जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए
इच्छाओं और लालसाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना
…सतगुरु माता सुदीक्षा जी
जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिए इच्छाओं-लालसाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना क्योंकि लालसायें कभी ख़त्म नहीं होतीं। संतुष्टि के प्रभाव को प्रबल रखने के लिए सदैव निरंकार को जीवन का आधार बनाये रखें।
यह विचार सद्गुरु माता जी ने एक दिवसीय सत्संग समारोह में व्यक्त किये। आप सन्त निरंकारी मिशन के आधिकारिक यू-ट्यूब चैनल पर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे।
सद्गुरु माता जी ने कहा कि इच्छाओं की पूर्ति होना असंभव है क्योंकि एक पूरी हुई तो दूसरी जागृत हो जाती है। अहंकार से मन को दूर रखना है।
इच्छाओं के सन्दर्भ में एक दृष्टांत सुनाया कि ‘एक राजा था, उसकी प्रजा में एक भिखारी था, जिसका बर्तन कभी भरता नहीं था।
राजा ने भिखारी की आमंत्रित किया और कहा कि मैं तुम्हारे बर्तन को पूरा भर दूंगा। राजा ने धन, सम्पत्ति सब कुछ दाल दिया, यहाँ तक कि अपना राज-पाठ भी उसे सौंप दिया, फ़िर भी बर्तन खाली का खाली ही रहा। भिखारी कहता है राजन ! ये मानवीय इच्छाएं हैं जो कभी ख़त्म नहीं होतीं।
अर्थात परमातमा हमें हर पल हमारी ज़रूरतों के अनुसार साधन उपलब्ध करा रहा है किन्तु इन्सान फिर भी संतुष्ट नहीं होता। इच्छाओं पर लगाम लगगने के लिए मन पर नियंत्रण रखना होता है।
शायर ने भी लिखा है कि :-
हसरतों का हो गया है इस कदर दिल में हुज़ूम,
साँस रस्ता ढूँढती है आने जाने के लिए ।
ख़्वाहिशें मन में इतनी अधिक हैं कि साँस लेने के लिए भी जगह नहीं है। साँस भी रुक-रुक कर ले रहे हैं। भाव यही कि अपनी इच्छाओं के कारण निरंकार को भी दूर कर दिया है। अंग-संग रहने वाले निरंकार को भी भुला बैठे हैं।