Todays Nirankari Vichar, युगों-युगों से गुरु, पीर, पैग़म्बर मानवता के कल्याण के लिए मानव रूप में अवतरित होते रहे हैं। वेद, ग्रन्थ, शास्त्र और उपनिषद् सभी सद्गुरु की महिमा गुणगान करते हैं। सद्गुरु की महिमा असीम, अनन्त और अपरम्पार है।
विस्तृत जानकारी
गुरु का शाब्दिक अर्थ | Aaj Ki Nirankari Vichar
गुरु का शाब्दिक अर्थ ही है- अज्ञानता या अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। पर संसार में बहुत से लोगों की अलग-अलग विचारधाराएं होती हैं। कुछ ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं और कुछ लोग ईश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं। वो सूरज, चाँद-सितारों और पृथ्वी आदि को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं। बेशक आज विज्ञान के आविष्कारों और खोजों से पूरे विश्व में तरक्की की लहर फैल गई है। दिनों की दूरियां घंटों में बदल गई हैं। और घंटों की दूरियां मिन्टों में रह गई है।
विज्ञान की भूमिका | Nirankari Vichar
विज्ञान से लोगों के जीवन में सुविधाएं बढ़ गई हैं पर फिर भी यह प्रश्न तो मन में उठते ही रहते हैं। कि क्या इन वैज्ञानिक खोजों से पूरे संसार में शान्ति और अमन भी स्थापित हो सकती है? क्या प्यार, नम्रता, विश्वास, एकता और मानवता को नापने के बैरामीटर भी बन सकते हैं? क्या हम सब एक ही हैं की ऐसी छबि भी बन सकती Nirankari Vichar है?
अगर विज्ञान ये सब दे सकता तो सबसे पहले संसार के लोगों का नजरिया ही बदल दिया जाना सम्भव हो जाता और धर्म-जाति, रंग-भेद जैसी भयावह स्थितियों को खत्म कर दिया गया होता और मिलवर्तन और विश्व बन्धुत्व का भाव लोगों के हृदयों में बस गया होता।
परमात्मा क्या है ?
गहराई से विचार करें तो हम पायेंगे कि विज्ञान के ज्ञान की एक सीमा रेखा है, परन्तु निराकार परमात्मा अनन्त और अविनाशी है। प्रभु परमात्मा के स्वरूप की जानकारी इस सृष्टि में केवल सद्गुरु ही प्रदान कर सकते हैं।
सतगुरु की कृपा
इसलिए यह भी मानना ही होगा कि सद्गुरु की कृपा के बिना ज्ञान पथ पर आगे बढ़ पाना असम्भव है। सद्गुरु परमात्मा और अपने गुरसिख के बीच एक सेतु का काम करते हैं। वो गुरसिख वो निराकार के दर्शन कराके ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं। उसे जीवन जीने की कला सिखाते हैं।
बाबा हरदेव सिंह जी का संदेश
अक्सर बाबा हरदेव सिंह जी महाराज अपने विचारों Nirankari Vichar में दोहराते थे कि मनुष्य चाँद तक पहुँच गया पर उसे धरती पर अभी तक चलना नहीं आया है।” धरती पर चलने के लिए हमें सद्गुरु के चरण चिन्हों का अनुसरण करते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलना होगा। तभी हमारे दिलों की दूरियां खत्म होगी और सम्पूर्ण विश्व एकता के बंधन में बंधकर मानव के वास्तविक स्वरूप जो सेवा, करुणा और मानवता से जुड़ा है वो सार्थक हो जाएगा।