प्रेमाभक्ति अपनाकर अपने जीवन को प्यार भरा बनाएं….. Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

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प्रेमाभक्ति अपनाकर अपने जीवन को प्यार भरा बनाएं … 
… सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज 
 

  Live Nirankari Satsang

 
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Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
     द्गुरु माता ने एक दिवसीय सत्संग समारोह में अपने विचार व्यक्त किए कि, जीवन में हम भक्ति को सच में भक्ति की ही तरह कर रहे हैं क्या ? या जिसमें आस्था रखते हैं हम, अपने परमात्मा में, उसी से कोई सौदा कर रहे हैं ? क्या कोई व्यापार चल रहा है ? या सचमुच हमारी भक्ति, एक प्रभु को समर्पित भक्ति है ? यह वास्तविकता केवल सवयं हम सब को ही पता है।
    हम सब भली भांति जानते हैं कि हम सब क्या कर रहे हैं ? क्यों कर रहे हैं ? हमारा उद्देश्य क्या है ? हम सब यह भी भली भांति जानते हैं कि एक तरफ़ तो विश्वास  होती है और वो प्यार और विश्वास कभी नहीं छूटता, फिर चाहे हमारे जीवन के सफ़र में कितने भी उतार-चढ़ाव आ रहे हों।
    सद्गुरु माता जी कहते हैं कि हम देखते हैं कि एक बन्दर के बच्चे ने अपनी माँ को इतना कसकर पकड़ रखा होता है और उस चिपके हुए बच्चे को लेकर माँ एक पेड़ से छलाँग मार कर दूसरे पेड़ पर जा रही है तो बच्चा उस स्थिति में भी माँ को नहीं छोड़ता। यह एक दृढ विश्वास की बात होती है।
    एक कवि की पंक्तियाँ इस तरह से हैं कि :-
                                                   फूल से लिपटी हुई तितली को हिलाकर तो देखो। 
                                                   आँधियों    तुमने    दरख्तों   को   हिलाया   होगा । 
    फूल और तितली के सम्बन्ध की बात कि कितनी तेजी से हवा चलती है जब आँधी है और तितली फूल का रस ले रही है, उस पर इस तरह से बैठ गई है, फिर हवा चाहे कितनी भी तेजी से आए, एक छोटी छोटी सी तितली को वह हवा नहीं उड़ा पाती। वह फूल के साथ है तो वहीं दूसरी तरफ़ जो ऊँचे-ऊँचे पेड़ एक अभिमान के सूचक वो अपनी अकड़ में खड़े हैं और आंधी आते ही वो पेड़ टूट जाते हैं।
    कैसे यहाँ एक प्यार वाला फूल और एक प्यार वाली तितली एक-दूसरे का प्यार नहीं छोड़ रहे हैं, चाहे कितनी भी आँधियाँ आयें, वहां उस पेड़ की टहनियों ने साथ छोड़ दिया। हमारा जीवन भी इस रूप में ही हमने एक प्यार भरा बनाना है कि कैसे भी हालात हों इस परमात्मा से, इस निरंकार से प्यार ही प्यार हमेंशा हमारे मन में हो।
    सद्गुरु माता जी ने कहा कि, भक्ति कोई ऐसी चीज़ तो नहीं जो दिन में अलग कोई समय निकालकर की जाए। भक्ति तो हर सांस के साथ होती है।  प्यार तो हम हर समय ही कर सकते हैं इस निरंकार के साथ। हमें एक इसी भाव में चूर होकर अपने जीवन में भक्ति को और मजबूत करना है।
    सके लिए साधन सेवा, सुमिरन व सत्संग है और इसी के साथ जुड़कर हम इस निरंकार को अपने जीवन में और मजबूती के  बिठायें। दिल से प्यार हमेंशा सभी के लिए हो। फिर किसी भी व्यक्ति को मिलकर हम अगर धन निरंकार कर रहे हैं तो वो हमें एक इंसान न दिखे बल्कि उसे अपना सद्गुरु रूप ही समझ कर प्रेमाभक्ति हर एक से की जाए।

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