हर समय निरंकार प्रभु-परमात्मा का शुकराना करना भी भक्ति है
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Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj |
सन्त निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक विचारधारा है, एक सतत् प्रवाह है जिसमें सभी धर्मों के मानव कल्याण संबंधी पवित्र विचारों का समावेश है। धर्म के बारे में महर्षि वेदव्यास ने कहा है ‘धारयति इति धर्म:‘ । गोस्वामी जी के शब्दों में, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी फरमाते हैं, ‘मानव कल्याण‘ ही सच्चा धर्म है । धर्म का सार है – जो धारण करे वह धर्म माना जायेगा, धर्म की नींव करुणा, अहिंसा, परोपकार ही हो सकती है । जहाँ करुणा का अभिवादन नहीं, वह धर्म कैसा ? धर्म इन्सान को बेहतर इन्सान बनाने की व्यवस्था है । धर्म इन्सान के अन्दर मानवता के पुष्प खिलाता है । धर्म प्रकृति और पुरुष का मिलान कराता है, धर्म का अंतिम उद्देश्य शांति का साम्राज्य स्थापित करना है ।
सन्त निरंकारी मिशन भले ही अपने को कोई धर्म या सम्प्रदाय न मानता हो फिर भी धर्म का बीज मंत्र, वास्तविक अवधारणा में मिशन खरा उतरता है संवेदना, सहनशीलता, प्रेम, मिलनवर्तन, परोपकार करुणा ही धर्म के आभूषण हैं । करुणा की मूर्ति निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी, #निरंकारी राजमाता कुलवन्त कौर जी तथा पूज्य माता सविन्दर-हरदेव जी की इस अद्वितीय त्रिवेणी ने विश्व को अच्छे इन्सान दिए हैं । सद्गुरु के रूप में निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी की छत्तीस वर्षों की कल्याण यात्राएं काल के गाल पर अमिट हस्ताक्षर छोड़ गई हैं जो मानवता के सव्र्निम इतिहास धरोहर है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
सहनशीलता धर्म का प्राण है । इतिहास साक्षी है कि सन्त परम्परा में सुकरात, ज़ीसस क्राइस्ट, महात्मा गाँधी, निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी, निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी के कथनों में कितनी समानता है, कोई विरोध नहीं कि कोई एक गाल पर चांटा मारे और दूसरा गाल भी आगे कर दो । चांटा ही क्या निरंकारी मिशन ने तो गोली मारने वाले को भी क्षमा कर दिया, कोई शिकायत नहीं, कोई विरोध नहीं । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
निरंकारी सद्गुरू बाबा गुरबचन सिंह जी के महान बलिदान के बाद निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने आक्रोशित जनसमुदाय में भभकती अग्नि को जिस प्रकार शांति का उपदेश देकर शान्त किया वह अद्वितीय है । उन्होंने कहा कि आप सभी ने तो अपना सद्गुरू खोया है, दास ने तो अपना पिता और सद्गुरू दोनों खोये हैं ।
हमें मर्यादा, संयम, सहनशीलता को कायम रखते हुए इस बलिदान का मूल्य प्रेम-नम्रता, प्रीत के साथ रक्तदान देकर चुकाना है । निरंकारी सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी की आज्ञा पालन करते हुए मानव-एकता के नए मानक स्थापित हुए । यह सजगता, संवेदना बिना ब्रह्ज्ञान के संभव ही नहीं । इस सन्दर्भ में गोस्वामी जी की पंक्तियाँ याद आती हैं- Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
ब्रह्मज्ञान को पाइके नामुज भयो जगदीस,
तुलसी ऐसे मनुज को देव नवावें सीस ।
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के बाद हमारे तौर-तरीके ही बदले जाते हैं । नज़रें बदली हैं तो नज़ारे भी बदल जाते हैं । ऐसा ब्रह्मज्ञानी फूल के प्रति तो संवेदनशील होता ही है साथ ही वह काँटों के प्रति भी क्रूर नहीं होता है । बात तो जागरण की है । शुकराना,धन्यवाद की भावना ही ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के बाद प्रमुखता से मुखरित होती है । सम्पूर्ण हरदेव वाणी फ़रमाती है – Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
शुकर किए जा तू मालिक का शुकराना ही भक्ति है ।
शिकवे गिले को लब पर अपने न लाना ही भक्ति है ।
थैंक्यू, शुक्रिया और धन्यवाद छोटा सा शब्द अपने आप में असीम संभावनाएं समेटे हुए है । यह छोटा सा शब्द इन्सान के व्यक्तित्व को बड़ा बनता है । प्रत्येक भक्त के जीवन में इस शब्द की महती आवश्यकता है, ‘धन्यवाद‘ ! ये शब्द हमारे व्यवहार के साथ-साथ हमारे अवचेतन मन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है । आभार व्यक्त करने वाले व्यक्ति अपेक्षाकृत ज्यादा खुशमिजाज़ देखे गए हैं और उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा भी खूब मिलती है । शुकराना शब्द भावनात्मक एकता का प्रतीक है। Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
हम दिनचर्या में देखते हैं कि एक छोटा बच्चा हमारे लिए कुछ भी करता है तो हम उसे थैंक्यू कहना नहीं भूलते, इस शब्द को सुनकर एक बछा भी एक अद्भुत जोश से भर जाता है । उसके चेहरे पर आयी खुशी को देखने के लिए हम बार-बार थैंक्यू कहने का बहाना खोजते हैं और बच्चा भी इस शब्द को सुनने के लिए दोहरे वेग से सेवा में तत्पर हो जाता है । धन्यवाद कोई शब्द नहीं, ये तो इन्सान के अन्दर से महसूस किए गए आभार का बाहरी प्रदर्शन है । आन्तरिक भाव की छलकन है, इसे आजीवन व्यवहार का हिस्सा बनाना जरूरी है । Nirankari Vichar Satguru Mata Sudiksha Ji
धन निरंकार जी !