अध्यात्म के बिना विज्ञान घातक Nirankari Vichar Satgurru Mata Sudiksha Ji

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अध्यात्म के बिना विज्ञान घातक

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Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Hindi

आत्मा के अध्ययन को अध्यात्म कहते हैं और किसी भी। आ विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान अध्यात्म और विज्ञान की परिभाषाएं तो यही है लेकिन जब विज्ञान को देखते हैं तो अध्यात्म के बिना विज्ञान आज जहर का काम कर रहा है। उदाहरण के लिए विज्ञान के बल पर लोग आज चाँद तक पहुँच रहे हैं लेकिन अध्यात्म के अभाव में बगल में पड़ोसी के घर में नहीं जा रहे हैं।

इतना ही नहीं अध्यात्म के अभाव में विज्ञान के सहारे पड़ोसी पर बम का प्रयोग कर रहे हैं। यह बम विज्ञान ने बनाया है, अध्यात्म ने नहीं। लोग अध्यात्म के अभाव में खाद्यान्न की सुरक्षा हेतु कीड़े मारने वाली दवा से कीड़े मारने की बजाय उसको खाकर आत्म हत्या कर रहे हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए निरंकारी बाबा जी कहते हैं

ब्रह्म की प्राप्ति भ्रम की समाप्ति इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि बिना ‘ब्रह्मज्ञान के आत्मज्ञान सम्भव नहीं है। लंका में रावण को घूमने के लिए विमान था लेकिन अध्यात्म के अभाव में उसने विमान का दुरुपयोग माता सीता जी को चुराने में किया।

आज भी यही हो रहा है लोग ट्रेन में सड़कों-चौराहों पर बम फेंक कर निर्दोष लोगों को मार रहे हैं। ध्यान से देखें तो क्या ट्रेन में सब लोगों की गलती है या शहर के चौक में सब लोगों की गलती है? नहीं, लेकिन आध्यात्मिकता न होने के कारण आज पढ़े-लिखे डॉक्टर अथवा इंजीनियर इन्सानी जीवन के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते।

आज लोग अच्छा घर बना लेते हैं तो कहते हैं कि हम घर वाले हो गये लेकिन अवतार बाणी में शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज फरमा रहे हैं सौ-सौ योनी भुगते बन्दा रहता आता जाता है।

पर वह जो हरि को जाने घर वाला हो जाता है। सन्त-महात्मा यही समझाते हैं कि आप सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं लेकिन अध्यात्म के अभाव में बुरे काम से नहीं बच पाते इसीलिए सदगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कहते हैं कि Let God dwell in the mind so that you are protected from evil ways. (इस प्रभु-परमात्मा पर ध्यान केन्द्रित रखो ताकि कुमार्ग से बचे रहो।)

इन्सान के मन में अगर अध्यात्म बसा हुआ नहीं है तो इन्सान, इन्सान होते हुए भी बहुत से गलत काम करता है। सन्त कबीर जी ब्रह्मज्ञानी थे। परोपकार करना उनका स्वभाव था इन्सान को मधुर वाणी बोलने की प्रेरणा देते हुये उन्होंने कहा बाज़ी ऐसी बोलिए, मन का आपा खोय।। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय लेकिन आज की स्थिति कितनी भिन्न हो चुकी है, स्वार्थपरता और चालाकियां इतना उग्र रूप ले चुकी हैं कि सन्त कबीर जी की बात के ठीक विपरीत लोगों की सोच हो चुकी है – बाली ऐसी बोलिए कि तुरन्त झगड़ा होय। उससे कभी न बोलिए जो आपसे तगड़ा होय ।

इन्सानी प्रवृत्ति में इस गिरावट का मुख्य कारण यही है कि विज्ञान तो प्रगति कर रहा है लेकिन अध्यात्म का अभाव होता जा रहा है। सार रूप में देखा जाये तो शान्त और सुखद जीवन हेतु विज्ञान के साथ-साथ हर इन्सान को अध्यात्म का भी ज्ञान होना आवश्यक है।

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