Best Nirankari Vichar 2024 | भक्ति

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

Nirankari Vichar : परमात्मा पत्ते-पत्ते, डाली-डाली ब्रह्मांड के कण-कण में समाया है। परमात्मा अंदर-बाहर सब जगह मौजूद है और हर धर्म ग्रंथ ने यही समझाया है। परमात्मा को जानने के बाद मन से भय, स्वार्थ और अहंकार दूर हो जाता है। हानिकारक सोच और नकारात्मक विचार खत्म हो जाते हैं। सभी एक ही परमपिता-परमात्मा की ही रचना हैं। मनुष्य जीवन अनमोल है और जीते जी ही परमात्मा की पहचान करनी है। यह शरीर ही हमारी वास्तविक पहचान नहीं है बल्कि आत्मिक रूप ही वास्तविक पहचान है।

Nirankari Vichar
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निरंकारी मिशन का परिचय | Introduction of Nirankari Mission

निरंकारी मिशन एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक संगठन है जिसका उद्देश्य मानवता के बीच प्रेम, शांति, और एकता को बढ़ावा देना है। इस मिशन की स्थापना 1929 में बाबा बूटा सिंह जी द्वारा की गई थी। यह मिशन विभिन्न सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों के माध्यम से लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता और मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करता है। निरंकारी मिशन के अनुयायी अपने जीवन में सत्य, प्रेम, और सेवा के सिद्धांतों का पालन करते हैं।

व्यव्हार | Nirankari Vichar

शरीर की अवस्था (Nirankari Vichar) और आकार तो एक जैसा है परंतु व्यवहार से पता चलता है कि वह मानव है या दानव है। फरिश्ता और शैतान दोनों इंसानी रूप में ही होते हैं परंतु मानवीय गुणों से पता चलता है।

अवस्था | Nirankari Vichar

जैसे फूल में खुशबू होगी और कोमलता भी होगी, फूल जिस भी अवस्था में होगा खुशबू ही देगा। कोई भी फलदार पेड़ हो तो फल देगा साथ ही वह ऑक्सीजन भी देगा और छाया भी देगा।

धर्म | Nirankari Vichar

Nirankari Vichar : मानवता से ऊँचा कोई धर्म नहीं है और ऐसा ही इंसान का जीवन हो। जब मन में परमात्मा बसा रहता है तो प्यार का भाव, अपनत्व, एकता, विशालता, सहनशीलता, करुणा, दया इत्यादि मानवीय गुण मन में खुद-ब-खुद आ जाते हैं।

प्यार | Nirankari Vichar

जीवन में यदि भक्ति के बीज बीजेंगे तो उसका परिणाम अच्छा होगा, जीवन में प्यार ही प्यार होगा। इससे नफ़रत के कारण भी खत्म हो जाते हैं और किसी के प्रति भी नफ़रत का भाव नहीं होता, फिर मन में प्यार ही टिकेगा।

आदर-सत्कार और प्यार से भरा जीवन होगा तो जीवन व्यर्थ नहीं होगा बल्कि गुणवत्ता वाला जीवन हो जाएगा।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि निरंकारी सत्संग
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि_निरंकारी सत्संग

निरंकारी मिशन क्या है?

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निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक संगठन है जो मानवता की सेवा, प्रेम, और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है। इसका उद्देश्य मानवता के बीच एकता और शांति स्थापित करना है।

निरंकारी मिशन की स्थापना कब और किसने की थी?

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निरंकारी मिशन की स्थापना 1929 में बाबा बूटा सिंह जी ने की थी।

निरंकारी मिशन का मुख्यालय कहाँ स्थित है?

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निरंकारी मिशन का मुख्यालय दिल्ली, भारत में स्थित है।

निरंकारी मिशन के प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?

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निरंकारी मिशन के प्रमुख सिद्धांतों में ईश्वर की अनुभूति, मानवता की सेवा, प्रेम, शांति, और भाईचारे को बढ़ावा देना शामिल है।

निरंकारी मिशन की प्रमुख गतिविधियाँ क्या हैं?

जैसी-दृष्टि-वैसी-सृष्टि_निरंकारी-सत्संग

निरंकारी मिशन के अंतर्गत सत्संग, सामाजिक सेवा, चिकित्सा शिविर, रक्तदान शिविर, और पर्यावरण संरक्षण जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।

निरंकारी मिशन के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु कौन हैं?

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निरंकारी मिशन के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज हैं।

निरंकारी मिशन में शामिल होने की प्रक्रिया क्या है?

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निरंकारी मिशन में शामिल होने के लिए किसी भी निरंकारी सत्संग में भाग लेकर, ईश्वर की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं और मिशन के सिद्धांतों का पालन कर सकते हैं।

निरंकारी मिशन का संदेश क्या है?

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निरंकारी मिशन का संदेश है कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं और हमें प्रेम, शांति, और एकता के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।

निरंकारी मिशन के सेवा कार्य क्या हैं?

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निरंकारी मिशन द्वारा किए जाने वाले सेवा कार्यों में गरीबों की सहायता, अनाथालयों में सेवा, वृद्धाश्रमों में सेवा, और प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य शामिल हैं।

निरंकारी मिशन के सत्संग में क्या होता है?

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निरंकारी मिशन के सत्संग में भजन, प्रवचन, और आध्यात्मिक चर्चा होती है, जहाँ भक्त जन अपने अनुभव साझा करते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।

मानवता ही सच्चा धर्म | Humanity Is The Only True Religion | Nirankari Vichar Today

Nirankari Live

मानवता (Humanity) से बड़ा कोई धर्म नहीं है, मगर इंसान मानवता (Humanity) मानव धर्म को छोड़कर मानव के बनाये हुए धर्मों पर चल पड़ता है। ऐसा उसकी अज्ञानता के कारण होता है इंसान, इंसानियत को छोड़कर धर्म की आड़ में अपने मन के अन्दर छिपी, निंदा, नफरत और जाति-पाँति के भेद भाव के कारण अभिमान को प्राथमिकता देता है। इसके कारण ही मानव जीवन के मूल मकसद को भूल जाता है मानव प्यार करना भूल जाता है, अपने जन्मदाता को भूल जाता है इससे मानव मन में दानवता वाले गुणों का प्रभाव बढ़ता चला जाता है। आज धर्म के नाम पर लोग लहू लुहान हो रहे हैं।

मानवता (Humanity) को एक तरफ रखकर इंसान अपनी मनमर्जी अनुसार धर्म को कुछ और ही रूप दे रहा है, जिसके कारण इंसान से इंसान की दूरियाँ बढ़ रही है. कहीं जाति पाँति तो कहीं परमात्मा के नामों के झगड़ों के कारण दिलों में नफरत बढ़ती जाती है। इंसानियत खत्म होती जाती है, जहाँ इंसानियत खत्म होती है। वहा धर्म भी खत्म हो जाता है। सन्तों महापुरुषों ने यही संदेश दिया कि कुछ भी बनो मुबारक है, पर पहले इंसान बनो। आज मानवता के विपरीत दानवता का ही उदाहरण जगह-जगह नज़र आता है परिणामस्वरूप परिवार के परिवार उजड़ जाते हैं। आज इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन बना हुआ है। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए इंसान धर्म की ओट लेकर इंसान का खून बहाने से भी पीछे नहीं हटता ।

मानवता अपनाकर इंसान दूसरों को सुख देने का कारण बनता है दुख देने का नहीं। वह दूसरों को रोता देखकर खुश नहीं होता है वह जख्म देकर नहीं जख्म भरकर खुश होता है, दूसरों को गिराकर कर नही उठाकर खुश होता है। वह हमेशा भला करके खुश होता है भला-सोचना, भला ही करना, मानवता की असल निशानी है। मानवता की मजबूती के लिए मन में सद्भाव वाले भाव धारण करने होंगे, यह तभी संभव होता है, जब मन का नाता निर्मल पावन परम सत्ता से जुड़ा होगा, मानव परमपावन से जुड़कर कभी अपावन कार्य नहीं करेगा।

सन्त निरंकारी मिशन में महापुरुषों के रहन-सहन, आचार-विचार, वेश-भूषा, खान-पान, बोली-भाषा अलग होते हुए भी विचारधारा और मानवीय सोच एक है। निरंकारी सन्त समागम भी मानवता के सुन्दर गुलदस्ते के रूप नजर आते हैं। यहाँ मानवता का जीवन्त स्वरूप नजर आता है। निरंकारी मिशन इंसानों का दृष्टिकोण विशाल कर रहा है। मिशन परमात्मा की जानकारी द्वारा लोगों के अंतर्मन के भावों को बदल रहा है। मन बदलता है तो स्वाभाविक रूप से स्वभाव भी बदलता है, विचार बदलते हैं और व्यक्ति के जीवन जीने का ढंग बदल जाता है, फिर जीवन की दिशा अपने-आप सही हो जाती है, फिर हर स्वाँस कह उठती है-

एक नूर ते सब जग,

उपजिया कउन भले कौन मन्दे ।

सद्गुरु माता जी कहते हैं कि विश्व में मानवता तभी कायम होगी जब हम मिलकर मानवता को अपने दिलो में, मनों और दिमागों में बसायेंगे। हम प्यार से रहें, मिलवर्तन को बढावा दें, दूसरों को खुशियाँ बाटें, ऊँच-नीच, जाति-पाँति, वैर, निंदा-नफरत की भावना को त्यागकर सारे संसार की सेवा करें।

ऐसा था सन्त कवि सुलेख साथी जी का जीवन

सद्गुरु ने हमें सत्य से जोड़कर प्रेम से रहने की शिक्षा दी है, विश्वबन्धुत्व का पाठ पढ़ाते हुए मानव को मानव से प्रेम, नम्रता व सत्कार करना सिखाया हैं। सद्गुरु संसार में शान्ति व अमन-चैन का वातावरण बना रहे हैं। मानवता की वास्तविक स्थापना प्रेम, दया, करुणा, सहनशीलता और विशालता की स्थापना में निहित है। महापुरुषों ने मानवता को ही सच्चा धर्म माना है। मानवता को खत्म करके कभी भी धर्म को बचाया नहीं जा सकता है, धर्म को मजबूती नही प्रदान की जा सकती।

आज इंसान धर्म के नाम पर बँटा हुआ है। अपनी उपासना पद्धति अपने आराध्य, अपनी परम्पराओं को वह श्रेष्ठ मानता है और दूसरों से अकारण नफरत करता है। जिन पीर पैगम्बरों को वह अपना मार्गदर्शक स्वीकार करता है वास्तविकता में उनकी बातों को तो न ध्यान से समझने का प्रयास करता है और न ही उन्हें सच्चे मन से मानने का।

ध्यान से देखा-समझा जाये तो सभी सन्तों-महापुरुषों-पैगम्बरों ने मानवता की ही शिक्षा दी है। प्यार, नम्रता, सहनशीलता और सद्भाव का ही पाठ पढ़ाया है फिर भी इन्सान अपनी मनमति अपनाकर मानवता का अहित करता जाता है। आवश्यकता है मानवता के मर्म को समझ कर मानवता के धर्म को हृदय से अंगीकार किया जाए।

Prabhu Chain Ki Baja Do Bansi Re

ऐसा था सर्वप्रिय सन्त, प्रसिद्ध कवि विद्वान संपादक, प्रभावशाली विचारक, श्री सुलेख ‘साथी’ जी का जीवन | The life of ‘Sulekh Sathi Ji’ 16.06.1953 – 08.07.2023

Sulekh Sathi Nirankari

सर्वप्रिय सन्त, प्रसिद्ध कवि विद्वान संपादक, प्रभावशाली विचारक, बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री Sulekh Sathi जी का जन्म 16 जून, 1953 को पिता श्री ज्ञान सिंह जी और माता वीरांवली जी के गृह अम्बाला शहर (हरियाणा) में हुआ। आरम्भिक शिक्षा अम्बाला शहर में हुई। तीन भाई और पाँच बहनों वाले परिवार की पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने में पिता का हाथ बंटाने का कार्य साथी जी ने शुरू से ही प्रयास जारी रखा। आपके परिवार का वातावरण भक्तिमय था जिसका व्यापक प्रभाव सुलेख साथी जी के ऊपर पड़ा। आपका समय शिक्षा ग्रहण करने, सेवा, भक्ति तथा परिवार के कार्यों को पूर्ण करने में व्यतीत होता। रोजगार की आवश्यकता को देखते हुए आपने हिन्दी स्टेनो की परीक्षा उत्तीर्ण की और पहले हिसार (हरियाणा) तथा बाद में दिल्ली सरकार में चयनियत हुए। श्री वासुदेव राय जी की प्रेरणा पाकर आप 1972 में दिल्ली आए और एक नजर अखबार से जुड़कर सन्त निरंकारी मिशन की सेवा करने लगे।

अम्बाला शहर में Sulekh Sathi जी के घर में संगत होती थी जहाँ माता-पिता की प्रेरणा से सभी भाई-बहनों को सेवा का अवसर मिला। आपके मन में आरम्भ से ही सेवा का जज्बा था। 1979 में श्री कुन्दन सिंह अरोड़ा जी की बेटी पूज्य चरणजीत कौर जी के साथ आप विवाह के बंधन में बंधे। आपने धर्मपत्नी से यही आग्रह किया कि आपने घर संभालना है और दास को सत्गुरु की सेवा के लिए समय उपलब्ध कराना है। आपने सत्गुरु की सेवा में सहयोग देना है। पति-पत्नी के बीच यह समझ जीवनपर्यन्त कायम रही। बेटियां नवनीत जी, नवीन जी और बेटे सुप्रीत जी ने भी माता-पिता के आदर्श गुरसिखी जीवन का अनुकरण किया और सतगुरु की सेवा में सदा समर्पित रहे। स्वयं को पीछे रखकर सतगुरु की शिक्षाओं को सदैव उजागर करते रहे। बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सुलेख साथी जी में अनेकों गुण थे। आपने अपनी योग्यता को पूरी दक्षता के साथ गुरु कार्य में लगाया। आप सत्संग में गहरी रुचि रखते थे और हर संभव सत्संग में पहुँचने का प्रयास करते थे। आपने बाल संगत और युवा संगत को बढ़ावा देने में पूरा योगदान दिया। निरंकारी सन्त समागम के समय एकोमोडेशन कमेटी का अंग बनकर हर महात्मा की सुविधाओं का ख्याल रखते। प्रचार-प्रसार की हर गतिविधि से आप तन्मयतापूर्वक जुड़े रहे।

बाबा गुरबचन सिंह जी, ममतामयी निरंकारी राजमाता जी, बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविन्दर हरदेव जी और सतगुरु माता सुदीक्षा जी तथा निरंकारी राजपिता रमित जी का आपको भरपूर स्नेह- आशीर्वाद प्राप्त हुआ। होली सिस्टर्स की भी आपके ऊपर विशेष रहमतें रहीं।

Sulekh Sathi जी की गुरुवंदना कार्यक्रमों में शुरुआत से ही सहभागिता रही। आप कवि सभा की विभिन्न गतिविधियां के केन्द्र में रहे। पुराने कवियों का साथ लेकर आप नए उभरते कवियों को आगे बढ़ाते रहे। सन्त निरंकारी सीनियर सेकेंड्री स्कूल (बॉयज) के दस वर्ष तक चेयरमैन रहे। उत्तरी दिल्ली के जोनल इंचार्ज की सेवाएं भी बाखूबी निभाई। आपने सन्त निरंकारी पत्रिका – प्रकाशन के साथ-साथ मिशन के साहित्य की भरपूर सेवा की। आप अंतिम स्वांसों तक सन्त निरंकारी, एक नजर और हँसती दुनिया (पंजाबी) के संपादक की सेवा बहुत कुशलतापूर्वक निभाते रहे। ज्ञान प्रचारक के रूप में भी आपका सराहनीय योगदान रहा और समय-समय पर अनेक राज्यों की प्रचार यात्रा पर जाते रहे।

दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों पर्यटन, सेल्स टैक्स और तीस हजारी कोर्ट में आपने शालीनता और पूरी प्रवीणता के साथ सेवा करके विभागीय अधिकारियों की प्रशंसा प्राप्त की । शुक्रवार 7 जुलाई को आप सन्त निराकारी कार्यालय आए और बड़ी लगन व सहजता से पत्रिका विभाग की अपनी सेवाओं को निभाया तथा अनेकों महात्माओं से गुरुचर्चा करते रहे। 8 जुलाई, 2023 को हरमन प्यारे, हरदिल अजीज सुलेख साथी जी जीवन यात्रा पूरी करके इस अविनाशी परमसत्ता निरंकार में लीन हो गए-

जिउ जल महि जलु आइ खटाना ।

तिउ जोती संग जोति समाना।

Sulekh Sathi Ji Life 16.06.1953 – 08.07.2023

10 जुलाई को मैरिज ग्राउंड निरंकारी कालोनी से अंतिम यात्रा निगमबोध घाट दिल्ली पहुँची। सी.एन.जी. शवदाह गृह में अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल हुए। भीगी आँखों से आपको भावपूर्ण श्रद्धाजंलि देते भक्तों के मन आपकी अविस्मरणीय यादों से भरे हुए थे। आपकी यादें हमेशा सभी के दिलों में रहेंगी।

जीवन क्या है प्रभु दया है, मरण है क्या बस प्रभु रज़ा है।

हमको जितना मिला है जीवन, उसको जीना एक कला है।

सब की आंख का तारा जीवन, सब को लगता प्यारा जीवन ।

दुःख-सुख में जो बनता ‘साथी’ होता है वो न्यारा जीवन ।

……. समस्त नागी परिवार

Nirankari Satsang Live

Nirankari Live

ऐसा था महान सन्त खुश्विंदर नौल Mintu Ji का प्रेरणादायक जीवन

Mintu Ji Nirankari
Mintu Ji Nirankari

सतगुरु के हरमन प्यारे, आदरनीय सुलेख साथी जी, निरंकारी कवि, लेखक और सन्त निरंकारी पंजाबी पत्रिका के सम्पादक, सतगुरु के चरणों में तोड़ निभाते हुए निरंकारमयी हो गए हैं.

शहंशाह जी से रहमतें प्राप्त निरंकारी कॉलोनी निवासी हंसमुख, मिलनसार, हरमन प्यारे, निरंकारी कवि, लेखक और सन्त निरंकारी (पंजाबी पत्रिका) के सम्पादक, श्री सुलेख साथी जी, ( Rev. Sulekh Sathi Ji ) 08 जुलाई, शनिवार को अकस्मात हृदय घात होने से निरंकार प्रभुसत्ता द्वारा प्रदत्त स्वांसों को पूर्ण कर गुरु चरणों में तोड़ निभाते हुए (16.06.1953 – 08.07.2023) नश्वर शरीर त्यागकर निरंकारमय हो गए हैं।

Sulekh Sathi Ji 16.06.1953 08.07.2023 jpg
सुलेख साथी जी 16.06.1953 – 08.07.2023

उनके पार्थिव शरीर को अन्तिम दर्शनों के लिए,10 जुलाई सोमवार को सुबह 9.30 बजे, मैरिज ग्राउंड, निरंकारी कॉलोनी में लाया गया और तदुपरांत, वहीं से 12 बजे, अन्तिम यात्रा आरम्भ होकर,12.30 बजे, निगम बोध घाट (CNG), कश्मीरी गेट, दिल्ली में सम्पन्न हुई।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के चरणों मे अरदास है कि समस्त परिवार पूर्व की भाँति ही आपके चरणों में लगा रहे।

धन निरंकार जी !

👇ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन | Inspirational Saint : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.1975 to 29.06.2023👇

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Khushvinder Naul ‘Mintu Ji’ Nirankari 25.11.1975 – 29.06.2023

ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन

ऐसा था हमारे सतगुरु के हरमन प्यारे समर्पित सन्त, खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ का प्रेरणादायक जीवन | Inspirational Saint : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.1975 to 29.06.2023

Khushvinder Naul Mintu Ji 25.11.195 - 29.06.2023

Khushvinder Naul Mintu Ji Life :

समर्पित सन्त

खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’ : Rev. Khushvinder Naul Mintu Ji

(25.11.1975 29.06.2023)

Khushvinder Naul Mintu Ji

जो वी डुब्बा नाम सरोवर ओह बन्दा तर जावेगा।

कहे अवतार सुनो रे सन्तों मुंह उजला कर जायेगा।

Khushvinder Naul Mintu Ji

सर्वप्रिय सन्त खुशविन्दर नौल ‘मिंटू जी’

उजियारे के स्रोत तुझे जो पा के तुझ में खो जाता ।

कहे ‘हरदेव’ जगत में वह जन आत्म प्रकाशित हो जाता।

Khushvinder Naul Mintu Ji

Nirankari Europian Samagam

जिन्हें हम प्यार करते हैं वास्तव में वो हमें कभी नहीं छोड़ते, वो अपनी उसी उदारता और करुणा के साथ हमारे साथ होते हैं। खुशविन्दर नौल जी, जिन्हें सभी प्यार से मिंटू जी कहते थे, Khushvinder Naul Mintu Ji ने अपनी अद्वितीय दयालुता और सत्गुरु के प्रति अगाध निष्ठा से सभी के दिलों में स्थान बनाया। हर दिल अजीज, हरमन प्यारे मिंटू जी के चेहरे पर हमेशा गुरमत की चमक और सभी के लिए प्यार का भाव रहता था। अपने सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति के दिल में, अपनी पहली मुलाकात में ही वे जगह बना लेते थे।

खुशविन्दर नौल जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) का जन्म नीलोखेड़ी जिला करनाल (हरियाणा) में पिता श्री टहल सिंह जी एवं माता श्रीमती वरिन्दर कौर जी के गृह में हुआ। तीन भाई-बहन वाले परिवार का वातावरण आरंभ से ही पूरी तरह से भक्तिभाव वाला था। मिन्टू जी की आरंभिक शिक्षा नीलोखड़ी और बाद की शिक्षा भिवानी और दिल्ली में हुई। वे बचपन से ही अध्यात्म के रंग में रंगे हुए थे। खेलकूद में भी उनकी रुचि थी। बचपन से ही वे बाल संगत में नियमित रूप से जाते और सत्गुरु की शिक्षाओं को सुनते-समझते रहे।

मिंटू जी (Khushvinder Naul Mintu Ji) पर उनकी नानी श्रीमती प्रसन्न कौर जी एवं नाना सौदागर सिंह जी का बहुत प्रभाव पड़ा, जिन्होंने करनाल में निरंकारी संगत आरंभ की थी। शहंशाह जी का वहां आगमन होता रहता था। उस दौर में यद्यपि महिलाएं कम सक्रिय होती थीं परन्तु शहंशाह जी का आशीर्वाद पाकर वो कविताएं लिखतीं और प्रचार-प्रसार में भरपूर योगदान देती थीं। जब वो गुरबाणी का सुंदर गायन करतीं तो मिंटू जी बड़े ध्यान से उसका आनंद लेते थे। उस समय मिन्टू जी तबला और उनकी बहन हारमोनियम बजाती थीं। भक्ति गीत-संगीत की गहरी रुचि ने उनके अन्दर आध्यात्मिकता का भाव दृढ़ किया। नीलोखेड़ी में ही उन्हें बाउ महादेव सिंह जी से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई । निरंकार प्रभु को अंग-संग पाकर उनकी रूह खिल उठी।

मिंटू जी के जीवन में परमात्मा का भय मानकर रहने तथा सच्चाई और अच्छाई को अपनाने का भाव बचपन से ही था। एक बार बाल सुलभ स्वभाव के कारण, साथ खेलने वाले बच्चों के साथ पडोस के अहाते में जाकर पेड़ से अमरूद तोड़ लाए। उन्होंने ऐसा कर तो दिया पर मन में निरंकार का भय वाला भाव इतना गहरा था कि अपनी गलती का तुरन्त एहसास हुआ तो घर से कपड़ा लिया और तोड़े गए अमरूदों को पेड़ की डाल से जोड़ने की कोशिश की। प्रभु से प्रेम और भय दोनों ही भाव जीवन पर्यन्त उनके अन्दर गहराई तक प्रभावी रहे।

नीलोखेड़ी में उनके पिता टहल सिंह जी की वर्कशाप मुख्य मार्ग पर थी। दिल्ली या आस-पास से आते-जाते हुए पुरातन महात्मा कुछ समय इनकी दुकान पर अवश्य रुकते और भरपूर आशीर्वाद देकर जाते। बाद में मिंटू जी माता-पिता के साथ दिल्ली आ गए। बाउ महादेव सिंह जी का निरंकारी कालोनी स्थित मकान उनका नया निवास स्थान बना, जहां भगत कोटूमल जी. राजकवि जी, सत्यार्थी जी, निर्माण जी आदि सन्तों के साथ गहरा लगाव रहा।

मिंटू जी ने घर-परिवार की जिम्मेदारियां बाखूबी निभाई और अनेक संघर्षों का सामना करते हुए जीवन को लय पर लाने में सफल हुए। वो मिशन की सेवाओं में पूरी श्रद्धा से लगे रहे। बाबा हरदेव सिंह जी, माता सविंदर हरदेव जी और वर्तमान सतगुरु माता सुदीक्षा जी का उन्हें भरपूर स्नेह आशीर्वाद मिलता रहा। इन रहमतों के मूल में उनके द्वारा विनम्र भाव से की गई सेवाएं ही थीं। कोठी की सेवाएं हो, प्रदर्शनी विभाग एकोमोडेशन कमेटी में रहकर सन्त समागम के अवसर पर की जाने वाली सेवाएं उन्होंने सभी को सच्ची निष्ठा से निभाया।

सतगुरु माता जी ने उन्हें पत्रिका प्रकाशन, इस्टेट मैनेजमेन्ट, डिजाइन स्टूडियो और मानव संसाधन विभाग के को-आर्डिनेटर के रूप में सेवा का अवसर प्रदान किया, जिसे वे पूरी लगन से निभाते रहे। मिन्टू जी देश-दूरदेश की कल्याण यात्राओं में सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज एवं सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के साथ शामिल होते रहे। उन्होंने सतगुरु को हमेशा सेवादारों का हित करते देखा और स्वयं भी यही प्रयास करते रहे कि हर सेवादार की हर समस्या का समाधान संभव हो सके।

जब कोविड महामारी का भयावह समय आया तब उन्होंने सत्गुरु माता जी के आशय अनुसार मानवता को राहत पहुंचाने वाले कार्यों में पूरी लगन व निर्भीकता से स्वयं को समर्पित किया। जरूरतमंदों को आक्सीजन, सिलेण्डर, मास्क, पी.पी.ई. किट, दवाईयां, लंगर आदि पहुंचाने में वे दिन रात लगे रहे।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने जब निरंकारी यूथ सिम्पोजियम (NYS) के आयोजन आरंभ किए तो मिन्टू जी इससे सम्बन्धित सारी व्यवस्थाओं में लगातार लगे रहते। सत्गुरु की सेवा करने हुए उन्हें अपने आराम की लेशमात्र भी चिंता नहीं होती थी।

29 जून, 2023 को श्री खुशविन्दर नौल जी 47 वर्ष की आयु में नश्वर शरीर त्यागकर निरंकार में लीन हो गए। अपने छोटे परन्तु यादगार जीवन काल में उन्होंने अपनी कर्मठता और प्रभु पर विश्वास के बल पर जीवन के हर पल का स्वागत किया। उन्होंने अपनी अद्वितीय विनम्रता से जीवन के पल-पल को जीवन्त किया और साहसपूर्वक हर परिस्थिति का सामना किया। सतगुरु की सेवा में सदैव समर्पित उनका जीवन प्रेरणा और स्फूर्ति से भरा हुआ था।

पूरा नौल परिवार सत्गुरु एवं समस्त साध संगत के प्रति शुकराने और कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हुए यही अरदास करता है कि जो प्रेरणा खुशविंदर जी ने अपनी अटूट सेवाभक्ति भाव से दी, उसका हम भी अपने जीवन में अनुसरण कर पाऐं।

समस्त नौल परिवार !

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56वां महाराष्ट्र वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 2023 | 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam 2023 will be held in Aurangabad during 27-29 January 2023

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धन निरंकार जी संतो ! आप सभी को यह जानकार बहुत ही ख़ुशी होगी कि लम्बे समय से आप सभी को जिस रूहानियत की घड़ी का इंतज़ार था वो घड़ी अब सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की असीम कृपा से 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam ( 56वां महाराष्ट्र वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 2023 ) के रूप में हमारी झोलियों में आ रही हैं . Maharashtra’s 56th Annual Nirankari Sant Samagam : Annual Maharashtra Nirankari Samagam Dates Announced.

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Bhakti parv samagam 2023 samalkha | भक्ति पर्व समागम 2023 समालखा

गुरु की प्यारी साध संगत जी, महाराष्ट्र का 56वां वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam जो कि औरंगाबाद, महाराष्ट्र में दिनांक 27 से 29 जनवरी 2023 में होने जा रहा है जिसमें देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु सन्त, महापुरुष हिस्सा लेंगे और

निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जी की रहनुमाई में इस वार्षिक निरंकारी सन्त समागम 56th Maharashtra Nirankari Sant Samagam का आयोजन लम्बे समय के अंतराल के बाद ( दो वर्षों से तथा पिछले वर्ष ऑनलाइन होने के बाद ) इस बार यह ऑफ़ लाइन रूप में होगा जिसमें विश्व भर के मानव इंसानियत की राह पर चलते हुए आपसी भाईचारे का सन्देश देते हुए आत्मा का परमात्मा से मिलन का आनंद लेते हुए रूहानियत और इंसानियत का सफ़र संग-संग तय करेंगे . Nirankari Live Aurangabad .

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Nirankari Live Today गुरसिख जो होता है वो दास ही बनकर रहता है।

Nirankari Live Today
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Nirankari Live Today गुरसिख की भावना

Nirankari Live Today गुरसिख जो होता है वो दास ही बनकर रहता है। उसके हृदय में दास भावना होती है। वो इस पल, एक पल या कुछ पल के लिये नहीं बल्कि दम दम पल-पल दास ही बनके रहता है। उसकी भावना भक्ति वाली होती है, विनम्रता वाली होती है। दास भावना, जिसके हृदय में बस जाती है, वही ऊँचाइयों को प्राप्त कर लेता है।

गुरसिख वही कार्य करता है

गुरसिख वही कार्य करता है जिस तरफ गुरु का इशारा आ जाता है। गुरसिख उसी तरफ को ही, ‘क्यों और किंतु किए बगैर बढ़ता जाता है। उसमें कोई अपनी अक्ल नहीं लगाता है। उसमें कोई और चतुराई नहीं ले आता है। वो तो जैसे इशारा आया उसी को ही हुक्म मानकर, उसको सर आँखों पर ले लेता है और फिर नतमस्तक हो जाता है। जो काम Nirankari Live Today आशय के अनुसार किये जाते हैं, वही शोभायमान हुआ करते हैं। वही होते हैं जो हमारे जीवन में आनंद ले आते हैं।

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मुझे तो सलीका ही नहीं है

लाख सयाना हो लेकिन गुरसिख अपने आप को मूढ़ मानता है। मैं कौन हूँ विचार करने वाला। मैं कौन हूँ विद्वता की बात करने वाला। मैं तो एक मूर्ख-सा हूँ, मुझे कोई ढंग नहीं है। विद्वता तो दूर की बात, मुझे तो उठने-बैठने का भी सलीका नहीं है। मुझे तो सलीका ही नहीं है कि भक्तों का कैसे सत्कार किया जाता है। मुझे तो सलीका ही नहीं है कि सेवा कैसे की जाती है… Sant Nirankari Mission

गुरसिख अपने आपको चरण रज मानता है

वो लाख दौलत वाला हो लेकिन वो अपने आपको चरण रज मानता है कि मैं तो एक धूल से भी ज्यादा नहीं हूँ। मैं कहीं का दौलतमंद हूँ। ठीक है चार पैसे अगर आ गये हैं तो ये भाव नहीं है कि मैं बहुत ऊँचा हो गया हूँ और बाकी मेरे से नीचे दर्जे वाले हो गये हैं।

जो दौलत गुरु ने, ( मुर्शद ने ) बख्शी है

जो दौलत मुझे गुरु ने बख्शी है, उस दौलत के कारण ही मैं अमीर हूँ।…Nirankari Live Today.

जो दौलत मुझे गुरु ने, ( मुर्शद ने ) बख्शी है इसी दौलत के कारण मैं अमीर हूँ बाकी दौलतों के कारण मैं अमीर नहीं हूँ।

गुरसिख अपने अस्तित्व को मिटा देता है

गुरसिख अपने आपको मुका देता है। यानि कि अपने अस्तित्व को मिटा देता है। मैं कौन हूँ? मेरा तो कोई अस्तित्व ही नहीं है। मेरा तो कोई वजूद ही नहीं है। एक बुलबुले का तो वजूद हो सकता है, मेरा तो उतना भी वजूद नहीं है। अगर कहीं भूल से भी कोई ऐसी बात हो जाती है तब भी भक्त के मन में ग्लानि का भाव आ जाता है, जैसे कोई डर जाता है, भय में आ जाता है कि कहीं मेरे से कोई ऐसी चूक तो नहीं हो गई है। दूसरी तरफ संसार में सरेआम गुनाह करके फिर भी छाती चौड़ी की जाती है, का सरेआम गुनाह करको फिर भी स र उठायें फिरते है और यहीं मानते हैं कि पता नहीं क्या-क्या हमने प्राप्ति कर ली है।

गुरसिख जो होता है वो कर्म करता है, वो अपनी जिम्मेदारियाँ निभाता है, वो अपनी भक्ति निभाता है। निष्काम भक्ति की महत्ता है, इसलिये वो कर्म भी निष्काम करता है। वो कामनाओं के साथ नहीं जोड़ता है। Nirankari Live Today जैसे पहले भी महापुरुषों-संतों ने कहा है कि इबादत और बंदगी, उसकी है। वो कीमत नहीं मांगता। जो भक्त होता है वो निष्काम भावना वाला होता है।

ऐसे गुरसिख का नाम रोशन हो जाता है। उसका रुतबा बुलंद हो जाता है। हमेशा-हमेशा के लिये उसको ऊँचा स्थान प्राप्त हो जाता है। जिन्होंने इस सच्ची दौलत से अपने आपको अमीर बनाया। जो आदेश आये उसी अनुसार अपने आपको चलाया। वही है जिन्होंने ऊँचा रुतबा प्राप्त कर लिया। जिस स्थान कोई उनको हिला नहीं सका। चाहे सदियों बीत गई, चाहे युग बीत गये लेकिन जो स्थान उनको प्राप्त हुआ वो आज तक वो स्थान प्राप्त है। उसको कोई धूमिल नहीं कर सका है। ऐसे गुरसिखों का नाम रोशन हो जाता है जिन्होंने समर्पण भाव से अपने आपको है।…Nirankari Live Today

गुरसिख कौन होता है ?

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

Nirankari Live Today गुरसिख जो होता है वो दास ही बनकर रहता है।

गुरसिख की दौलत कौन सी होती है ?

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ब्रह्म-ज्ञान की दात वाली दौलत, जो की मुर्शिद (सतगुरु) बक्शते हैं वो दौलत गुरसिख की असली दौलत हुआ करती है।…Nirankari Live Today

सद्गुरु के दर पर ऊँचाइयों को कौन छूता है ?

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दास भावना, जिसके हृदय में बस जाती है, वही ऊँचाइयों को प्राप्त कर लेता है।…Nirankari Live Today

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | Best Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 2024

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि : सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा, जैसे हमने उसके प्रति अपनी धारणा बना ली है।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि NirankariSatsangLive
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 जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | As is the Vision, so is the Creation

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि : सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा, जैसे हमने उसके प्रति अपनी धारणा बना ली है। हम सभी अपना नज़रिया ऐसा बनाएं जैसे कि हम सृष्टि को देखना चाहते हैं। सौन्दर्य तो दर्शक की आँखों में होता है इसलिए अगर हम अपनी दृष्टि सुंदर रखेंगे तो हमें सृष्टि भी सुंदर लगेगी। किसी की तो तमाम खामियों के बावजूद हम उसे बहुत प्यार से के देखते हैं, जबकि किसी की तमाम खूबियाँ भूलकर, एक खामी की वजह से हम उस इन्सान को अपने मन से उतार देते हैं और उससे बात करना छोड़ देते हैं। इसलिए हम सभी को खुद को स्थिर रखने की आवश्यकता है। यह विचार सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | Niirankari Vichar Satguru Mata Ji

अक्सर हमारी आँखों में ही गलती होती है-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | Our Eyes are Often at Fault

अक्सर हमारी आँखों में ही गलती होती है यानि कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, बेशक हमारी नीयत ठीक हो। उदाहरण के तौर पर जिस बुजुर्ग इंसान को हमने सड़क पार करा दी, बाद में पता चला कि उसे इसकी जरूरत नहीं थी। चूक हो गई क्योंकि सामने वाले की जरूरत को बिना समझे हमने निर्णय ले लिया।

हमने परछाई को ही हकीकत बना दिया-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि | We Turned the Shadow into Reality

एक और उदाहरण भी हमने सुना है कि हम बार-बार एक चीज को पानी में से निकालने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी हम उसे पानी से निकाल नहीं पा रहे क्योंकि कोई वह कीमती चीज तो दरअसल पेड़ पर टंगी है और उसकी परछाई ही पानी में दिखाई दे रही है। हमने परछाई को ही हकीकत बना दिया।

ऐसा भी होता है कि हमने किसी कमरे में प्रवेश किया और वहाँ दो व्यक्तियों के बीच पहले से ही कोई वार्तालाप चल रहा है। हमने पीछे की बात सुनी नहीं और सामने वाले के प्रति हम अपनी एक धारणा बना कर बैठ जाते हैं। बहुत बार जो दिखाई देता है, सुनाई देता है वह सही नहीं होता। जब हमने परमात्मा को मन में बसा लिया, अपने हर ख्याल में बसा लिया तो हमें संदेह का लाभ किसी और को देना आ जाए, बेशक गलती किसी से भी हुई हो।

किसी का स्वभाव कैसा भी हो, हम यह मानें कि हमारा नज़रिया ही ठीक नहीं। किसी को देखकर कई बार लगता है कि यह व्यक्ति कुछ अजीब-सा है। उसके पीछे भी कोई कारण तो रहा होगा। हो सकता है. उसको कुछ अच्छे अनुभव ना हुए हों और हालात की वजह से उसके अंदर कड़वापन आ गया हो।

अपने नजरिए में जब हम निरंकार को बसा लेते हैं फिर हमें हर चीज पावन व पुनीत दिखती है जैसा निरंकार ने उसे मूल रूप से बनाया है। इन्सान के शरीर द्वारा गलतियां होने पर भी रूह तो निरंकार का अंश है।

इस शरीर पर माया का असर होता है क्योंकि मानवीय अनुभव शरीर से होता है। निरंकार को याद रखने से माया का रंग भी अपने आप उतरता चला जाता है और शरीर में रहते हुए, परमात्मा से इकमिक हो कर जीना संभव हो जाता है।

What is true religion
What is true religion

सच्चा धर्म क्या है ?

सबसे बड़ा और सच्चा धर्म मानवता का है (इंसानियत का धर्म सबसे सच्चा धर्म है।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि से क्या तात्पर्य है ?

सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा, जैसे हमने उसके प्रति अपनी धारणा बना ली है।

उदाहरण के तौर पर : जिस बुजुर्ग इंसान को हमने सड़क पार करा दी, बाद में पता चला कि उसे इसकी जरूरत नहीं थी

चूक हो गई क्योंकि सामने वाले की जरूरत को बिना समझे हमने निर्णय ले लिया।

अध्यात्म के बिना विज्ञान घातक Nirankari Vichar Satgurru Mata Sudiksha Ji

Nirankari Vichar Satgurru Mata Sudiksha Ji

अध्यात्म के बिना विज्ञान घातक

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Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Hindi

आत्मा के अध्ययन को अध्यात्म कहते हैं और किसी भी। आ विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान अध्यात्म और विज्ञान की परिभाषाएं तो यही है लेकिन जब विज्ञान को देखते हैं तो अध्यात्म के बिना विज्ञान आज जहर का काम कर रहा है। उदाहरण के लिए विज्ञान के बल पर लोग आज चाँद तक पहुँच रहे हैं लेकिन अध्यात्म के अभाव में बगल में पड़ोसी के घर में नहीं जा रहे हैं।

इतना ही नहीं अध्यात्म के अभाव में विज्ञान के सहारे पड़ोसी पर बम का प्रयोग कर रहे हैं। यह बम विज्ञान ने बनाया है, अध्यात्म ने नहीं। लोग अध्यात्म के अभाव में खाद्यान्न की सुरक्षा हेतु कीड़े मारने वाली दवा से कीड़े मारने की बजाय उसको खाकर आत्म हत्या कर रहे हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए निरंकारी बाबा जी कहते हैं

ब्रह्म की प्राप्ति भ्रम की समाप्ति इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि बिना ‘ब्रह्मज्ञान के आत्मज्ञान सम्भव नहीं है। लंका में रावण को घूमने के लिए विमान था लेकिन अध्यात्म के अभाव में उसने विमान का दुरुपयोग माता सीता जी को चुराने में किया।

आज भी यही हो रहा है लोग ट्रेन में सड़कों-चौराहों पर बम फेंक कर निर्दोष लोगों को मार रहे हैं। ध्यान से देखें तो क्या ट्रेन में सब लोगों की गलती है या शहर के चौक में सब लोगों की गलती है? नहीं, लेकिन आध्यात्मिकता न होने के कारण आज पढ़े-लिखे डॉक्टर अथवा इंजीनियर इन्सानी जीवन के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते।

आज लोग अच्छा घर बना लेते हैं तो कहते हैं कि हम घर वाले हो गये लेकिन अवतार बाणी में शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज फरमा रहे हैं सौ-सौ योनी भुगते बन्दा रहता आता जाता है।

पर वह जो हरि को जाने घर वाला हो जाता है। सन्त-महात्मा यही समझाते हैं कि आप सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं लेकिन अध्यात्म के अभाव में बुरे काम से नहीं बच पाते इसीलिए सदगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कहते हैं कि Let God dwell in the mind so that you are protected from evil ways. (इस प्रभु-परमात्मा पर ध्यान केन्द्रित रखो ताकि कुमार्ग से बचे रहो।)

इन्सान के मन में अगर अध्यात्म बसा हुआ नहीं है तो इन्सान, इन्सान होते हुए भी बहुत से गलत काम करता है। सन्त कबीर जी ब्रह्मज्ञानी थे। परोपकार करना उनका स्वभाव था इन्सान को मधुर वाणी बोलने की प्रेरणा देते हुये उन्होंने कहा बाज़ी ऐसी बोलिए, मन का आपा खोय।। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय लेकिन आज की स्थिति कितनी भिन्न हो चुकी है, स्वार्थपरता और चालाकियां इतना उग्र रूप ले चुकी हैं कि सन्त कबीर जी की बात के ठीक विपरीत लोगों की सोच हो चुकी है – बाली ऐसी बोलिए कि तुरन्त झगड़ा होय। उससे कभी न बोलिए जो आपसे तगड़ा होय ।

इन्सानी प्रवृत्ति में इस गिरावट का मुख्य कारण यही है कि विज्ञान तो प्रगति कर रहा है लेकिन अध्यात्म का अभाव होता जा रहा है। सार रूप में देखा जाये तो शान्त और सुखद जीवन हेतु विज्ञान के साथ-साथ हर इन्सान को अध्यात्म का भी ज्ञान होना आवश्यक है।

स्थिर के साथ नाता जोड़ें Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

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 स्थिर के साथ नाता जोड़ें

Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

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Nirankari Vichar Satguru MAta Sudiksha Ji 2022

तू ही निरंकार,
मैं तेरी शरण हाँ,
मैनूं बख्श लो
Tu Hi Nirankar Main Teri Sharan Han Menu Bakhsh Lo

मन अन्तर को शुद्ध करने म और गुरमत पर चलने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर सद्गुरु निरंकार का भाव पूर्वक सुमिरण करना। इससे ज्ञान, ध्यान, त्याग और प्रेम की स्थिरता बढ़ती जाएगी। ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के बाद शान्ति और स्थिरता तक पहुंचना आवश्यक है। सद्गुरु के ज्ञान को ग्रहण कर स्थिरता से जीवन को सहज, सरल और सजग जीने की शक्ति प्राप्त होती है। हमारा मन क्यों मलीन हो जाता है, इसके लिए मन और उसके दोषों को समझना आवश्यक है।

हर मनुष्य में मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार है। जब यह संकल्प-विकल्प करता है तो मन कहलाता है जब निर्णय करती है तो बुद्धि मन जब धारण करता है तो चित्त कहलाता है। इसी प्रकार मन जब मैं मेरी के चक्रवात में फंस जाता है तो इसे अहंकार की संज्ञा दी जाती है। मन के दोषों को सद्गुरु द्वारा प्रदत्त सुमिरण से दूर किया जाता है।

मन शीशे के समान होता है। इसमें तीन दोष हैं- आवरण, मैल और चंचलता। ये दोष मन को अस्थिर करते हैं। ब्रह्मज्ञान जब सद्गुरु द्वारा प्रकट होता है तब मन रूपी दर्पण साफ हो जाता है और प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई देता है। यदि आंखों और दर्पण के बीच में कपड़ा रख दें तो प्रतिविम्ब स्पष्ट दिखाई नहीं देगा। यदि शीशे पर धूल जमी हो तो भी प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई देगा। इसका कारण मल दोष कहा जाएगा।

यदि कोई शीशे को हिलाता रहे अर्थात् स्थिरता न हो तब प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई दे। ये तीनों दोष मन रूपी शीशे में चित्र नहीं प्रकट होने देते। माया का आवरण ही मन के दर्पण में प्रभु को नहीं देखने देता। विषय-वासनाएं मन में मैल पैदा करती हैं और धन, पुत्र तथा सम्मान की तृष्णाएं मन को चंचल बना देती हैं। यही विशेष दोष है।

दोषों को दूर करके अन्तःकरण को पवित्र करने धीर, वीर, गम्भीर, सहनशील, जीवन स्थिर बनकर निराकार प्रभु से इकमिक होकर जीवन में सुन्दरता आती है।

तू ही निरंकार Tu Hi Nirankar Meaning in Hindi

  • तू ही निरंकार, ज्ञान अन्तःकरण दोष को दूर करता है।

मैं तेरी शरण हाँ Main Teri Sharan Haan Meaning In Hindi

  • मैं तेरी शरण हाँ, कर्म अन्तःकरण के मैल दोष को दूर करता है।

मैनूं बख्श लो Menu Bakhsh Lo

  • मैनूं बख्श लो प्रार्थना, उपासना, भक्ति, अन्तःकरण मन की चंचलता को दूर करता है।

इस प्रकार मन दर्पण जब दोषों से मुक्त होकर बिलकुल स्वच्छ हो जाता है तो इसमें प्रभु का चित्र प्रकट होता है। चित्र उतना ही अधिक स्पष्ट होता है जितना दर्पण अधिक स्वच्छ होगा। मन की पूर्ण शुद्धि ब्रह्मज्ञान से ही होती है।

तुलसी के शब्दों में तब लगि हृदय बसत खल नाना। लोभ मोह मत्सर मद माना। जब लगि हिय न बसहि रघुनाथा लिये चाप कटि सायक माथा ब्रह्मज्ञान और सद्गुरु के आशीर्वाद से गुरसिख के मन को सारी उथल-पुथल शान्त हो जाती है। स्थिर के साथ नाता जुड़ने से उसकी अस्थिरता समाप्त हो जाती है।

सद्गुरु की कृपा Satguru Ki Kripa ( Nirankari Vichar )

सद्गुरु की कृपा से निराकार परमात्मा से जुड़कर आनन्द प्राप्त करती है फिर उसे दुनिया की दुर्गन्ध नहीं, हरि परमात्मा सुगन्ध ही चारों ओर व्याप्त प्रतीत होती है। आनन्द स्वरुप से जुड़कर वह आनन्दमय हो उठता है। संसार में रहते हुए दातार की बन्दगी करते हुए उसको जीवन यात्रा सुखद हो जाती है।

कण-कण में परमात्मा Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

कण-कण में परमात्मा का बोध होते ही मन सेवा, सुमिरण, सत्संग की ओर मुड़ जाता है। सद्गुरु की कृपा गुरसिख अन्तर्मन से सद्गुरु दातार की आराधना और जिवा से नाम सुमिरण होता है। उसके नेत्र लोगों की बुराईयां न देखते हुए सद्गुरु के दर्शनों से ही सुख पाना चाहते हैं। उसके कान निन्दा रस नहीं, हरियश सुनने को लालायित रहते हैं। यह अन्तःकरण को शुद्ध करने का जीवन को पवित्र करने का अथवा गुरमत पर चलने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। जिस गुरसिख की यह अवस्था हो जाती है वह सबको सुख बांटते हुए सुखमय जीवन जीता है।

सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज निरन्तर जोर दे रहे हैं कि हम सभी के साथ मिल-जुलकर रहें, सभी सन्तों का आदर करते जायें। सद्गुरु सारे भय, तनाव, कपट, संकट, दुख, रोष, सन्ताप का शमन कर देते हैं और जीवन को सहज, स्थिर अवस्था प्राप्त हो जाती है।

इन्सान के मन की ‘मैं’ उसे जीवन भर परेशान करती है इसलिए इन्सान के भीतर के ‘मैं’ का मिटना जरूरी है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji

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इन्सान के मन की मैंउसे जीवन भर परेशान करती है इसलिए इन्सान के भीतर के मैंका मिटना बहुत ही जरूरी है।

    

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Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji

 

    इन्सान के मन की मैं‘ उसे जीवन भर परेशान करती है इसलिए इन्सान के भीतर के मैं‘ का मिटना बहुत ही जरूरी है।

 

    एक दिन सुकरात समुद्र तट पर टहल रहे थे और उनकी नजर तटपर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी। वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा, “तुम क्योंरो रहे हो?” बच्चे ने कहा, “ये जो मेरे हाथ में प्याला है में इसमें इस समुद्र को भरना चाहता हूं पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं।

    बच्चे की बात सुनकर सुकरात विस्माद में चले गये और स्वयं रोने लगे। अब पूछने की बारी बच्चे की थी। बच्चा कहने लगा, आप भी मेरी तरह रोने लगे होती है। पर आपका प्याला कहाँ है?” सुकरात ने जवाब दिया, “बालक, तुम छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहते हो और में अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ।

 

    आज तुमने सिखा दिया कि समुद्र प्याले में नहीं समा सकता है, मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा।” यह सुनकर बच्चे ने प्याले को दूर समुद्र में फेंक दिया और बोला- सागर अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है।”

 

    इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और बोले- “बहुत कीमती सूत्र हाथ लगा है।” हे परमात्मा! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते हैं पर मैं तो सारा का सारा आपमें लीन हो सकता। हैं।

 

    ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गए और सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त कराया। जिस सुकरात से मिलने के लिए सम्राट तक समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लौट गए थे। ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का “मैं सबसे पहले मिटता है या यूँ कहें जब आपके अंदर का मैं मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है ।

Nirankari Satsang Live | जिस मनुष्य का मन प्रभु चिन्तन में लगा है और जिसमें सदा प्रभु का ही विश्वास भरा है वही सच्चा ज्ञानी है

Nirankari Live

Nirankari Satsang Live जिस मनुष्य का मन प्रभु चिन्तन में लगा है और जिसमें सदा प्रभु का ही विश्वास भरा है वही सच्चा ज्ञानी है The man whose mind is engaged in the contemplation of GOD and in whom the faith of GOD is always filled, he is the true scholar. 

Live Nirankari Satsang

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Nirankari Satsang Live |Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

      

रोशनी प्रसन्नता का प्रतीक है। आँखों का महत्त्व भी रोशनी से है।  थोड़ी देर के लिए रोशनी समाप्त हो जाए तो कहानी बिगड़ जाती है। Light is a symbol of happiness. The importance of eyes is also from light. The story gets worse if the lights go out for a while.  Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj

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बाबा हरदेव सिंह जी एक उदाहरण दिया करते थे

    बाबा हरदेव सिंह जी एक उदाहरण दिया करते थे कि एक कमरे में सब प्रकार के अच्छे-अच्छे फर्नीचर, सोफ़ा-सेट अदि मौज़ूद हों लेकिन अगर वहां रौशनी न हो तो वह सारा सामान हमारी कठिनाई का कारण बनता है और अगर वहाँ रोशनी हो तो वही सामान हमारे आराम का कारण बनता है। Baba Hardev Singh ji used to give an example that a room should have all kinds of good furniture, sofa-set etc. But if there is no light then all that stuff becomes the cause of our trouble and if there is light then the same thing. Stuff causes our comfort. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj सी प्रकार संसार की तमाम आराम की वस्तुएं हमारे लिए दुःख का कारण भी बन जाती हैं यदि हमारे पास प्रभु का ज्ञान, ब्रह्मज्ञान नहीं है। Similarly, all the comforts of the world also become a cause of sorrow for us if we do not have the knowledge of God, the knowledge of Brahman. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj

ब्रह्मज्ञान की रोशनी की आवश्यकता

    नुष्य के जीवन में ब्रह्मज्ञान की रोशनी की बहुत आवश्यकता होती है। The light of Brahma Gyan is very much needed in the life of a human being. ब्रह्मज्ञान के बिना हम संसार में ऐसे घूमते  हैं जैसे अँधेरे में घूम रहे हों। Without the knowledge of Brahman, we walk in the world as if we are walking in the dark. सद्गुरु ब्रह्मज्ञान का दाता है। जिसे सद्गुरु मिल जाता है उसे ब्रह्मज्ञान मिल जाता है। Sadhguru is the giver of Brahmagyan. The one who gets the Sadguru gets the knowledge of Brahman. फिर उस के जीवन में सच्च्ची रौशनी प्रकट होती है और उस मनुष्य का जीवन स्वर्गमयी बन जाता है। Then true light appears in his life and that person’s life becomes heavenly. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj

    सचमुच वे लोग बहुत खुशनसीब हैं जिन्हें रोशनी से प्यार होता है और जिन्हें रोशनी का महत्त्व पता होता है।
Truly, those people are very lucky who are in love with light and who know the importance of light. नहीं तो लोगों को यह एहसास भी नहीं होता कि ब्रह्मज्ञान की कोई रौशनी भी होती है। Otherwise people do not even realize that there is any light of Brahmagyan. जो सद्गुरु की संगत में आते हैं उनको आभास हो जाता है कि ऐसी दिव्य-ज्योति सद्गुरु के पास है जिससे कि हमारा जीवन रोशन होता है।Those who come in the company of Sadguru, they get the feeling that such divine light is with Sadguru, sant nirankari mission which illuminates our life.  Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
हापुरुष एक उदाहरण दिया करते हैं कि एक दिन मैना और तोता रोशनी की बात कर रहे थे और जब एक उल्लू ने यह सुना तो वह कहने लगा कि क्या कहीं रोशनी भी होती है ? The great men give an example that one day the myna and the parrot were talking about light and when an owl heard this, he started saying that is there light anywhere? कहीं तुम अँधेरे को तो ही रौशनी नहीं कहते हो ? Do you not call darkness only as light? वह उड़ गया कि रोशनी होती ही नहीं है और उसने अपनी बात के समर्थन में एक चमगादड़ की गवाही भी दिलवा दी कि रौशनी नाम की कोई चीज़ नहीं होती। He flew away that there is no light and he also got the testimony of a bat in support of his point that there is no such thing as light. इसी प्रकार कई लोगों का यह विश्वास होता है कि ब्रह्मज्ञान, ईश्वरीय-ज्ञान, सत्य ज्ञान ज्योति है ही नहीं, यह केवल भ्रम है। Similarly, many people believe that Brahmagyan, God-knowledge, true knowledge is not a light, it is only an illusion. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj

 
न्त वाणी में स्पष्ट लिखा है कि जिस मनुष्य का मन प्रभु चिन्तन में लगा है और जिसमें सदा प्रभु का ही विश्वास भरा है वही सच्चा ज्ञानी है। It is clearly written in Sant Vani that the person whose mind is engaged in contemplating GOD and in whom the faith of GOD is always filled, he is the true knowledgeable person. Nirankari Vichar Satguru Maa Sudiksha Ji Maharaj
धन निरंकार जी। 
 
सतगुरु माता सुदीक्षा सविन्दर हरदेव जी महाराज की जय !

ब्रह्मज्ञान पाने के बाद ही मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं – निरंकारी विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

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        ब्रह्मज्ञान पाने के बाद ही मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं
                                                                                                         …सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज 
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Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
    सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने एक दिवसीय सत्संग समारोह में कहा कि ब्रह्मज्ञान पाने के बाद ही मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं। जीवन मुक्त Nirankari Satsang Live होना ही सही मायने में मुक्ति है। सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज मुक्ति-पर्व समागम के अवसर पर श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे।
    मुक्ति-पर्व पर शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी एंव जगत माता बुद्धवंती जी सहित उन तमाम महात्माओं को याद किया Nirankari Satsang Live जाता है, जिन्होंने संत निरंकारी मिशन के सत्य सन्देश के प्रचार-प्रसार में सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया।
    सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने आत्म-विश्लेषण करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि हम सोचें कि मुक्ति का असली अर्थ क्या है ? वास्तव में जीवन मुक्त होना ही सही मायनों में मुक्ति है।  क्या हमने ब्रह्मज्ञान को पाकर अपनी असली पहचान Nirankari Satsang Live कर ली है ? क्या जीवन से मृत्यु की इस यात्रा में हम निरंकार से जुड़ पाए हैं ?
    अगर ज़िन्दगी के सफर में हमें उतार -चढ़ाव, सुख-दुःख आदि का असर नहीं हो रहा तभी हम जीते जी मुक्त हैं। हमें सेवा, सुमिरन, सत्संग करने का सुक्ष्म अभिमान नहीं आना चाहिए, अगर Nirankari Satsang Live कोई गलत विचार मन में आते हैं तो वे हमें गलत रास्ते पर ले जाते हैं, निरंकार से दूर कर देते हैं और फिर हम मुक्ति से भी दूर चले निरंकारी विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज  जाते हैं।
    सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने कहा कि भक्ति कोई कुछ समय के लिए करने वाला कार्य नहीं है बल्कि जीवन भर करने वाला कार्य है। जब हम निरंकार के Nirankari Satsang Live एहसास के साथ जुड़कर कोई नेक कार्य करते हैं तो वो भी सेवा, सुमिरन, सत्संग का एक हिस्सा बन जाता है, चाहे हम घर में काम कर रहे हों या किसी की मदद करके सेवा कर रहे हों। फिर हमारा जीवन सुन्दर और भक्तिमय निरंकारी विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज  बन जाता है।
    हमारे जीवन में कभी भी ऐसा समय जीते जी नहीं आता कि हम परिपूर्ण  हो जाएं। हम इंसान हैं तो कमियां भी हमारे Nirankari Satsang Live जीवन में रहेंगी, परन्तु इतना तो अवश्य कर सकते हैं कि हम अपने मूल इस निरंकार से जुड़कर इस पर ध्यान टिका कर बेहतरी की ओर बढ़ते जायें।
    कम से कम इतना तो करें कि हर दिन हमारी कमियां थोड़ी काम होती जाएं।  हमारे कर्म दूसरे के आंसू  पोंछने वाले हों, औरों को खुशियां देने वाले हों। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji दातार कृपा करे कि सभी ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके अपने जीवन में मानवीय मूल्यों को विकसित करें और गलत रास्ते पर कदम बढ़ाने Nirankari Satsang Live से बचें।

निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी विचार – Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Vichar

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Vichar

निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी विचार 

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Vichar

   सासंगत जी प्यार से कहना, धन निरंकार जी।                      Nirankari Satsang Live

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   साध संगत, यहाँ मान्तोवा, इटली के इस प्रांगण में आज हम सब यूरोपियन सन्त समागम के लिए इकट्ठे हुए हैं। यहाँ न सिर्फ इटली के बल्कि यूरोप के बहुत से देशों और हिन्दुस्तान से भी महापुरुष आए हैं ताकि जहाँ इस निरंकार परमात्मा का गुणगान कर सकें,वहीँ वो एक जो महत्ता है कि Nirankari Satsang Live  जीते जी इस निरंकार को जानने के बाद हमें अपना असली रूप पता लग सकता है और जब निरंकार का बोध हो जाए तो जीवन भर ब्रह्मज्ञान को याद रखते हुए सेवा, सुमिरन व सत्संग को अपनाना है।  
                      Nirankari Satsang Live                                             सतगुरु-माता-सुदीक्षा-जी-विचार
   पने जीवन में मानवीय मूल्यों वाले गुण डालने हैं कि हम प्यार से हर एक के साथ रहें, चाहे वो हमसे कैसा भी व्यवहार करे, हमें उसके साथ कभी उल्टा व्यवहार नहीं करना, हमेशां अच्छी तरह ही पेश आना है, उनके साथ भी जो हमारे लिए अच्छी सोच नहीं रखते। Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharचाहे किसी ने हमें कुछ गलत बोल दिया, उसके साथ भी हमने उसी प्यार से व्यवहार करना है। उनके लिए अपने दिलो-दिमाग को जलना नहीं है बल्कि स्वंय में सहनशीलता लानी है और दूसरों को भी ठंडक देनी है।

   आज आप सत्संग में समय निकाल कर इतनी दूर-दूर से आए हैं, अन्य संगठनों के भी प्रतिनिधि आए हैं और यहाँ के भारतीय दूतावास का भी प्रतिनिधित्व हुआ है, दासी सभी का धन्यवाद करती है। यह जो निरंकारी मिशन का सत्य-सन्देश है इसको सभी ने न केवल सुना बल्कि जो भी मिल रहे थे उन्होंने प्रशंसा भी की कि किस तरह दुनिया की जो आज के समय की आवश्यकता है कि हम अपने आप को एक छोटे से दायरे में न कर लें, अपने आगे-पीछे दीवारें न खड़ी कर लें। Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharउन दीवारों को न सिर्फ गिरना है बल्कि कोशिश करके जोड़ने वाले पुल के रूप में अपने जीवन को आगे लाना है।

   जहाँ हम हर एक के दिल और ज़िन्दगी तक उस तरह से पहुंचें, जिस तरह ब्रह्मज्ञान ने हमारे अंदर रोशनी की, हम वो जीवन जीयें जैसा युगों-युगों से संतों-महापुरुषों ने कहा कि-मनुष्य तन है तो मनुष्य जीवन भी वैसा हो जो मानवीय मूल्यों को अपने अंदर रखते हुए सारी खूबियाँ दर्शाए। Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharजीवन वाही मुबारक होता है जो उन गुणों से युक्त होता है और वो जीवन भर के लिए एक उत्सव के रूप में माना जा सकता है।

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   हम संसार में देखते हैं कि हर साल अलग-अलग मौसम आते हैं; कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी बरसात तो कभी बर्फ़बारी होती है, इसी तरह हमारे जीवन में भी समय हमेशां एक सा नहीं होता। खुशियों के समय खुशियाँ आएंगी, जब दुःख आना है तो वह भी अपने समय पर आना है, Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vicharजब शरीर में कोई तकलीफ़, कोई बीमारी आनी है तो उसने भी अपने समय से आना है।

    इतना कुछ जब हमारे साथ हो रहा है इस जीवन काल में तो, हमने शांति और स्थिरता रखते हुए जीवन की किसी भी स्तिथि में अपने मन और व्यवहार को स्थिर रखना है।  यह तभी संभव है जब हम इस स्थिर परमात्मा-निरंकार, जो शुरू में था, आज भी है और जिसका कोई अंत नहीं, से जुड़ जाते हैं।
   यह भोतिक्वादी दुनिया, यह माया, यह सब चीजें क्षण-भंगुर हैं, सब नाशवान हैं तो हम कैसे उसे याद रखते हुए कि हमारी स्तिथि जो भी चल रही है, पर हम हमेशां इस एकरस निरंकार के साथ जुड़े हैं। चाहे हम इसे अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु, राम Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vichar किसी भी नाम से बुलाएं यह अपने-आप में निर्गुण है, यह पत्ते-पत्ते, ज़र्रे-ज़र्रे में समाया हुआ है, जब हम इसका सहारा लेकर इसके जैसा बनने की कोशिश करेंगे तो हमारे जीवन में चाहे कैसी भी स्तिथि चल रही हो हमें वो एक जैसी सहज-आनन्द की अवस्था और स्थिरता ही मिलेगी।

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   दासी, अन्त में यही शुभकामना व्यक्त करेगी कि जिस जज़्बे से सब यहाँ आज संगत में आए हैं, दातार सभी पर इस तह अपना आशीर्वाद बनाए रखे कि जो सन्देश ग्रहण करने आए हैं वो एक-एक सन्देश चाहे छोटा हो या बड़ा Satguru-Mata-Sudiksha-Ji-Vichar अपनी ज़िन्दगी में हम उतारेंगे तो निश्चित रूप से उसका हमारे जीवन पर एक अच्छा प्रभाव पड़ेगा और हम एक बेहतर इन्सान बन सकेंगे।

जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए इच्छाओं और लालसाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना Nirankari Vichar Satguru Mata Ji

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जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए 
इच्छाओं और लालसाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना 
सतगुरु माता सुदीक्षा जी 
 
 
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Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
    जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिए इच्छाओं-लालसाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना क्योंकि लालसायें कभी ख़त्म नहीं होतीं। संतुष्टि के प्रभाव को प्रबल रखने के लिए सदैव निरंकार को जीवन का आधार बनाये रखें।
    ह विचार सद्गुरु माता जी ने एक दिवसीय सत्संग समारोह में व्यक्त किये। आप सन्त निरंकारी मिशन के आधिकारिक यू-ट्यूब चैनल पर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे।
 
    द्गुरु माता जी ने कहा कि इच्छाओं की पूर्ति होना असंभव है क्योंकि एक पूरी हुई तो दूसरी जागृत हो जाती है। अहंकार से मन को दूर रखना है।
 
    च्छाओं के सन्दर्भ में एक दृष्टांत सुनाया कि ‘एक राजा था, उसकी प्रजा में एक भिखारी था, जिसका बर्तन कभी भरता नहीं था।
    राजा ने भिखारी की आमंत्रित किया और कहा कि मैं तुम्हारे बर्तन को पूरा भर दूंगा। राजा ने धन, सम्पत्ति  सब कुछ दाल दिया, यहाँ तक कि अपना राज-पाठ भी उसे सौंप दिया, फ़िर भी बर्तन खाली का खाली ही रहा। भिखारी कहता है राजन ! ये मानवीय इच्छाएं हैं जो कभी ख़त्म नहीं होतीं।
 
    र्थात परमातमा हमें हर पल हमारी ज़रूरतों के अनुसार साधन उपलब्ध करा रहा है किन्तु इन्सान फिर भी संतुष्ट नहीं होता। इच्छाओं पर लगाम लगगने के लिए मन पर नियंत्रण रखना होता है।
    शायर ने भी लिखा है कि :-
                हसरतों का हो गया है इस कदर दिल में हुज़ूम,
                साँस  रस्ता  ढूँढती  है   आने  जाने  के  लिए ।
    ख़्वाहिशें मन में इतनी अधिक हैं कि साँस लेने के लिए भी जगह नहीं है। साँस भी रुक-रुक कर ले रहे हैं। भाव यही कि अपनी इच्छाओं के कारण निरंकार को भी दूर कर दिया है। अंग-संग रहने वाले निरंकार को भी भुला बैठे हैं।
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