अनन्त गुणों के भंडार थे सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज
Satguru Baba Hardev Singh Ji Maharaj
Satguru Baba Hardev Singh Ji Maharaj |
उन्होंने अपने माता-पिता बाबा गुरबचन सिंह जी एंव निरंकारी राजमाता जी की बातों की यथारूप स्वीकार कर उस पर चलने का यत्न बाल्यकाल से ही करना आरम्भ कर दिया था। केवल उनकी बात को सतवचन कहकर स्वीकार करना नहीं अपितु साध संगत के हर बाल-वृद्ध, छोटे-बड़े सदस्य का आदर-सत्कार करते हुए उनकी बातों को गंभीरता से स्वीकार करना उनका स्वाभाव था।
सद्गुरु सारी दुनिया को सेहत बख्शता है लेकिन सृष्टि का मालिक जब नर तन में आता है जगत की मर्यादा कायम रखते हुए शरीर के स्वस्थ्य के लिए डॉक्टर का परामर्श भी स्वीकार करता है।
सौभाग्यवश एक बार जब एक सेवादार को बाबा जी की स्वास्थ्य सेवा करने का अवसर मिलता रहा। होमियोपैथी में उपचार से पूर्व उस व्यक्ति की अभिरुचि व स्वभाव के बारे में जानकारी लेनी होती है ताकि उपचार आसानी से हो सके। जब उन्हीं सेवादार महात्मा ने बाबा जी से पूछा कि हुज़ूर आप अपने स्वाभाव के बारे बताएं तो उन्होंने कहा : SUBMISSION (स्वीकार कर लेना)।
बाबा जी सामने वाले व्यक्ति की बात को अहमियत देते हुए उसे स्वीकार कर लेते थे। कभी-कभी अगर वह पूरी तरह सही ना भी हो तब भी अन्दर से ही सतवचन का स्वर उठता और वे अपने से ज़्यादा सामने वाले को महत्त्व देने का प्रयास करते थे।
आत्मीयता उनकी दूसरी सब बड़ी विशेषता थी। उनका अपनापन इतना सजीव था कि उनके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति इस अपनत्व का कायल हो जाता था। समझने वाली बात यह है कि उनके स्वीकार कर लेने और अपनत्व वाले भाव को हमें अवश्य अपनाना चाहिए।
उनके स्वभाव की ये बातें हमारे जीवन में आमूल चूल परिवर्तन ला सकती हैं। उनके स्वाभाव की खूबसूरतियों को अपने जीवन में ढालकर उनको याद करना, उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।