Best Nirankari Vichar 2024 | भक्ति

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

Nirankari Vichar : परमात्मा पत्ते-पत्ते, डाली-डाली ब्रह्मांड के कण-कण में समाया है। परमात्मा अंदर-बाहर सब जगह मौजूद है और हर धर्म ग्रंथ ने यही समझाया है। परमात्मा को जानने के बाद मन से भय, स्वार्थ और अहंकार दूर हो जाता है। हानिकारक सोच और नकारात्मक विचार खत्म हो जाते हैं। सभी एक ही परमपिता-परमात्मा की ही रचना हैं। मनुष्य जीवन अनमोल है और जीते जी ही परमात्मा की पहचान करनी है। यह शरीर ही हमारी वास्तविक पहचान नहीं है बल्कि आत्मिक रूप ही वास्तविक पहचान है।

Nirankari Vichar
Nirankari Vichar

निरंकारी मिशन का परिचय | Introduction of Nirankari Mission

निरंकारी मिशन एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक संगठन है जिसका उद्देश्य मानवता के बीच प्रेम, शांति, और एकता को बढ़ावा देना है। इस मिशन की स्थापना 1929 में बाबा बूटा सिंह जी द्वारा की गई थी। यह मिशन विभिन्न सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों के माध्यम से लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता और मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करता है। निरंकारी मिशन के अनुयायी अपने जीवन में सत्य, प्रेम, और सेवा के सिद्धांतों का पालन करते हैं।

व्यव्हार | Nirankari Vichar

शरीर की अवस्था (Nirankari Vichar) और आकार तो एक जैसा है परंतु व्यवहार से पता चलता है कि वह मानव है या दानव है। फरिश्ता और शैतान दोनों इंसानी रूप में ही होते हैं परंतु मानवीय गुणों से पता चलता है।

अवस्था | Nirankari Vichar

जैसे फूल में खुशबू होगी और कोमलता भी होगी, फूल जिस भी अवस्था में होगा खुशबू ही देगा। कोई भी फलदार पेड़ हो तो फल देगा साथ ही वह ऑक्सीजन भी देगा और छाया भी देगा।

धर्म | Nirankari Vichar

Nirankari Vichar : मानवता से ऊँचा कोई धर्म नहीं है और ऐसा ही इंसान का जीवन हो। जब मन में परमात्मा बसा रहता है तो प्यार का भाव, अपनत्व, एकता, विशालता, सहनशीलता, करुणा, दया इत्यादि मानवीय गुण मन में खुद-ब-खुद आ जाते हैं।

प्यार | Nirankari Vichar

जीवन में यदि भक्ति के बीज बीजेंगे तो उसका परिणाम अच्छा होगा, जीवन में प्यार ही प्यार होगा। इससे नफ़रत के कारण भी खत्म हो जाते हैं और किसी के प्रति भी नफ़रत का भाव नहीं होता, फिर मन में प्यार ही टिकेगा।

आदर-सत्कार और प्यार से भरा जीवन होगा तो जीवन व्यर्थ नहीं होगा बल्कि गुणवत्ता वाला जीवन हो जाएगा।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि निरंकारी सत्संग
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि_निरंकारी सत्संग

निरंकारी मिशन क्या है?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक संगठन है जो मानवता की सेवा, प्रेम, और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है। इसका उद्देश्य मानवता के बीच एकता और शांति स्थापित करना है।

निरंकारी मिशन की स्थापना कब और किसने की थी?

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निरंकारी मिशन की स्थापना 1929 में बाबा बूटा सिंह जी ने की थी।

निरंकारी मिशन का मुख्यालय कहाँ स्थित है?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन का मुख्यालय दिल्ली, भारत में स्थित है।

निरंकारी मिशन के प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?

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निरंकारी मिशन के प्रमुख सिद्धांतों में ईश्वर की अनुभूति, मानवता की सेवा, प्रेम, शांति, और भाईचारे को बढ़ावा देना शामिल है।

निरंकारी मिशन की प्रमुख गतिविधियाँ क्या हैं?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन के अंतर्गत सत्संग, सामाजिक सेवा, चिकित्सा शिविर, रक्तदान शिविर, और पर्यावरण संरक्षण जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।

निरंकारी मिशन के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु कौन हैं?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज हैं।

निरंकारी मिशन में शामिल होने की प्रक्रिया क्या है?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन में शामिल होने के लिए किसी भी निरंकारी सत्संग में भाग लेकर, ईश्वर की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं और मिशन के सिद्धांतों का पालन कर सकते हैं।

निरंकारी मिशन का संदेश क्या है?

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निरंकारी मिशन का संदेश है कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं और हमें प्रेम, शांति, और एकता के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।

निरंकारी मिशन के सेवा कार्य क्या हैं?

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निरंकारी मिशन द्वारा किए जाने वाले सेवा कार्यों में गरीबों की सहायता, अनाथालयों में सेवा, वृद्धाश्रमों में सेवा, और प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य शामिल हैं।

निरंकारी मिशन के सत्संग में क्या होता है?

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निरंकारी मिशन के सत्संग में भजन, प्रवचन, और आध्यात्मिक चर्चा होती है, जहाँ भक्त जन अपने अनुभव साझा करते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।

मानवता ही सच्चा धर्म | Humanity Is The Only True Religion | Nirankari Vichar Today

Nirankari Live

मानवता (Humanity) से बड़ा कोई धर्म नहीं है, मगर इंसान मानवता (Humanity) मानव धर्म को छोड़कर मानव के बनाये हुए धर्मों पर चल पड़ता है। ऐसा उसकी अज्ञानता के कारण होता है इंसान, इंसानियत को छोड़कर धर्म की आड़ में अपने मन के अन्दर छिपी, निंदा, नफरत और जाति-पाँति के भेद भाव के कारण अभिमान को प्राथमिकता देता है। इसके कारण ही मानव जीवन के मूल मकसद को भूल जाता है मानव प्यार करना भूल जाता है, अपने जन्मदाता को भूल जाता है इससे मानव मन में दानवता वाले गुणों का प्रभाव बढ़ता चला जाता है। आज धर्म के नाम पर लोग लहू लुहान हो रहे हैं।

मानवता (Humanity) को एक तरफ रखकर इंसान अपनी मनमर्जी अनुसार धर्म को कुछ और ही रूप दे रहा है, जिसके कारण इंसान से इंसान की दूरियाँ बढ़ रही है. कहीं जाति पाँति तो कहीं परमात्मा के नामों के झगड़ों के कारण दिलों में नफरत बढ़ती जाती है। इंसानियत खत्म होती जाती है, जहाँ इंसानियत खत्म होती है। वहा धर्म भी खत्म हो जाता है। सन्तों महापुरुषों ने यही संदेश दिया कि कुछ भी बनो मुबारक है, पर पहले इंसान बनो। आज मानवता के विपरीत दानवता का ही उदाहरण जगह-जगह नज़र आता है परिणामस्वरूप परिवार के परिवार उजड़ जाते हैं। आज इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन बना हुआ है। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए इंसान धर्म की ओट लेकर इंसान का खून बहाने से भी पीछे नहीं हटता ।

मानवता अपनाकर इंसान दूसरों को सुख देने का कारण बनता है दुख देने का नहीं। वह दूसरों को रोता देखकर खुश नहीं होता है वह जख्म देकर नहीं जख्म भरकर खुश होता है, दूसरों को गिराकर कर नही उठाकर खुश होता है। वह हमेशा भला करके खुश होता है भला-सोचना, भला ही करना, मानवता की असल निशानी है। मानवता की मजबूती के लिए मन में सद्भाव वाले भाव धारण करने होंगे, यह तभी संभव होता है, जब मन का नाता निर्मल पावन परम सत्ता से जुड़ा होगा, मानव परमपावन से जुड़कर कभी अपावन कार्य नहीं करेगा।

सन्त निरंकारी मिशन में महापुरुषों के रहन-सहन, आचार-विचार, वेश-भूषा, खान-पान, बोली-भाषा अलग होते हुए भी विचारधारा और मानवीय सोच एक है। निरंकारी सन्त समागम भी मानवता के सुन्दर गुलदस्ते के रूप नजर आते हैं। यहाँ मानवता का जीवन्त स्वरूप नजर आता है। निरंकारी मिशन इंसानों का दृष्टिकोण विशाल कर रहा है। मिशन परमात्मा की जानकारी द्वारा लोगों के अंतर्मन के भावों को बदल रहा है। मन बदलता है तो स्वाभाविक रूप से स्वभाव भी बदलता है, विचार बदलते हैं और व्यक्ति के जीवन जीने का ढंग बदल जाता है, फिर जीवन की दिशा अपने-आप सही हो जाती है, फिर हर स्वाँस कह उठती है-

एक नूर ते सब जग,

उपजिया कउन भले कौन मन्दे ।

सद्गुरु माता जी कहते हैं कि विश्व में मानवता तभी कायम होगी जब हम मिलकर मानवता को अपने दिलो में, मनों और दिमागों में बसायेंगे। हम प्यार से रहें, मिलवर्तन को बढावा दें, दूसरों को खुशियाँ बाटें, ऊँच-नीच, जाति-पाँति, वैर, निंदा-नफरत की भावना को त्यागकर सारे संसार की सेवा करें।

ऐसा था सन्त कवि सुलेख साथी जी का जीवन

सद्गुरु ने हमें सत्य से जोड़कर प्रेम से रहने की शिक्षा दी है, विश्वबन्धुत्व का पाठ पढ़ाते हुए मानव को मानव से प्रेम, नम्रता व सत्कार करना सिखाया हैं। सद्गुरु संसार में शान्ति व अमन-चैन का वातावरण बना रहे हैं। मानवता की वास्तविक स्थापना प्रेम, दया, करुणा, सहनशीलता और विशालता की स्थापना में निहित है। महापुरुषों ने मानवता को ही सच्चा धर्म माना है। मानवता को खत्म करके कभी भी धर्म को बचाया नहीं जा सकता है, धर्म को मजबूती नही प्रदान की जा सकती।

आज इंसान धर्म के नाम पर बँटा हुआ है। अपनी उपासना पद्धति अपने आराध्य, अपनी परम्पराओं को वह श्रेष्ठ मानता है और दूसरों से अकारण नफरत करता है। जिन पीर पैगम्बरों को वह अपना मार्गदर्शक स्वीकार करता है वास्तविकता में उनकी बातों को तो न ध्यान से समझने का प्रयास करता है और न ही उन्हें सच्चे मन से मानने का।

ध्यान से देखा-समझा जाये तो सभी सन्तों-महापुरुषों-पैगम्बरों ने मानवता की ही शिक्षा दी है। प्यार, नम्रता, सहनशीलता और सद्भाव का ही पाठ पढ़ाया है फिर भी इन्सान अपनी मनमति अपनाकर मानवता का अहित करता जाता है। आवश्यकता है मानवता के मर्म को समझ कर मानवता के धर्म को हृदय से अंगीकार किया जाए।

Prabhu Chain Ki Baja Do Bansi Re

ऐसा था सर्वप्रिय सन्त, प्रसिद्ध कवि विद्वान संपादक, प्रभावशाली विचारक, श्री सुलेख ‘साथी’ जी का जीवन | The life of ‘Sulekh Sathi Ji’ 16.06.1953 – 08.07.2023

Sulekh Sathi Nirankari

सर्वप्रिय सन्त, प्रसिद्ध कवि विद्वान संपादक, प्रभावशाली विचारक, बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री Sulekh Sathi जी का जन्म 16 जून, 1953 को पिता श्री ज्ञान सिंह जी और माता वीरांवली जी के गृह अम्बाला शहर (हरियाणा) में हुआ। आरम्भिक शिक्षा अम्बाला शहर में हुई। तीन भाई और पाँच बहनों वाले परिवार की पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने में पिता का हाथ बंटाने का कार्य साथी जी ने शुरू से ही प्रयास जारी रखा। आपके परिवार का वातावरण भक्तिमय था जिसका व्यापक प्रभाव सुलेख साथी जी के ऊपर पड़ा। आपका समय शिक्षा ग्रहण करने, सेवा, भक्ति तथा परिवार के कार्यों को पूर्ण करने में व्यतीत होता। रोजगार की आवश्यकता को देखते हुए आपने हिन्दी स्टेनो की परीक्षा उत्तीर्ण की और पहले हिसार (हरियाणा) तथा बाद में दिल्ली सरकार में चयनियत हुए। श्री वासुदेव राय जी की प्रेरणा पाकर आप 1972 में दिल्ली आए और एक नजर अखबार से जुड़कर सन्त निरंकारी मिशन की सेवा करने लगे।

अम्बाला शहर में Sulekh Sathi जी के घर में संगत होती थी जहाँ माता-पिता की प्रेरणा से सभी भाई-बहनों को सेवा का अवसर मिला। आपके मन में आरम्भ से ही सेवा का जज्बा था। 1979 में श्री कुन्दन सिंह अरोड़ा जी की बेटी पूज्य चरणजीत कौर जी के साथ आप विवाह के बंधन में बंधे। आपने धर्मपत्नी से यही आग्रह किया कि आपने घर संभालना है और दास को सत्गुरु की सेवा के लिए समय उपलब्ध कराना है। आपने सत्गुरु की सेवा में सहयोग देना है। पति-पत्नी के बीच यह समझ जीवनपर्यन्त कायम रही। बेटियां नवनीत जी, नवीन जी और बेटे सुप्रीत जी ने भी माता-पिता के आदर्श गुरसिखी जीवन का अनुकरण किया और सतगुरु की सेवा में सदा समर्पित रहे। स्वयं को पीछे रखकर सतगुरु की शिक्षाओं को सदैव उजागर करते रहे। बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सुलेख साथी जी में अनेकों गुण थे। आपने अपनी योग्यता को पूरी दक्षता के साथ गुरु कार्य में लगाया। आप सत्संग में गहरी रुचि रखते थे और हर संभव सत्संग में पहुँचने का प्रयास करते थे। आपने बाल संगत और युवा संगत को बढ़ावा देने में पूरा योगदान दिया। निरंकारी सन्त समागम के समय एकोमोडेशन कमेटी का अंग बनकर हर महात्मा की सुविधाओं का ख्याल रखते। प्रचार-प्रसार की हर गतिविधि से आप तन्मयतापूर्वक जुड़े रहे।

बाबा गुरबचन सिंह जी, ममतामयी निरंकारी राजमाता जी, बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविन्दर हरदेव जी और सतगुरु माता सुदीक्षा जी तथा निरंकारी राजपिता रमित जी का आपको भरपूर स्नेह- आशीर्वाद प्राप्त हुआ। होली सिस्टर्स की भी आपके ऊपर विशेष रहमतें रहीं।

Sulekh Sathi जी की गुरुवंदना कार्यक्रमों में शुरुआत से ही सहभागिता रही। आप कवि सभा की विभिन्न गतिविधियां के केन्द्र में रहे। पुराने कवियों का साथ लेकर आप नए उभरते कवियों को आगे बढ़ाते रहे। सन्त निरंकारी सीनियर सेकेंड्री स्कूल (बॉयज) के दस वर्ष तक चेयरमैन रहे। उत्तरी दिल्ली के जोनल इंचार्ज की सेवाएं भी बाखूबी निभाई। आपने सन्त निरंकारी पत्रिका – प्रकाशन के साथ-साथ मिशन के साहित्य की भरपूर सेवा की। आप अंतिम स्वांसों तक सन्त निरंकारी, एक नजर और हँसती दुनिया (पंजाबी) के संपादक की सेवा बहुत कुशलतापूर्वक निभाते रहे। ज्ञान प्रचारक के रूप में भी आपका सराहनीय योगदान रहा और समय-समय पर अनेक राज्यों की प्रचार यात्रा पर जाते रहे।

दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों पर्यटन, सेल्स टैक्स और तीस हजारी कोर्ट में आपने शालीनता और पूरी प्रवीणता के साथ सेवा करके विभागीय अधिकारियों की प्रशंसा प्राप्त की । शुक्रवार 7 जुलाई को आप सन्त निराकारी कार्यालय आए और बड़ी लगन व सहजता से पत्रिका विभाग की अपनी सेवाओं को निभाया तथा अनेकों महात्माओं से गुरुचर्चा करते रहे। 8 जुलाई, 2023 को हरमन प्यारे, हरदिल अजीज सुलेख साथी जी जीवन यात्रा पूरी करके इस अविनाशी परमसत्ता निरंकार में लीन हो गए-

जिउ जल महि जलु आइ खटाना ।

तिउ जोती संग जोति समाना।

Sulekh Sathi Ji Life 16.06.1953 – 08.07.2023

10 जुलाई को मैरिज ग्राउंड निरंकारी कालोनी से अंतिम यात्रा निगमबोध घाट दिल्ली पहुँची। सी.एन.जी. शवदाह गृह में अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल हुए। भीगी आँखों से आपको भावपूर्ण श्रद्धाजंलि देते भक्तों के मन आपकी अविस्मरणीय यादों से भरे हुए थे। आपकी यादें हमेशा सभी के दिलों में रहेंगी।

जीवन क्या है प्रभु दया है, मरण है क्या बस प्रभु रज़ा है।

हमको जितना मिला है जीवन, उसको जीना एक कला है।

सब की आंख का तारा जीवन, सब को लगता प्यारा जीवन ।

दुःख-सुख में जो बनता ‘साथी’ होता है वो न्यारा जीवन ।

……. समस्त नागी परिवार

Nirankari Satsang Live

Nirankari Live

ऐसा था महान सन्त खुश्विंदर नौल Mintu Ji का प्रेरणादायक जीवन

Mintu Ji Nirankari
Mintu Ji Nirankari

सतगुरु के हरमन प्यारे, आदरनीय सुलेख साथी जी, निरंकारी कवि, लेखक और सन्त निरंकारी पंजाबी पत्रिका के सम्पादक, सतगुरु के चरणों में तोड़ निभाते हुए निरंकारमयी हो गए हैं.

शहंशाह जी से रहमतें प्राप्त निरंकारी कॉलोनी निवासी हंसमुख, मिलनसार, हरमन प्यारे, निरंकारी कवि, लेखक और सन्त निरंकारी (पंजाबी पत्रिका) के सम्पादक, श्री सुलेख साथी जी, ( Rev. Sulekh Sathi Ji ) 08 जुलाई, शनिवार को अकस्मात हृदय घात होने से निरंकार प्रभुसत्ता द्वारा प्रदत्त स्वांसों को पूर्ण कर गुरु चरणों में तोड़ निभाते हुए (16.06.1953 – 08.07.2023) नश्वर शरीर त्यागकर निरंकारमय हो गए हैं।

Sulekh Sathi Ji 16.06.1953 08.07.2023 jpg
सुलेख साथी जी 16.06.1953 – 08.07.2023

उनके पार्थिव शरीर को अन्तिम दर्शनों के लिए,10 जुलाई सोमवार को सुबह 9.30 बजे, मैरिज ग्राउंड, निरंकारी कॉलोनी में लाया गया और तदुपरांत, वहीं से 12 बजे, अन्तिम यात्रा आरम्भ होकर,12.30 बजे, निगम बोध घाट (CNG), कश्मीरी गेट, दिल्ली में सम्पन्न हुई।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के चरणों मे अरदास है कि समस्त परिवार पूर्व की भाँति ही आपके चरणों में लगा रहे।

धन निरंकार जी !

👇ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन | Inspirational Saint : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.1975 to 29.06.2023👇

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Khushvinder Naul ‘Mintu Ji’ Nirankari 25.11.1975 – 29.06.2023

ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन

ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन | Inspirational Saint : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.1975 to 29.06.2023

Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.195 - 29.06.2023

Khushvinder Naul Mintu Ji Life :

समर्पित सन्त

खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji

(25.11.1975 29.06.2023)

Khushvinder Naul Mintu Ji

जो वी डुब्बा नाम सरोवर ओह बन्दा तर जावेगा।

कहे अवतार सुनो रे सन्तों मुंह उजला कर जायेगा।

Khushvinder Naul Mintu Ji

सर्वप्रिय सन्त खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’

उजियारे के स्रोत तुझे जो पा के तुझ में खो जाता ।

कहे ‘हरदेव’ जगत में वह जन आत्म प्रकाशित हो जाता।

Khushvinder Naul Mintu Ji

Nirankari Europian Samagam

जिन्हें हम प्यार करते हैं वास्तव में वो हमें कभी नहीं छोड़ते, वो अपनी उसी उदारता और करुणा के साथ हमारे साथ होते हैं। खुशविन्दर नौल जी, जिन्हें सभी प्यार से मिंटू जी कहते थे, Khushvinder Naul Mintu Ji ने अपनी अद्वितीय दयालुता और सत्गुरु के प्रति अगाध निष्ठा से सभी के दिलों में स्थान बनाया। हर दिल अजीज, हरमन प्यारे मिंटू जी के चेहरे पर हमेशा गुरमत की चमक और सभी के लिए प्यार का भाव रहता था। अपने सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति के दिल में, अपनी पहली मुलाकात में ही वे जगह बना लेते थे।

खुशविन्दर नौल जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) का जन्म नीलोखेड़ी जिला करनाल (हरियाणा) में पिता श्री टहल सिंह जी एवं माता श्रीमती वरिन्दर कौर जी के गृह में हुआ। तीन भाई-बहन वाले परिवार का वातावरण आरंभ से ही पूरी तरह से भक्तिभाव वाला था। मिन्टू जी की आरंभिक शिक्षा नीलोखड़ी और बाद की शिक्षा भिवानी और दिल्ली में हुई। वे बचपन से ही अध्यात्म के रंग में रंगे हुए थे। खेलकूद में भी उनकी रुचि थी। बचपन से ही वे बाल संगत में नियमित रूप से जाते और सत्गुरु की शिक्षाओं को सुनते-समझते रहे।

मिंटू जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) पर उनकी नानी श्रीमती प्रसन्न कौर जी एवं नाना सौदागर सिंह जी का बहुत प्रभाव पड़ा, जिन्होंने करनाल में निरंकारी संगत आरंभ की थी। शहंशाह जी का वहां आगमन होता रहता था। उस दौर में यद्यपि महिलाएं कम सक्रिय होती थीं परन्तु शहंशाह जी का आशीर्वाद पाकर वो कविताएं लिखतीं और प्रचार-प्रसार में भरपूर योगदान देती थीं। जब वो गुरबाणी का सुंदर गायन करतीं तो मिंटू जी बड़े ध्यान से उसका आनंद लेते थे। उस समय मिन्टू जी तबला और उनकी बहन हारमोनियम बजाती थीं। भक्ति गीत-संगीत की गहरी रुचि ने उनके अन्दर आध्यात्मिकता का भाव दृढ़ किया। नीलोखेड़ी में ही उन्हें बाउ महादेव सिंह जी से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई । निरंकार प्रभु को अंग-संग पाकर उनकी रूह खिल उठी।

मिंटू जी के जीवन में परमात्मा का भय मानकर रहने तथा सच्चाई और अच्छाई को अपनाने का भाव बचपन से ही था। एक बार बाल सुलभ स्वभाव के कारण, साथ खेलने वाले बच्चों के साथ पडोस के अहाते में जाकर पेड़ से अमरूद तोड़ लाए। उन्होंने ऐसा कर तो दिया पर मन में निरंकार का भय वाला भाव इतना गहरा था कि अपनी गलती का तुरन्त एहसास हुआ तो घर से कपड़ा लिया और तोड़े गए अमरूदों को पेड़ की डाल से जोड़ने की कोशिश की। प्रभु से प्रेम और भय दोनों ही भाव जीवन पर्यन्त उनके अन्दर गहराई तक प्रभावी रहे।

नीलोखेड़ी में उनके पिता टहल सिंह जी की वर्कशाप मुख्य मार्ग पर थी। दिल्ली या आस-पास से आते-जाते हुए पुरातन महात्मा कुछ समय इनकी दुकान पर अवश्य रुकते और भरपूर आशीर्वाद देकर जाते। बाद में मिंटू जी माता-पिता के साथ दिल्ली आ गए। बाउ महादेव सिंह जी का निरंकारी कालोनी स्थित मकान उनका नया निवास स्थान बना, जहां भगत कोटूमल जी. राजकवि जी, सत्यार्थी जी, निर्माण जी आदि सन्तों के साथ गहरा लगाव रहा।

मिंटू जी ने घर-परिवार की जिम्मेदारियां बाखूबी निभाई और अनेक संघर्षों का सामना करते हुए जीवन को लय पर लाने में सफल हुए। वो मिशन की सेवाओं में पूरी श्रद्धा से लगे रहे। बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविंदर हरदेव जी और वर्तमान सतगुरु माता सुदीक्षा जी का उन्हें भरपूर स्नेह आशीर्वाद मिलता रहा। इन रहमतों के मूल में उनके द्वारा विनम्र भाव से की गई सेवाएं ही थीं। कोठी की सेवाएं हो, प्रदर्शनी विभाग एकोमोडेशन कमेटी में रहकर सन्त समागम के अवसर पर की जाने वाली सेवाएं उन्होंने सभी को सच्ची निष्ठा से निभाया।

सतगुरु माता जी ने उन्हें पत्रिका प्रकाशन, इस्टेट मैनेजमेन्ट, डिजाइन स्टूडियो और मानव संसाधन विभाग के को-आर्डिनेटर के रूप में सेवा का अवसर प्रदान किया, जिसे वे पूरी लगन से निभाते रहे। मिन्टू जी देश-दूरदेश की कल्याण यात्राओं में सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज एवं सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के साथ शामिल होते रहे। उन्होंने सतगुरु को हमेशा सेवादारों का हित करते देखा और स्वयं भी यही प्रयास करते रहे कि हर सेवादार की हर समस्या का समाधान संभव हो सके।

जब कोविड महामारी का भयावह समय आया तब उन्होंने सत्गुरु माता जी के आशय अनुसार मानवता को राहत पहुंचाने वाले कार्यों में पूरी लगन व निर्भीकता से स्वयं को समर्पित किया। जरूरतमंदों को आक्सीजन, सिलेण्डर, मास्क, पी.पी.ई. किट, दवाईयां, लंगर आदि पहुंचाने में वे दिन रात लगे रहे।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने जब निरंकारी यूथ सिम्पोजियम (NYS) के आयोजन आरंभ किए तो मिन्टू जी इससे सम्बन्धित सारी व्यवस्थाओं में लगातार लगे रहते। सत्गुरु की सेवा करने हुए उन्हें अपने आराम की लेशमात्र भी चिंता नहीं होती थी।

29 जून, 2023 को श्री खुशविन्दर नौल जी 47 वर्ष की आयु में नश्वर शरीर त्यागकर निरंकार में लीन हो गए। अपने छोटे परन्तु यादगार जीवन काल में उन्होंने अपनी कर्मठता और प्रभु पर विश्वास के बल पर जीवन के हर पल का स्वागत किया। उन्होंने अपनी अद्वितीय विनम्रता से जीवन के पल-पल को जीवन्त किया और साहसपूर्वक हर परिस्थिति का सामना किया। सतगुरु की सेवा में सदैव समर्पित उनका जीवन प्रेरणा और स्फूर्ति से भरा हुआ था।

पूरा नौल परिवार सत्गुरु एवं समस्त साध संगत के प्रति शुकराने और कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हुए यही अरदास करता है कि जो प्रेरणा खुशविंदर जी ने अपनी अटूट सेवाभक्ति भाव से दी, उसका हम भी अपने जीवन में अनुसरण कर पाऐं।

समस्त नौल परिवार !

Nirankari Live

What is Sant Nirankari Mission

Sant Nirankari Mission

The Sant Nirankari Mission is a spiritual organization that was founded in 1929 in Peshawar (Presently situated in PAKISTAN) by Baba Buta Singh Ji. The organization’s teachings are based on the belief in the unity of all religions and the importance of realizing the true self through self-realization and service to others. The Sant Nirankari Mission promotes the message of love, peace, and harmony among all people and emphasizes the importance of personal transformation to achieve a better world.

The Sant Nirankari Mission has a global presence, with centers and followers in several countries around the world. The organization conducts regular Satsang’s (spiritual discourses), meditation sessions, and community service activities to promote its message and values. The mission has also been involved in several charitable initiatives, including disaster relief efforts, healthcare, education, and environmental conservation.

Who is the Founder of Sant Nirankari Mission

Sant Nirankari Mission was founded by Baba Buta Singh Ji in 1929 in Peshawar (Presently situated in PAKISTAN). He was a spiritual leader who aimed to promote the universal brotherhood and spiritual unity among people of different religions and castes. Baba Buta Singh Ji believed in the philosophy of “Nirankar,” which means formless or without a physical body, and he preached the message of love, peace, and harmony. Today, the Sant Nirankari Mission has millions of followers across the world, and it continues to promote the message of human unity and spirituality.

Nirankari Live

Nirankari Samarpan Diwas 2023 समर्पण दिवस – 13 May
Nirankari Samarpan Diwas 2023 समर्पण दिवस – 13 May
Nirankari Live Satsang Paschim Vihar Delhi
Nirankari Live Satsang Paschim Vihar Delhi
NYS Samalkha Haryana 2023
NYS Samalkha Haryana 2023
Nirankari Live Sangam Vihar South Delhi
Nirankari Live Sangam Vihar South Delhi
Nirankari Live Matiala New Delhi
Nirankari Live Matiala New Delhi

Nirankari Vichar In English | Our Common Goal

Nirankari Vichar In English

Nirankari Vichar In English, The human race stands at the crossroads of history today. On the one side, we have scientific achievements empowering us like never before to bring us closer to each other. Progress in communications and technology has enabled to us to meet people, through virtual means, in other parts of the world, in real time. We can see their environments, share their experiences and view their worlds through their perspective all from the comfort of our homes. On the other side, we are witnessing events in the world where sectarian and religious based violence is uprooting civilizations; Nirankari Vichar In English millions are migrating from the Middle East to Europe; and fringe elements are using the same technological advancements to wreak havoc. Through systematic brain washing, young and tender minds are being groomed to unleash hatred, even to the extent of using their own bodies as weapons of destruction.

Nirankari Vichar In English
Nirankari Vichar In English

When the going gets tough, the tough gets going. In these tough times of world wide violence, it becomes ever important to spread the light of peaceful coexistence, which His Holiness Nirankari Babaji spent his entire life propagating and Mata Savinder Ji taking it further with added vigour.

One of the primary messages Babaji shared through the Nirankari Mission was human unity. This vision has since been further elaborated upon by the present spiritual leader of the Mission, Her Holiness Satguru Mata Savinder Hardev ji (who we lovingly refer to as ‘Mataji), who counselled that we must first recognize our common origin and foundation in Almighty God, who is all pervading, omnipresent and all powerful. When this realization dawns we recognise that we are all children of the same Universal God and are therefore brothers and sisters.

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It is upon this revelation, that we are all in fact linked by a bond greater than genetics or law, that the human mind can begin to view

When the going gets tough, the tough gets going. In these tough times of world wide violence, it becomes ever important to spread the light of peaceful coexistence, which His Holiness Nirankari Babaji spent his entire life propagating and Mata Savinder Ji taking it further with added vigour.

Human beings as part of the same family, and not as strangers. Once we see others as family, there is a better likelihood we can treat one another with a level of love, compassion and respect that we previously only reserved for relatives and friends. On the whole, our actions become much more aligned with what is expected of persons that live an ethical and moral life.

Mataji is preparing us to change our very mindset and our elevate our mode of action. It is to this effect that the Convention on Humanness (a tribute to the life and teachings of His Holiness Nirankari Baba) has been organized in Toronto Canada in the Summer of 2016.

A poet has elaborated the message of theMission in these words:

Oneness of humanity is what the Mission preaches;

And love and harmony amongst all, is what we strive for!

If we take a global view, all of us are travelling in the ‘one boat that is our society. We have all been given an oar help the direction. Should we start rowing in different directions, society will remain at a standstill, or move in circles. However, if all members of the team row in the same direction in the same frequency we will see true progress. This alignment is called synchronous action.

If we believe in the message of Mataji – then we have a shared vision of being united in One God, regardless of the names we give to this power, and regardless of the book or faith that we ascribe to. This understanding, and the follow-on transformation in out thinking and behaviour, is referred to as Enlightenment. The central catalyst for this change comes through the vision of Oneness, or Gyan, that Satguru Mataji is now sharing with anyone who wishes to know.

Our common goal –

‘A world living in love and harmony imbibing all the virtues of humanity’ –

brings us together to participate in events such as the Tribute to Humanness. Now we need synchronous action so that this vision and goal is adopted far and wide.

The synchronous action would have two parts. One is an internal metamorphosis which happens when we imbibe Gyan in its entirety and do not dilute Mataji’s guidance to our convenience. The other is sincere and diligent effort to live the message, so that we practically stand shoulder to shoulder with all our brethren on earth. Sant Nirankari Mission

Let this shared vision and common goal be in our mind when we try and assist the efforts of Her Holiness.

This is a virtuous path. Swami Vivekananda put it well, when he said;

‘Arisel Awake! and stop not until the goal is reached.’ Nirankari Vichar In English

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