पाव से चलते है, आंख से दिशा मालूम होती है।

इसी तरह अध्यात्म आँख है और विज्ञान पांव है। अगर मानव को आत्मज्ञान (अध्यात्म) की दृष्टि न हो तो वह दृष्टि के अभाव में न मालूम कहां चला जायेगा और अगर आँखें हो, पाँव न हों, तो उसे एक स्थान पर ही बैठे रहना पड़ेगा, वह अपना कोई विकास नहीं कर पायेगा। इसलिए बिना विज्ञान के संसार का विकास होना सम्भव नहीं और बिना अध्यात्म के विज्ञान को ठीक दिशा देना सम्भव नहीं है।

मनुष्य के हाथ में विज्ञान की शक्ति आने के बाद बुद्धि को ठीक रखना अधिक आवश्यक हो जाता है जो अध्यात्म से ही सम्भव हो सकता है क्योंकि अक्ल तो अध्यात्म के गुणों में रहती है। विज्ञान ने अग्नि की शक्ति की खोज करके बताया कि अग्नि का उपयोग ‘प्रकाश’ फैलाने में अथवा चूल्हा जलाने में हो सकता है और धन-सम्पदाओं को जलाने में भी लेकिन अग्नि का अच्छे अथवा चुरे कार्यों में उपयोग करने से विज्ञान का कोई संबंध नहीं है, यह काम अध्यात्म करेगा। शक्ति के नाते विज्ञान को अध्यात्म का मार्गदर्शन चाहिए। ज्ञान और शक्ति के तौर पर दोनों मिलकर एक ही चीज है। विज्ञान analysis (विश्लेषण ) है तो अध्यात्म (synthesis) संश्लेषण है।

अगर गहराई से देखा जाये तो वैज्ञानिक भाषा में अध्यात्म ‘सुपर विज्ञान’ है। विज्ञान और अध्यात्म के समन्धित एवं समग्र प्रयास अर्थात् वैज्ञानिक अध्यात्मवाद में विज्ञान की जिज्ञासा तथा अध्यात्म के रहस्यों का समाधान एवं अनावरण सम्भव है। इसके लिए बहिदृष्टि के साथ अर्न्तदृष्टि की ओर उन्मुख होने की आवश्यकता है। जी महाराज जो ब्रह्मज्ञान प्रदान सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह रहे हैं उसके परिणामस्वरूप अध्यात्म विज्ञान हमें आत्मा और सृष्टि के कसौटी पर कसा हुआ विशेष अनुभव की कसी हाइड्रोजन ऑक्सीजन के संयोग से पानी बनता है।

कुराकर तत्त्वदर्शी ही अध्यात्म और विज्ञान का संयोग इन्सान को तत्वदर्शी बनाता है। तत्वदर्शी में जहाँ एक ओर विराट निराकार में प्रवेश करने की वृत्ति होती है, वहीं दूसरी ओर अत्यंत सूक्ष्म अणु में प्रवेश करने की भी वृत्ति होती है। सन्त निरंकारी मिशन ब्रह्मज्ञान द्वारा पहले आत्मा का अनुभव पहचान कराकर विराट और सूक्ष्म तत्व, दोनों में प्रवेश करने की वृत्ति जाग्रत कर, जन कल्याण का कार्य कर रहा है।

स्थिर (निरंकार) से नाता जोड़कर ही जीवन में आये स्थिरता Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

Nirankari Live

 स्थिर (निरंकार) से नाता जोड़कर ही जीवन में आये स्थिरता
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Ke Vichar

गहराई से सोचें तो यह बात सामने आती है कि धरती से लेकर जितनी भी प्राकृतिक चीजें हैं वे गतिमान हैं, परिवर्तनशील हैं। इनमें कोई भी स्थिर नहीं है। इसी प्रकार इनमें से किसी भी वस्तु के साथ हम अपने मन का नाता जोड़ लेते हैं तो उन वस्तुओं के स्वयं अस्थिर होने के कारण हमारा मन भी स्थिरता नहीं प्राप्त कर पाता।

AVvXsEgider06 ofXNFG9NAJpyR3mPQfr2lQDW50JMLRyNM8wiae8PUSlIRyhwa7HVaUw8LHtm7FNjU9U7s MFg QlydqxrQxQEXNAbYl3GSfLuVeGC4T99BiqTqsA3m14NjaTs1qv4FHrtGqQUTalcseko7D1zXHldzVcwH38W5V06eDD48PM855hlVtvhHFw=w640 h637
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 2022

Nirankari Vichar Satguru Mata Ji

इस बदलने वाले संसार के पीछे केवल एक ही स्थिर सत्ता है जिसको परमात्मा, ईश्वर, गॉड, अल्लाह, अकाल पुरख आदि अनगिनत नामों से पुकारा जाता है। यह सत्ता स्थिर है, शाश्वत है, अचल है, अटल है, अविनाशी है और सर्वव्यापी है। अज्ञानतावश इस सत्ता से बिछुड़ने के कारण ही जीवात्मा भटक रही है। सद्गुरु हमें इस सत्ता का बोध करा देता है। और इसके साथ इकमिक होने का विधि समझाता है जिससे जीवात्मा की भटकन समाप्त होकर वह इस परमात्मा में स्थिर हो जाता है, स्थित हो जाता है।

Nirankari Vichar In Hindi

यह संसार, जिसे प्रकृति, रचना या मायाभी कहा जाता है, यह पांच तत्वों से बना हुआ है। आत्मा को चतना या रूह कहा जाता है। पांच तत्व तो अपने-अपने तत्वों में मिलकर शान्त होते हैं। लेकिन यह छटा तत्व जब तक अपने मूल की पहचान नहीं करता तब तक स्थिरता को प्राप्त नहीं कर पाता। जब यह अपने मूल परमात्मा से मिलता है तब जाकर शान्त होता है, उसे स्थिरता प्राप्त होती है।

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Ke Vichar In Hindi

जब तक जीवात्मा को अपने वास्तविक स्वरुप का पता नहीं चलता तब तक वह अपने आपको प्रकृति का ही अंग मानता रहता है। प्रकृति डोलायमान है और इसका संग करने से जीवात्मा भी डोलायमान हो जाता है। सद्गुरु ने हमें परमात्मा को बोध कराया जो स्थिर है, कायम-दायम है। यह आत्मा उसी की अंश होने के कारण जब इसका मिलाप स्थिर परमसत्ता के साथ होता है तो उसकी भटकन खत्म हो जाती है। इसीलिए अगर हमें स्थिरता प्राप्त करनी है तो सद्गुरु की शरण में आकर इस कायम-दायम सत्य परमात्मा को जानना होगा, जिसके बारे में कहा गया है। आदि सचु जुगादि सच है भि सच, नानक होसी भी सचु और

Satguru Mata Sudiksha Ji Vichar

तीन काल है सत्य तू मिथ्या है संसार।

परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद मन को इस ज्ञान में स्थित करने के लिए सद्गुरु हमें तीन बहुमूल्य साधन देता है- सत्संग, सेवा और सुमिरण श्रद्धा और विश्वास के साथ जब साधन हम ये अपनाते हैं तो माया में रहकर भी मन को स्थिर रख पाते हैं।

निरंकारी लाइव

रोज सत्संग में आते रहेंगे तो मन इस निरंकार परमात्मा में मजबूती से टिका रहेगा, भटकेगा नहीं। सत्संग में जब हम आते हैं तो सन्तों के दिव्य वचन हमारे मन पर प्रभाव डालते हैं और उसे परमात्मा में स्थित रहने के लिए मजबूती प्रदान

निरंकारी सतगुरु माता जी के विचार

करते हैं। इसी तरह सन्तों के चरणों में झुकते हैं, सेवा करते हैं तो अहंकार से बचे रहते हैं और निरंतर इस परमात्मा का सुमिरण करने से इसी का रंग मन पर चढ़ा रहता है। मन को निर्मलता और स्थिरता प्राप्त होती है।

निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी के विचार

संसार में रहना है तो माया के बीच ही रहना होगा। बाबा हरदेव सिंह जी ने उदाहरण देकर समझाया कि- नाव चलाने के लिए पानी की आवश्यकता है, नाव पानी में ही चलेगी लेकिन नाव के अंदर पानी न आए यह ध्यान रखना होता है। इसी तरह हम बेशक संसार में विचरण करें लेकिन ध्यासन परमात्मा में टिका रहे तो जीवन में स्थिरता और सहजता कायम रह सकती है।

संत निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी के विचार

जो अस्थिर है, डोलायमान है उनके साथ जुड़ने पर हमारी भी वैसी अवस्था बन जाती है। जिस व्यक्ति के विचार डोलायमान हों, आधे अधूरे हों, विश्वास पूरा ना हो और दो नावों पर पैर रखे हों तो उनका संग करने से हमारे विचारों में भी बदलाव आ जाते हैं। ऐसे लोग खुद तो भ्रमों में है ही, औरों को भी भ्रमित कर देते हैं, कहा गया है

निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी

साकत संग न कीजिए, दूरों जाय भाग शाश्वत परमात्मा के साथ नाता जोड़कर पक्के सन्तों महात्माओं का संग करने से हमारे जीवन में दृढ़ता और स्थिरता आयेगी। चंचलता चली जायेगी और निश्छलता आयेगी। भ्रम से ऊपर उठकर हम ब्रह्म में स्थित हो जायेंगे।

इस कोरोना की स्थिति ने हर एक के जीवन में उसको सीधे ही अनुभव करने का मौका दिया कि माया होते भी वह माया का प्रयोग नहीं कर पाया Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari 2BLive

 माया एक भ्रम…..

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari Live

 
Nirankari 2BLive
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

     कैसे छोटी-छोटी चीजें जो हम स्वीकृत मानकर चल रहे थे अभी तक कि अगर परमात्मा ने हवा Live Nirankari
रखी है तो कैसे हम उसमें सांस लेते थे। 

 

धन निरंकार जी, इस पोस्ट को शेयर करें–>>>

    अब तो वह सांस भी एक मास्क लगाकर ही ली जा रही है।

    कैसे हम स्कूल में अपनी क्लासें अटेंड करते थे, कॉलेज जाते थे तो वह सब भी वर्चुअल रूप ले चुका है।

    किसी से भी मिलना उस तरह संभव नहीं था। कैसे हम अगर मानवीय स्पर्श की बात करें तो अपने मित्रों को या किसी को भी गले लगाना पहले हम Live Nirankari कर पाते थे तो वह सब अब दो गज की दूरी वाला नॉर्म (मानक) आ गया या किसी तरह भी हम कहें जो एक सुरक्षा प्रोटोकाल अपना रहे हैं तो ऐसी छोटी-छोटी चीजों के लिए हम दातार का शुकर नहीं करते थे, इसे हमने फार ग्रांटेड (सहज स्वीकृत ) माना हुआ था।

कैसे हर एक के जीवन में उन्होंने ऐसा प्रभाव डाला Live Nirankari जिसको हमने एक ऐसा रूप जो सिर्फ बातों में ही सुनते थे कि ये माया तो सिर्फ एक मोहमाया है, एक भ्रम है। माया को तो सिर्फ जितना कार्य है वहीं तक ही रखा जाए, उसको प्राथमिकता न दी जाए, उसको सब कुछ न बनाया जाए।

धन निरंकार जी, इस पोस्ट को शेयर करें–>>>

निरंकारी विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज 

 

Nirankari Live

    इस कोरोना की स्थिति ने हर एक के जीवन में उसको सीधे ही अनुभव करने का मौका दिया कि माया होते भी वह माया का प्रयोग नहीं कर पाया।

    कोई अगर किसी दूसरे राज्य में अपने रिश्तेदारों के यहां गया तो Online Nirankari Satsang लॉकडाउन के समय वह वहीं रह गया और इतने सुन्दर घर-बार बनाए हुए, इतनी महंगी गाड़ियां घर में होते हुए भी उनका कोई प्रयोग नहीं हो पा रहा था। धन निरंकार जी, इस पोस्ट को शेयर करें–>>>

    ऐसे कितने ही और उदाहरण Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj देखे जाएं तो जिन महापुरुषों, सज्जनों ने माया का इस्तेमाल सदुपयोग के तौर पर किया उनका जीवन बहुत ही सहज हो पाया।

    जिन घरों में भी प्यार रहा, उन्होंने तो इस अवसर को भी ऐसे देखा कि अभी हम अपने जीवन के इतने कार्यक्रमों में जहां व्यस्त हो जाते थे।

Nirankari Live

    और अपने बच्चों को, परिवार को समय नहीं दे पाते थे तो यह कोरोना का समय ऐसे आया कि ऑफिस बंद हो गए तो Live Nirankari हमने आपस में संवाद किए, अपनी बातचीत ठीक की, हमने इकट्ठे प्यार से, सत्कार से, छोटे-बड़ों का आदर करते हुए अपने दिन-प्रतिदिन की जिंदगी को ऐसे ढालने का प्रयास किया कि अब ज्यादा बेहतर तरीके से अपने परिवार के परस्पर प्रभाव में हो पाए।

Nirankari Live

सबमें निरंकार का नूर देखें Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari 2BLive 2BVirtual 2BSatsang 2BOnline

 सबमें निरंकार का नूर देखें…

…Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari Live

Nirankari 2BLive 2BVirtual 2BSatsang 2BOnline

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना…..

धन निरंकार जी !

    यह संसार निरंकार ने बनाया है।

    संसार अनेकता में एकता का सुन्दर रूप है जहां निरंकार की कृपा से हर भाषा, हर धर्म के लोग फूलों की तरह शोभायमान हैं लेकिन यही विभिन्नता नफ़रत और फूट का कारण बनी हुई है जो मानव जाति के लिए घातक है।

    जब सब एक ही निरंकार प्रभु की संतान हैं, सब इसके ही अंश हैं तब हमारे मनों में भेदभाव की कोई बात ही नहीं होनी चाहिए।

दुनिया में लोग भ्रम में हैं।

सन्तजन लोगों का भ्रम मिटाकर उन्हें जीवन की सच्ची राह दिखाते हैं।

नफ़रतें भी प्यार में बदल जाती हैं जब ब्रह्मज्ञान की रोशनी जीवन में आती है।

सबमें निरंकार का नूर देखें,

यह संसार निरंकार ने बनाया है,

संसार अनेकता में एकता का सुन्दर रूप है जहां निरंकार की कृपा से हर भाषा, हर धर्म के लोग फूलों की तरह शोभायमान हैं लेकिन यही विभिन्नता नफ़रत और फूट का कारण बनी हुई है जो मानव जाति के लिए घातक है

| Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

सबमें निरंकार का नूर देखें, यह संसार निरंकार ने बनाया है, संसार अनेकता में एकता का सुन्दर रूप है जहां निरंकार की कृपा से हर भाषा, हर धर्म के लोग फूलों की तरह शोभायमान हैं लेकिन यही विभिन्नता नफ़रत और फूट का कारण बनी हुई है जो मानव जाति के लिए घातक है Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj Vichar

Nirankari Live

सन्त जलते दीपक के समान हैं जो बुझे हुए दीपकों को रोशन करते हैं।

सभी को सच्चाई की रोशनी प्राप्त हो ताकि सारे भेदभाव खत्म हो जाएं।

सबमें इस निरंकार प्रभु का ही नूर देखें क्योंकि हर आत्मा निरंकार का ही अंश है।

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari Live

…..निरंकारी सद्गुरु माता सुदीक्षा की महाराज

Nirankari Satsang Live | जिस मनुष्य का मन प्रभु चिन्तन में लगा है और जिसमें सदा प्रभु का ही विश्वास भरा है वही सच्चा ज्ञानी है

Nirankari Live

Nirankari Satsang Live जिस मनुष्य का मन प्रभु चिन्तन में लगा है और जिसमें सदा प्रभु का ही विश्वास भरा है वही सच्चा ज्ञानी है The man whose mind is engaged in the contemplation of GOD and in whom the faith of GOD is always filled, he is the true scholar. 

Live Nirankari Satsang

Nirankari%2BSatguru%2BMata%2BJi%2BVichar
Nirankari Satsang Live |Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

      

रोशनी प्रसन्नता का प्रतीक है। आँखों का महत्त्व भी रोशनी से है।  थोड़ी देर के लिए रोशनी समाप्त हो जाए तो कहानी बिगड़ जाती है। Light is a symbol of happiness. The importance of eyes is also from light. The story gets worse if the lights go out for a while.  Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj

Live Nirankari Satsang

बाबा हरदेव सिंह जी एक उदाहरण दिया करते थे

    बाबा हरदेव सिंह जी एक उदाहरण दिया करते थे कि एक कमरे में सब प्रकार के अच्छे-अच्छे फर्नीचर, सोफ़ा-सेट अदि मौज़ूद हों लेकिन अगर वहां रौशनी न हो तो वह सारा सामान हमारी कठिनाई का कारण बनता है और अगर वहाँ रोशनी हो तो वही सामान हमारे आराम का कारण बनता है। Baba Hardev Singh ji used to give an example that a room should have all kinds of good furniture, sofa-set etc. But if there is no light then all that stuff becomes the cause of our trouble and if there is light then the same thing. Stuff causes our comfort. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj सी प्रकार संसार की तमाम आराम की वस्तुएं हमारे लिए दुःख का कारण भी बन जाती हैं यदि हमारे पास प्रभु का ज्ञान, ब्रह्मज्ञान नहीं है। Similarly, all the comforts of the world also become a cause of sorrow for us if we do not have the knowledge of God, the knowledge of Brahman. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj

ब्रह्मज्ञान की रोशनी की आवश्यकता

    नुष्य के जीवन में ब्रह्मज्ञान की रोशनी की बहुत आवश्यकता होती है। The light of Brahma Gyan is very much needed in the life of a human being. ब्रह्मज्ञान के बिना हम संसार में ऐसे घूमते  हैं जैसे अँधेरे में घूम रहे हों। Without the knowledge of Brahman, we walk in the world as if we are walking in the dark. सद्गुरु ब्रह्मज्ञान का दाता है। जिसे सद्गुरु मिल जाता है उसे ब्रह्मज्ञान मिल जाता है। Sadhguru is the giver of Brahmagyan. The one who gets the Sadguru gets the knowledge of Brahman. फिर उस के जीवन में सच्च्ची रौशनी प्रकट होती है और उस मनुष्य का जीवन स्वर्गमयी बन जाता है। Then true light appears in his life and that person’s life becomes heavenly. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj

    सचमुच वे लोग बहुत खुशनसीब हैं जिन्हें रोशनी से प्यार होता है और जिन्हें रोशनी का महत्त्व पता होता है।
Truly, those people are very lucky who are in love with light and who know the importance of light. नहीं तो लोगों को यह एहसास भी नहीं होता कि ब्रह्मज्ञान की कोई रौशनी भी होती है। Otherwise people do not even realize that there is any light of Brahmagyan. जो सद्गुरु की संगत में आते हैं उनको आभास हो जाता है कि ऐसी दिव्य-ज्योति सद्गुरु के पास है जिससे कि हमारा जीवन रोशन होता है।Those who come in the company of Sadguru, they get the feeling that such divine light is with Sadguru, sant nirankari mission which illuminates our life.  Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
हापुरुष एक उदाहरण दिया करते हैं कि एक दिन मैना और तोता रोशनी की बात कर रहे थे और जब एक उल्लू ने यह सुना तो वह कहने लगा कि क्या कहीं रोशनी भी होती है ? The great men give an example that one day the myna and the parrot were talking about light and when an owl heard this, he started saying that is there light anywhere? कहीं तुम अँधेरे को तो ही रौशनी नहीं कहते हो ? Do you not call darkness only as light? वह उड़ गया कि रोशनी होती ही नहीं है और उसने अपनी बात के समर्थन में एक चमगादड़ की गवाही भी दिलवा दी कि रौशनी नाम की कोई चीज़ नहीं होती। He flew away that there is no light and he also got the testimony of a bat in support of his point that there is no such thing as light. इसी प्रकार कई लोगों का यह विश्वास होता है कि ब्रह्मज्ञान, ईश्वरीय-ज्ञान, सत्य ज्ञान ज्योति है ही नहीं, यह केवल भ्रम है। Similarly, many people believe that Brahmagyan, God-knowledge, true knowledge is not a light, it is only an illusion. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj

 
न्त वाणी में स्पष्ट लिखा है कि जिस मनुष्य का मन प्रभु चिन्तन में लगा है और जिसमें सदा प्रभु का ही विश्वास भरा है वही सच्चा ज्ञानी है। It is clearly written in Sant Vani that the person whose mind is engaged in contemplating GOD and in whom the faith of GOD is always filled, he is the true knowledgeable person. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
धन निरंकार जी। 
 
सतगुरु माता सुदीक्षा सविन्दर हरदेव जी महाराज की जय !

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विधमान हर एक कण से अच्छाई सीख कर हमें अपने जीवन में ढालना है Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विधमान हर एक कण से 
अच्छाई सीख कर हमें अपने जीवन में ढालना है… द्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
 
Nirankari%2BSatguru%2BMata%2BSusiksha%2BJi%2BMaharaj
Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
    सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी ने एकदिवसीय सत्संग समारोह में कहा कि, पूरे ब्रह्मांड में यह जो कण-कण में शिक्षा है इसको हमने अपने जीवन में उतारना है।  यह जो शिक्षा है कि हमने कभी भी किसी से भी किसी भी स्थिति में कुछ भी सीखा है तो वह हमारे अन्दर इस तरह ढल जाती है कि ताउम्र कायम रहती है।
   गर हम सामाजिक रूप से भी देखें कि कुछ समय पहले टेप रिकॉर्डर होते थे, वीडियो कैसेट होती थी, ग्रामोफोन होते थे तो आज तो वह Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji तकनीक पुरानी   हो गई हैं। समय के साथ कैसे सब ने सीखा कि अपने आप को अपडेट करें।
 
 
    ज फिर यह एक स्थिति आई लॉकडाउन की कि बाहर जाकर अगर अपना कार्य नहीं कर पा रहे हैं तो हमने सीखा कि Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji किस तरह घर बैठे भी अपने कार्य को ‘वर्क फ्रॉम होम’ के रूप में करना है।
    म अपने जीवन में सीखते हैं, हर पल सीखते हैं, हर जगह से शिक्षा मिल रही है। हमने यह चुनाव भी करना है कि कौन सी शिक्षा रखनी है और कौन सी शिक्षा नहीं लेनी, यह भी बहुत महत्वपूर्ण है। हमने Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji अगर किसी व्यक्ति के स्वाभाव में किसी चीज़ को देखा तो साथ में यह भी देखा कि उस व्यक्ति में जो अच्छाईयां हैं उनसे सीखो और यदि अच्छाइयां नहीं हैं तो बुराई के रूप में सामने आया तो यह भी सीखो कि उसको नहीं सीखना।
    क यह भी शिक्षा कि कैसे इस साल यह ‘समागम फ्रॉम होम’ हम सबकी झोली में आया है कि घरों में बैठे हुए ही इस Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji समागम का उसी तरह आनन्द, वही सेवा भाव जो मैदानों में आप सब सन्तों का होता था वह अब अपने परिवार रूप, घर रूप में ही टेक्नोलॉजी के माध्यम से वह आनन्द इस बार इस तरह लेंगे।
    न्तों का तो कभी भी शिकायती भाव नहीं होता तो कैसे सहज में ही यह आनन्द आया है कि इस बार तो समागम जाया नहीं जाएगा तो उसको भी एक सकारात्मक रूप में लेNirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji  लिया कि इस बार तो घर की ही सहूलियत में बैठे हुए यह समागम करने को मिलेगा।
    दातार कृपा करे कि Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji जीवन में हर एक के जहां सेवा, सुमिरन और सत्संग के पहलू और ज्यादा मजबूत हों वहीं एक हर चीज़ में भी यह शिक्षा हमें मिल सकती है, किसी से भी शिक्षा मिल सकती है।
 
    सिर्फ़ हम मनुष्य तक ही नहीं ब्रह्माण्ड से Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji सीखने की बात है तो उसी तरह हमें क्या शिक्षा किस से लेनी है, किसकी क्या अच्छाई है उसको अपनाते चले जायें और जो भी किसी की नकारात्मकता है वह अपनाने की हमें ज़रुरत नहीं, वह सीखने का नहीं।

निरंकार प्रभु-परमात्मा पर श्रद्धा और विश्वास कायम रखें … निरंकारी विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी nirankari vichar satguru mata sudiksha ji maharaj

nirankari-vichar-satguru-mata-sudiksha-ji-today

निरंकार प्रभु-परमात्मा पर श्रद्धा और विश्वास कायम रखें 
निरंकारी विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी

Nirankari%2BVichar%2BSatguru%2BMata%2BSudiksha%2BJi%2BNirankari%2BVichar
Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari Satsang Live

   द्गुरु माता सुदीक्षा जी ने एकदिवसीय सत्संग समारोह में कहा कि, दुनिया में देखा जाए तो हमारी श्रद्धा किसी भी चीज़ पर हो सकती है पर यहाँ पर हम जो श्रद्धा की बात कर रहे हैं वो इस प्रभु-परमात्मा निरंकार से है।
 
 
     म अपने काम-काज की दुनिया में देखें, इतनी लगन से अगर कोई कार्य करता है तो कहा जाता है कि कर्म ही पूजा है या इस तरह से कि इस व्यक्ति ने तो अपना कार्य इतना अच्छे से निभाया कि यह कार्य ही उसकी पूजा बन गया।
    लेकिन यहाँ जो श्रद्धा है वह अपने इष्ट के प्रति है और यह लगन परमात्मा के प्रति उसकी जानकारी होने के बाद ही लगती है। मन में भाव आते हैं और फिर वो श्रद्धा सिर्फ अपने गुरु तक ही सीमित नहीं होती बल्कि उसका बहुत विस्तार हो जाता है।
    मारी श्रद्धा ही होती है कि किसी को अगर घर में बुलाया है भोजन के लिए तो वो घर जाकर बाद में बताते भी हैं कि मैं उन महापुरुषों के घर गया और बहुत ही श्रद्धापूर्वक उन्होंने भोजन खिलाया।
    द्गुरु माता सुदीक्षा जी ने कहा कि, यह मन में घर करने वाली बात है कि किस चीज़ पर संसार में श्रद्धा रखनी है किस पर नहीं क्योंकि यह भी देखा जाता है कि अगर कोई नुकसान देने वाला कार्य है तो भी कुछ ऐसे लोग होते है कि वो उसके लिए भी इतने ही दृढ हो जाते हैं। उतनी ही निष्ठा से लगे रहते हैं और रात की नींद भी त्याग देते हैं।
    सा सोचें, ऐसा करें, ऐसा लिखें कि जिससे किसी का निकसान होता हो तो ऐसी श्रद्धा किसी काम की नहीं है क्योंकि श्रद्धा तो पवित्रता से जुड़ा शब्द है। जहाँ विश्वास की बात है तो हमारे विश्वास के भी कितने पहलू हैं जीवन में। अगर कोई इंटरव्यू के लिए जा रहा है तो कैसे इंटरव्यू लेने वाला उसके विश्वास की जाँच करता है और बाद में बोलता है कि मुझे तुम्हारा आत्मविश्वास पसंद आया।
    म शरीर नहीं हैं, हम आत्मा हैं तो जब आत्मा और परमात्मा का मेल हुआ है तो फिर यह एक विश्वास इस परमात्मा पर कि हर बात को इस तरह से मन में बिठा लेना कि यही सब कुछ है। हम परमात्मा पर अपनी श्रद्धा व विश्वास को मजबूत करें।

प्रेमाभक्ति अपनाकर अपने जीवन को प्यार भरा बनाएं….. Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari Live Today

प्रेमाभक्ति अपनाकर अपने जीवन को प्यार भरा बनाएं … 
… सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज 
 

  Live Nirankari Satsang

 
Nirankari%2BVichar%2BSatguru%2BMata%2BSudikha%2BJi
Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
     द्गुरु माता ने एक दिवसीय सत्संग समारोह में अपने विचार व्यक्त किए कि, जीवन में हम भक्ति को सच में भक्ति की ही तरह कर रहे हैं क्या ? या जिसमें आस्था रखते हैं हम, अपने परमात्मा में, उसी से कोई सौदा कर रहे हैं ? क्या कोई व्यापार चल रहा है ? या सचमुच हमारी भक्ति, एक प्रभु को समर्पित भक्ति है ? यह वास्तविकता केवल सवयं हम सब को ही पता है।
    हम सब भली भांति जानते हैं कि हम सब क्या कर रहे हैं ? क्यों कर रहे हैं ? हमारा उद्देश्य क्या है ? हम सब यह भी भली भांति जानते हैं कि एक तरफ़ तो विश्वास  होती है और वो प्यार और विश्वास कभी नहीं छूटता, फिर चाहे हमारे जीवन के सफ़र में कितने भी उतार-चढ़ाव आ रहे हों।
    सद्गुरु माता जी कहते हैं कि हम देखते हैं कि एक बन्दर के बच्चे ने अपनी माँ को इतना कसकर पकड़ रखा होता है और उस चिपके हुए बच्चे को लेकर माँ एक पेड़ से छलाँग मार कर दूसरे पेड़ पर जा रही है तो बच्चा उस स्थिति में भी माँ को नहीं छोड़ता। यह एक दृढ विश्वास की बात होती है।
    एक कवि की पंक्तियाँ इस तरह से हैं कि :-
                                                   फूल से लिपटी हुई तितली को हिलाकर तो देखो। 
                                                   आँधियों    तुमने    दरख्तों   को   हिलाया   होगा । 
    फूल और तितली के सम्बन्ध की बात कि कितनी तेजी से हवा चलती है जब आँधी है और तितली फूल का रस ले रही है, उस पर इस तरह से बैठ गई है, फिर हवा चाहे कितनी भी तेजी से आए, एक छोटी छोटी सी तितली को वह हवा नहीं उड़ा पाती। वह फूल के साथ है तो वहीं दूसरी तरफ़ जो ऊँचे-ऊँचे पेड़ एक अभिमान के सूचक वो अपनी अकड़ में खड़े हैं और आंधी आते ही वो पेड़ टूट जाते हैं।
    कैसे यहाँ एक प्यार वाला फूल और एक प्यार वाली तितली एक-दूसरे का प्यार नहीं छोड़ रहे हैं, चाहे कितनी भी आँधियाँ आयें, वहां उस पेड़ की टहनियों ने साथ छोड़ दिया। हमारा जीवन भी इस रूप में ही हमने एक प्यार भरा बनाना है कि कैसे भी हालात हों इस परमात्मा से, इस निरंकार से प्यार ही प्यार हमेंशा हमारे मन में हो।
    सद्गुरु माता जी ने कहा कि, भक्ति कोई ऐसी चीज़ तो नहीं जो दिन में अलग कोई समय निकालकर की जाए। भक्ति तो हर सांस के साथ होती है।  प्यार तो हम हर समय ही कर सकते हैं इस निरंकार के साथ। हमें एक इसी भाव में चूर होकर अपने जीवन में भक्ति को और मजबूत करना है।
    सके लिए साधन सेवा, सुमिरन व सत्संग है और इसी के साथ जुड़कर हम इस निरंकार को अपने जीवन में और मजबूती के  बिठायें। दिल से प्यार हमेंशा सभी के लिए हो। फिर किसी भी व्यक्ति को मिलकर हम अगर धन निरंकार कर रहे हैं तो वो हमें एक इंसान न दिखे बल्कि उसे अपना सद्गुरु रूप ही समझ कर प्रेमाभक्ति हर एक से की जाए।

Nirankari Vichar Today | हर समय निरंकार प्रभु-परमात्मा का शुकराना करना भी भक्ति है | Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 2023

Nirankari-Vichar-Satguru-Mata-Sudiksha-Ji
Nirankari Live Today
Nirankari Live Today

Nirankari Vichar Today : हर समय निरंकार प्रभु-परमात्मा का शुकराना करना भक्ति है

    न्त निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक विचारधारा है, एक सतत्  प्रवाह है जिसमें सभी धर्मों के मानव कल्याण संबंधी पवित्र विचारों का समावेश है। धर्म के बारे में महर्षि वेदव्यास ने कहा है ‘धारयति इति धर्म:’ । गोस्वामी जी के शब्दों में, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई । 

         Live Nirankari Satsang

    निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी फरमाते हैं, ‘मानव कल्याण’ ही सच्चा धर्म है । Nirankari Vichar Today धर्म का सार है – जो धारण करे वह धर्म माना जायेगा, धर्म की नींव करुणा, अहिंसा, परोपकार ही हो सकती है । जहाँ करुणा का अभिवादन नहीं, वह धर्म कैसा ? धर्म इन्सान को बेहतर इन्सान बनाने की व्यवस्था है । धर्म इन्सान के अन्दर मानवता के पुष्प खिलाता है । धर्म प्रकृति और पुरुष का मिलान कराता है, धर्म का अंतिम उद्देश्य शांति का साम्राज्य स्थापित करना है ।

Nirankari Live Today

       न्त निरंकारी मिशन भले ही अपने को कोई धर्म या सम्प्रदाय न मानता हो फिर भी धर्म का बीज मंत्र, वास्तविक अवधारणा में मिशन खरा उतरता है संवेदना, सहनशीलता, प्रेम, मिलनवर्तन, परोपकार करुणा ही धर्म के आभूषण हैं  । करुणा की मूर्ति निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी, #निरंकारी राजमाता कुलवन्त कौर जी तथा पूज्य माता सविन्दर-हरदेव जी की इस अद्वितीय त्रिवेणी ने विश्व को अच्छे इन्सान दिए हैं । सद्गुरु के रूप में निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी की छत्तीस वर्षों की कल्याण यात्राएं काल के गाल पर अमिट हस्ताक्षर छोड़ गई हैं जो मानवता के सव्र्निम इतिहास धरोहर है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 

Nirankari Satsang Live

Live Nirankari Satsang

      सहनशीलता धर्म का प्राण है । इतिहास साक्षी है कि सन्त परम्परा में सुकरात, ज़ीसस क्राइस्ट, महात्मा गाँधी, निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी, निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी के कथनों में कितनी समानता है, कोई विरोध नहीं कि कोई एक गाल पर चांटा मारे और दूसरा गाल भी आगे कर दो । चांटा ही क्या निरंकारी मिशन ने तो गोली मारने वाले को भी क्षमा कर दिया, कोई शिकायत नहीं, कोई विरोध नहीं । Nirankari Vichar Today  

    निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी के महान बलिदान के बाद निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने आक्रोशित जनसमुदाय में भभकती अग्नि को जिस प्रकार शांति का उपदेश देकर शान्त किया वह अद्वितीय है  । उन्होंने कहा कि आप सभी ने तो अपना सद्गुरू खोया है, दास ने तो अपना पिता और सद्गुरू दोनों खोये हैं । 

Live Nirankari Satsang

    में मर्यादा, संयम, सहनशीलता को कायम रखते हुए इस बलिदान का मूल्य प्रेम-नम्रता, प्रीत के साथ रक्तदान देकर चुकाना है । निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी की आज्ञा पालन करते हुए मानव-एकता के नए मानक स्थापित हुए ।  यह सजगता, संवेदना  बिना ब्रह्ज्ञान के संभव ही नहीं ।  इस सन्दर्भ में गोस्वामी जी की पंक्तियाँ याद आती हैं- Nirankari Vichar Today 

ब्रह्मज्ञान को पाइके नामुज भयो जगदीस,

तुलसी  ऐसे मनुज  को देव  नवावें  सीस । 

Nirankari Live Today

       ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के बाद हमारे तौर-तरीके ही बदले जाते हैं । नज़रें बदली हैं तो नज़ारे भी बदल जाते हैं ।  ऐसा ब्रह्मज्ञानी फूल के प्रति तो संवेदनशील होता ही है साथ ही वह काँटों के प्रति भी क्रूर नहीं होता है । बात तो जागरण की है ।  शुकराना,धन्यवाद की भावना ही ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के बाद प्रमुखता से मुखरित होती है । सम्पूर्ण हरदेव वाणी फ़रमाती है – Nirankari Vichar Today 

शुकर किए जा तू मालिक का शुकराना ही भक्ति है  

शिकवे गिले को लब पर अपने न लाना  ही भक्ति है  

       थैंक्यू, शुक्रिया और धन्यवाद छोटा सा शब्द अपने आप में असीम संभावनाएं  समेटे हुए है ।  यह छोटा सा शब्द इन्सान के व्यक्तित्व को बड़ा बनता है । प्रत्येक भक्त के जीवन में इस शब्द की महती आवश्यकता है, ‘धन्यवाद’ ! ये शब्द हमारे व्यवहार के साथ-साथ हमारे अवचेतन मन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है । आभार व्यक्त करने वाले व्यक्ति अपेक्षाकृत ज्यादा खुशमिजाज़ देखे गए हैं और उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा भी खूब मिलती है । शुकराना शब्द भावनात्मक एकता का प्रतीक है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 

Live Nirankari Satsang

    हम दिनचर्या में देखते हैं कि एक छोटा बच्चा हमारे लिए कुछ भी करता है तो हम उसे थैंक्यू कहना नहीं भूलते, इस शब्द को सुनकर एक बछा भी एक अद्भुत जोश से भर जाता है । उसके चेहरे पर आयी खुशी को देखने के लिए हम बार-बार थैंक्यू कहने का बहाना खोजते हैं और बच्चा भी इस शब्द को सुनने  के लिए दोहरे वेग से सेवा में तत्पर हो जाता है ।  धन्यवाद कोई शब्द नहीं, ये तो इन्सान के अन्दर से महसूस किए गए आभार का बाहरी प्रदर्शन है । आन्तरिक भाव की छलकन है, इसे आजीवन व्यवहार का हिस्सा बनाना जरूरी है । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 

धन निरंकार जी !

सतगुरु माता सुदीक्षा सविन्दर हरदेव जी महाराज की जय ।”

एक को जानो, एक को मानो, एक हो जाओ Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Satguru Mata Sudiksha ji maharaj

एक को जानो, एक को मानो, एक हो जाओ… सतगुरु माता सुदीक्षा जी | निरंकारी लाइव सत्संग | Nirankari Live Satsang

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Satguru%2BMata%2BSavinder%2BHardev%2Bji%2BMaharaj%2B%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%2597%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2581%2B%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%2B%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A6%25E0%25A4%25B0%2B%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A6%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%25B5%2B%25E0%25A4%259C%25E0%25A5%2580%2B%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%259C
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

    

 

 
 
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने सत्संग समारोह में कहा कि एक की जानो, एक को मानो, एक हो जाओ के मिशन के आह्वान को हम बहुत सालों से सुन रहे हैं और इस पर चल कर हकीकत से संसार के लिए एक आदर्श उपस्थित कर रहे हैं।
 
 
सबसे पहले एक को जान सकते हैं, फिर एक को मान सकते हैं। जब एक को जान लिया, एक को मान लिया तभी संभव है एक हो जाना और गहराई Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji में एक को जानने वाली जो बात है हर कोई अपने इष्ट, अपने ईश्वर, परमात्मा, निरंकार जो भी नाम से वह सम्बोधित करता है भाव यही होता है कि वह सर्वशक्तिमान है।  
यह एक छोटे से पत्ते से लेकर विशाल पहाड़ तक, हर एक में, हर एक के अन्दर-बाहर में, कण-कण में रहने वाली ऐसी शक्ति है जो न घटती है, न बढ़ती है, न Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji  जल सकती है, न बुझ सकती है।  यह स्थिर है। जब अपनी जगह पर स्थिर रहने वाले निरंकार की पहचान हो जाती है, इसको जब जान लेते हैं तो जीवन में बदलाव आते हैं और इस जीवन को और बेहतर कैसे जीया जा सकता है ? उसके लिये यह पहली सीढ़ी बन जाती है।
अवतार बाणी की यह पंक्तियाँ कि –
        बिन वेखे मन मन्नदा नहीं ए बिन मन मन्ने प्यार नहीं। 
        प्यार बिन नहीं भगती ते बिन भगती बेड़ा पार  नहीं।
इस जीवन में जब हमने इस एक के दशन कर लिए हैं, इस एक के साथ हम जुड़ गए हैं, इस Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji एक को देख लिया है, जान लिया है तो तभी हम इस से प्यार कर सकते हैं। भक्ति में प्यार मूल है और भय के साथ भक्ति नहीं होती। भक्ति का  सार तो प्यार है।
मन ने जब इस भक्ति को अपने जीवन में अपनाया तो प्यार के साथ ही हमारी यात्रा चली। इसी तरह एक को जानने Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji के बाद एक को मानना संभव हो जाता है और आगे इस मूल को समझने के बाद फिर सभी एक हो जाते हैं।
इस निरंकार का एहसास हम कभी न भूलें।  यह कभी न भूलें कि निरंकार ने तो सदैव  हमारे अंग-संग ही है। यह हमेशां कायम-दायम रहने वाला है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji यह कभी आता जाता नहीं है।
यह हमारा मन जो हमें किसी भी पल हमें कोई सोच देता है तो हमारा मन अस्थिर हो जाता है परन्तु जब हमारा मन इस एक स्थिर प्रभु-परमात्मा Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji पर टिका रहता है तो ही एकत्व भी स्थापित होता है।
दातार सभी पर कृपा करे की बहुत ही सुंदर भक्ति भरा जीवन सभी महापुरषों-सन्तजनों के हिस्से में आए। धन निरंकार जी। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
error: Content is protected !!