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स्थिर (निरंकार) से नाता जोड़कर ही जीवन में आये स्थिरता
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
गहराई से सोचें तो यह बात सामने आती है कि धरती से लेकर जितनी भी प्राकृतिक चीजें हैं वे गतिमान हैं, परिवर्तनशील हैं। इनमें कोई भी स्थिर नहीं है। इसी प्रकार इनमें से किसी भी वस्तु के साथ हम अपने मन का नाता जोड़ लेते हैं तो उन वस्तुओं के स्वयं अस्थिर होने के कारण हमारा मन भी स्थिरता नहीं प्राप्त कर पाता।
Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji 2022 |
Nirankari Vichar Satguru Mata Ji
इस बदलने वाले संसार के पीछे केवल एक ही स्थिर सत्ता है जिसको परमात्मा, ईश्वर, गॉड, अल्लाह, अकाल पुरख आदि अनगिनत नामों से पुकारा जाता है। यह सत्ता स्थिर है, शाश्वत है, अचल है, अटल है, अविनाशी है और सर्वव्यापी है। अज्ञानतावश इस सत्ता से बिछुड़ने के कारण ही जीवात्मा भटक रही है। सद्गुरु हमें इस सत्ता का बोध करा देता है। और इसके साथ इकमिक होने का विधि समझाता है जिससे जीवात्मा की भटकन समाप्त होकर वह इस परमात्मा में स्थिर हो जाता है, स्थित हो जाता है।
Nirankari Vichar In Hindi
यह संसार, जिसे प्रकृति, रचना या मायाभी कहा जाता है, यह पांच तत्वों से बना हुआ है। आत्मा को चतना या रूह कहा जाता है। पांच तत्व तो अपने-अपने तत्वों में मिलकर शान्त होते हैं। लेकिन यह छटा तत्व जब तक अपने मूल की पहचान नहीं करता तब तक स्थिरता को प्राप्त नहीं कर पाता। जब यह अपने मूल परमात्मा से मिलता है तब जाकर शान्त होता है, उसे स्थिरता प्राप्त होती है।
Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Ke Vichar In Hindi
जब तक जीवात्मा को अपने वास्तविक स्वरुप का पता नहीं चलता तब तक वह अपने आपको प्रकृति का ही अंग मानता रहता है। प्रकृति डोलायमान है और इसका संग करने से जीवात्मा भी डोलायमान हो जाता है। सद्गुरु ने हमें परमात्मा को बोध कराया जो स्थिर है, कायम-दायम है। यह आत्मा उसी की अंश होने के कारण जब इसका मिलाप स्थिर परमसत्ता के साथ होता है तो उसकी भटकन खत्म हो जाती है। इसीलिए अगर हमें स्थिरता प्राप्त करनी है तो सद्गुरु की शरण में आकर इस कायम-दायम सत्य परमात्मा को जानना होगा, जिसके बारे में कहा गया है। आदि सचु जुगादि सच है भि सच, नानक होसी भी सचु और
Satguru Mata Sudiksha Ji Vichar
तीन काल है सत्य तू मिथ्या है संसार।
परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद मन को इस ज्ञान में स्थित करने के लिए सद्गुरु हमें तीन बहुमूल्य साधन देता है- सत्संग, सेवा और सुमिरण श्रद्धा और विश्वास के साथ जब साधन हम ये अपनाते हैं तो माया में रहकर भी मन को स्थिर रख पाते हैं।
निरंकारी लाइव
रोज सत्संग में आते रहेंगे तो मन इस निरंकार परमात्मा में मजबूती से टिका रहेगा, भटकेगा नहीं। सत्संग में जब हम आते हैं तो सन्तों के दिव्य वचन हमारे मन पर प्रभाव डालते हैं और उसे परमात्मा में स्थित रहने के लिए मजबूती प्रदान
निरंकारी सतगुरु माता जी के विचार
करते हैं। इसी तरह सन्तों के चरणों में झुकते हैं, सेवा करते हैं तो अहंकार से बचे रहते हैं और निरंतर इस परमात्मा का सुमिरण करने से इसी का रंग मन पर चढ़ा रहता है। मन को निर्मलता और स्थिरता प्राप्त होती है।
निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी के विचार
संसार में रहना है तो माया के बीच ही रहना होगा। बाबा हरदेव सिंह जी ने उदाहरण देकर समझाया कि- नाव चलाने के लिए पानी की आवश्यकता है, नाव पानी में ही चलेगी लेकिन नाव के अंदर पानी न आए यह ध्यान रखना होता है। इसी तरह हम बेशक संसार में विचरण करें लेकिन ध्यासन परमात्मा में टिका रहे तो जीवन में स्थिरता और सहजता कायम रह सकती है।
संत निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी के विचार
जो अस्थिर है, डोलायमान है उनके साथ जुड़ने पर हमारी भी वैसी अवस्था बन जाती है। जिस व्यक्ति के विचार डोलायमान हों, आधे अधूरे हों, विश्वास पूरा ना हो और दो नावों पर पैर रखे हों तो उनका संग करने से हमारे विचारों में भी बदलाव आ जाते हैं। ऐसे लोग खुद तो भ्रमों में है ही, औरों को भी भ्रमित कर देते हैं, कहा गया है
निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी
साकत संग न कीजिए, दूरों जाय भाग शाश्वत परमात्मा के साथ नाता जोड़कर पक्के सन्तों महात्माओं का संग करने से हमारे जीवन में दृढ़ता और स्थिरता आयेगी। चंचलता चली जायेगी और निश्छलता आयेगी। भ्रम से ऊपर उठकर हम ब्रह्म में स्थित हो जायेंगे।